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कृषि/बागवानी

कम पानी की स्थिति में शरद कालीन गन्ना बोयें किसान-डीएम

Posted on: Wed, 10, Jul 2019 4:05 PM (IST)
कम पानी की स्थिति में शरद कालीन गन्ना बोयें किसान-डीएम

बस्तीः (सूचना विभाग) कम पानी एवं सूखे की स्थिति में शरद कालीन गन्ना की बुआई लाभप्रद होती है। उक्त जानकारी जिलाधिकारी डॉ0 राज शेखर ने दी है। उन्होने किसानों को सलाह दी है कि इसके लिए को0शा0 96275, को0शा0 07250, को0शा0 08279, को0शा0 01424 प्रजाति का गन्ना बोया जाना चाहिये।

उन्होंने बताया कि कम पानी की दशा में खेत की गहरी जुताई करें। इससे गन्ने की पौधों की जड़ ठीक से विकसित होगी। इससे खर-पतवार भी नियन्त्रित रहते है। कार्बनिक तथा जैव उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी में जल संरक्षण की क्षमता बढ जाती है। साथ ही, मिट्टी में नत्रजन तथा अन्य तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। गन्ने में सूखा सहनशीलता हेतु पेटाश उर्वरकों का विशेष महत्व है, क्योकि ये पौधों की पत्तियों में रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने की क्रिया को नियंत्रित करते है। इससे सूखें की अवस्था में पौधे आवश्यकतानुसार वाष्पोत्सर्जन क्रिया कर तापक्रम को नियंत्रित रखते है तथा सूखने से बच जाते है।

सूखें की स्थिति में सिचाई के उपरान्त गन्ने की गुड़ाई करेके दो पंक्तियों के बीच 8 से 10 से0मी0 गन्ने की सूखी पत्ती बिछाने से मृदा से होने वाला वाष्पीकरण कम होता है तथा पत्तियॉ बिछाने से खर-पतवार भी नियंत्रित रहते है तथा पत्तियॉ सड़ने के उपरान्त कार्बनिक खाद के रूप में पौधों को उपलब्ध हो जाती है, जिससे गन्ने की उपज में बढोत्तरी भी होती है। पेयर्ड रो प्लान्टिग के साथ गन्ने की एकान्तर नाली पद्धति से सिचांई करने से 60 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है और उपज में कोई प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ता है। सूखें और कम पानी की दशा में ड्रिप सिचाई का विकल्प एक अच्छा साधन है जिससे 50 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है, उर्वरको के प्रयोग में भी कमी आती है तथा 15 से 20 प्रतिशत तक उपज में बढोत्तरी होती है।

अधिक गर्मी की दशा में पौधों पर वाष्पोत्सर्जनरोधी रसायनों जैसे-काओलिन का 06 प्रतिशत तथा एवसिसिक अम्ल का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करने से रन्ध्र कुछ समय के लिए बन्द हो जाते है जिससे पौधों में नमी सुरक्षित रहती है और वह सुखने से बच जाते है। पुनः नमी उपलब्ध होने पर रन्ध्र खुल जाते है। कम पानी एवं सूखें की दशा में एक से अधिक बार पेड़ी गन्ने की खेती की जाय। पोषक तत्वों का प्रयोग स्वायल हेल्थ कार्ड के संस्तुति के आधार पर फर्टीगेशन में माध्यम से किया जाय। टैं्रश मल्चिंग के कार्यक्रम को अधिकाधिक बढ़ावा दिया जाय।


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