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कृषि/बागवानी

फूलो की खेती से सुधारिये माली हालत

Posted on: Fri, 08, Dec 2017 9:34 AM (IST)
फूलो की खेती से सुधारिये माली हालत

गाजीपुर जनपद के मुहम्मदाबाद तहसील के बाराचंवर ब्लाक के उतरांव चवरां गांव के निवासी मोतीचंद यादव फूलो की खेती कर इस समय अपने जीवन की बगिया को महकाने में लगे है। इस खेती में उनके परिवार के सदस्य भी पूरी तरह से लगे है। मोतीचंद यादव ने वर्ष 2012-13 में लगभग 15 लाख की लागत से 11 मंडा के रकबे मे आधुनिक फूलों की खेती की शुरुआत की। खेती से पूर्व उन्होंने इसकी तैयारी शुरू की। आज उसी मेहनत के बदौलत करीब 35 से 40 हजार रूपये प्रतिमाह की आमदनीं कर रहे है।

मोतीचंद ने मीडिया दस्तक न्यूज के गाजीपुर ब्यूरो को बताया की इसकी खेती के पहले इसकी तैयारी जरूरी है। इसके लिए बाकायदे 1008 वर्ग मीटर में पाली हाउस के निर्माण के लिए देहरादून से कारीगर बुलाया था। पौधो की सिंचाई के लिए जगह जगह फौव्वारा का निर्माण कराया गया है। मोतीचंद यादव ने बताया की फूलो की खेती के लिए अधिकतम 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिए।

सूर्य के सीधे ताप, बारिश, तेज हवा से बचाने के लिए पाली हाउस का निर्माण कराया गया है। बाहरी दीवारों में प्लास्टिक का उपयोग किया गया है ताकि बाहर का तापमान अंदर और अंदर का तापमान बाहर न आ सके। उन्होंने बताया की जब तापमान बढता है तो फौव्वारा चला कर उसे नियंत्रित किया जाता है।

किसान इसकी खेती कर अपनी माली हालत सुधार सकते है।

पाली हाउस में फूल के पौधे डेढ से दो फुट की उंचाई पर रोपे जाते है। एक क्यारी से दूसरी क्यारी की दूरी 30 सेमी होती है। इस पौधे की रोपाई मार्च में होती है। जबकि मई में पौधो से फूल निकलने लगते है। मोतीचंद ने बताया की जरवेरा की खेती के लिए उनके भाई हरिश्चन्द्र के बेटे प्रेम प्रकाश जो एक साफ्टवेयर कम्पनी में इंजीनियर है ने इसकी शुरूआत इटली के अपने दौरे से लौट कर आने के बाद की थी।

इस खेती में करीब 10 हजार जरवेरा के पौधे लगाये गये है। जो इटली प्रजाति का है। बताया की शुरू में तो हर दूसरे दिन 700 से 1000 फूल निकलते थे लेकिन अब पौधो के पुराने होने से हर तीसरे दिन करीब एक हजार फूल निकल आते है। यह फूल मंहगे दाम पर बिकता है। ईलाके में अच्छा बाज़ार न होने के कारण बक्सर बिहार के एजेंट के माध्यम से फूल प्रदेश के बाहर बेचने का कार्य करते है। वैसे तो प्रति फूल पांच से सात रूपये तक बिकता है लेकिन विशेष सीजन में यह मंहगा भी बिकता है।

सारा खर्च काट कर प्रति माह 35 हजार तक की आमदनी हो जाती है। मोती चंद ने साफ शब्दों में कहा की अगर बैंक अधिकारियों व उद्यान बिभाग का उन्हें अपेक्षित सहयोग मिलता तो इस खेती को वह बडे पैमाने पर करते। इलाके के किसानों को अगर पारंपरिक खेती के अलावा दूसरी खेती को लेकर प्रशिशित किया जाये तो इस क्षेत्र के किसान भी आर्थिक रूप से सम्पन्न हो सकते है।


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