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कृषि/बागवानी

पशुपालन को बनाया स्वरोजगार, 6-7 लाख सालीना कमाई

Posted on: Thu, 07, Apr 2016 9:11 PM (IST)
पशुपालन को बनाया स्वरोजगार, 6-7 लाख सालीना कमाई

भारत में पशुपालन को किसानों की समृद्धि से जोड़कर देखा जाता था। जिस किसान के दरवाजे पर पशुओं की अच्छी संख्या होती थी उसकी खेती किसानी देखने लायक होती थी। तेजी से बदलते परिवेश में मशीनों ने पशुओं की जगह ले लिया, उत्पादन बढ़ा, किन्तु पशुधन तेजी से घट गया। अब बहुत कम किसान होंगे जिनके दरवाजे पर पशु देखे जा सकते हैं। हां गायों के प्रति लोगों की रूझान इधर बढ़ी है। हमारे देश में गाय को मां का दर्जा दिया जाता है। शायद इस सोच ने लोगों को गाय से लगाव बनाकर रखा। दूध का व्यापार देश में बहुत पुराना है। गावों में पहले दैनिक भोजन में आधा हिस्सा दूध का होता था, दुग्ध उत्पादन पहले से घटा तो नही है लेकिन अब लोग दूध का सेवन खुद करने की बजाय बाजारों में भेजना शुरू कर दिया है।

थोडी सी लागत, दिनचर्या में परिवर्तन तथा पशुओं के प्रति दया और सेवा का भाव हो तो दूध व्यापार को लाखों रूपये की सालाना आय का जरिया भी बना सकते हैं। बस्ती जनपद के हरैया तहसील के शिवपुर पुरवा ओझागंज के प्रगतिशील किसान अशोक सिंह ने सरकारी नौकरी में रहते हुये इसे सिद्ध कर दिखाया। पेशे से अध्यापक अशोक सिंह को सरकारी मशीनरी पर भरोसा नही है। हालांकि वे खुद सरकारी नौकरी में हैं लेकिन उनका मानना है कि उनका जमाना कुछ और था। योग्यताधारी लोग कभी खाली नही रहते थे, इण्टरव्यू पारदर्शी होता था, सरकारी नौकरी मिलने की गुंजाइश रहती थी, अब योग्यता क्षमता धरी की धरी रह जा रही है। अयोग्य लोग जर जुगाड़ या जाति की गुहार लगाकर नौकरी हथिया ले रहे हैं।

अशोक सिंह के दो बेटे हैं उनके लिये सरकारी नौकरी ढूढ़ने की बजाय उन्होने बड़े बेटे सूरज सिंह को डेरी में लगा दिया। 1990 में 15 गायों से 45,000 की पूंजी के साथ व्यापार शुरू किया गया व्यापार दो तीन सालों में खूब तरक्की किया। गायों की संख्या बढ़कर 65 हो गयी। भयंकर बीमारी के कारण 20 गायें मर गयीं, व्यापार का बड़ा झटका लगा। अशोक सिंह बताते हैं कि उन्होने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया। अब सिर्फ 30 गायें हैं। सभी गायें फ्रीजियन है। अब इनकी संख्या बढ़ाने की सोच रहे हैं।

आज पूरा व्यापार उनका बड़ा बेटा संभालता है। दूध को बाजारों में ने जाकर न बेंचना पड़े इसके लिये अशोक सिंह ने महराजगंज कस्बे में सिंह स्वीट्स के नाम से मिठाई की दुकान खोल लिया है, सारा दूध यहीं खप जाता है। दुकान के मिठाई की गुणवत्ता के सभी कायल हैं। घर का दूध होने के कारण उन्होने गुणवत्ता से समझौता करना नही सीखा। चार लेबर भी उनका सहयोग करते हैं। इसके बदले उन्हे उचित पारिश्रमिक दिया जाता है। वर्तमान में 150 लीटर प्रतिदिन दूध के उम्पादन से सालीना 16 से 17 लाख रूपये की आय हो रही है। इसमें दूध और गोबर से होने वाली आय शामिल है। चारे और लेबर और दवाओं में 80 हजार रूपये माहवार खर्च हो जाते हैं। इस प्रकार सालीना 6 से 7 लाख रूपये शुद्ध आय हो रही है।

ग्रीन प्लेनेट के पूछने पर कि व्यापार बढ़ाने के लिये उन्होने सरकारी सहायता क्यो नही लिया, अशोक सिंह ने बताया कि उनका सरकारी सहायता पर विश्वास नही है। खुद की पूंजी और मेहनत का ही भरोसा है, सरकारी सहायता लेने के लिये दफ्तरों और सरकारी अफसरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, इतना ही नही इसके लिये मुंह खोलकर रिश्वत भी मांगी जाती है। अशोक सिंह क्षेत्र के समृद्ध किसानों में हैं। जरूरत के खाद्यान्न उगाने के साथ ही वे पशुओं की जरूरत की जई, चरी, बरसीम आदि भरपूर मात्रा में उगाते हैं। इससे पशुओं को हरा चारा पूरे साल के लिये उपलब्ध रहता है, बाहर से खरीदने की जरूरत नही पड़ती। इतना ही नही पूरे इलाके में काई ऐसा किसान नही है जो सौ फीसदी देशी खादों का प्रयोग कर खेती करता हो, अशोक सिंह इस मामले में भी एक उदाहरण है जो अपनी खेती में सौ फीसदी देशी खादों का प्रयोग करते हैं।

अशोक सिंह देश के युवा बेरोजगारों को एक संदेश देना चाहते हैं। उनका कहना है कि युवाओं के मन में यह बात भर दी गयी है कि शिक्षा का मतलब सरकारी नौकरी हासिल करना है, जबकि सरकारी नौकरी हासिल कर हमारा दायरा सीमित हो जाता है। निजी कारोगार खड़ा करके हम स्वयं तो आत्मनिर्भर होते ही हैं दूसरों को भी अवसर मुहैया कराते हैं। देश में बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है, युवा बेरोजगार प्रायः अवसाद में चले जाते हैं अथवा गलत रास्ता अख्तियार कर लेते है। नौकरी हासिल करने की बजाय युवाओं कों नौकरी देने वाले की भूमिका में आना होगा तभी देश में असली तरक्की आयेगी। एक युवा जब आत्मनिर्भर होता है तो देश एक कदम आगे बढ़ता है वह दूसरों को अवसर उपलब्ध कराने वाले की भूमिका में आ जाये तो देश दस कदम आगे बढ़ेगा।


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