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कृषि/बागवानी

जिले में कालानमक धान की खेती पर बन रही है डाक्यूमेंट्री फ़िल्म

Posted on: Wed, 27, Oct 2021 6:08 PM (IST)
जिले में कालानमक धान की खेती पर बन रही है डाक्यूमेंट्री फ़िल्म

बस्ती, 27 अक्टूबर। इस साल जिले में इस 5000 बीघे क्षेत्र में कालानमक धान की खेती हुई है। जो सिद्धार्थ एफपीसी व कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के देख रेख में की जा रही है। जिसमें 25 एकड़ क्षेत्र में जैविक खेती की जा रही है। इसके लिए कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार की तकनीकी सहायता इकाई (बिल एन्ड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन समर्थित) के समन्वय से सोशल अल्फा व बोम लाइफ द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के रूप में बस्ती जनपद के चयन कर निःशुल्क जैव उर्वरक उपलब्ध कराया गया है।

जिले के जो भी किसान कालानमक धान की जैविक खेती कर रहें हैं उसका प्रभाव बहुत ही अच्छा रहा है। जैविक तरीके से किये जा रहे कालानमक धान में रासायनिक की अपेक्षा दो से तीन गुना ज्यादा कल्ले निकले और रोग बीमारियों का प्रकोप भी काफी कम है। बस्ती में कालानमक धान की खेती में इस सफलता को लेकर आई आई टी कानपुर के समन्वय में सोशल अल्फा की टीम ने बस्ती जिले के कालानमक धान की खेती करने वाले किसानों को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म की शूटिंग की। जिसमें बनकटी ब्लाक के धौरहरा गोचना ग़ांव के किसान अवधेश पाण्डेय के 4 एकड़ कालानमक की फसल के साथ डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म शूट किया।

इसी के साथ रुधौली ब्लाक के पचारी कला ग़ांव के किसान विजेंद्र बहादुर पाल के खेतों में भी डाक्यूमेंट्री शूट की गई। इसके बाद टीम ने कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती का दौरा कर केंद्र पर हो रहे कालानमक धान की फसल को देखा और फ़िल्म शूट की। इस मौके पर सोशल अल्फा की टीम ने सिद्धार्थ एफपीसी के निदेशकों से जिले में हो रहे कालानमक धान की खेती के प्रगति पर जानकारी ली। कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती के वैज्ञानिक राघवेंद्र विक्रम सिंह ने बस्ती में कालानमक धान की खेती बढ़ने पर कहा कि इसका कारण देश दुनियाँ में कालानमक चावल की भारी मांग और और जबरदस्त रेट के चलते हुआ है। कालानमक चावल सुगंध, स्वाद और सेहत से भरपूर है।

बस्ती ज़िले में पैदा होने वाले काला नमक धान को सरकार ने लीगल राइट प्रदान किया है। यानी इसे बस्ती की उत्पत्ति मानते हुए जी आई टैग प्रदान किया गया है। उन्होंने बताया कि बस्ती के साथ संत कबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर और महराजगंज जिलों को जीआई टैग मिला है। उन्होंने टीम को बताया कि जियोग्राफिकल इंडीकेशन का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है. इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण ही होती है।

जीआई लेने के अलावा इस चावल का प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटी एंड फॉमर्स राइट एक्ट के तहत भी रजिस्ट्रेशन करवाया गया है। ताकि काला नमक चावल के नाम का दूसरा कोई इस्तेमाल न कर सके। यही वजह है कि बस्ती जिले में 5000 बीघे में इसकी खेती हो रही है। अब जीआई टैग हासिल करने वाले 11 जिलों में बस्ती जिले में सबसे ज्यादा एरिया है। काला नमक धान बौना होने के बाद पैदावार बढ़ी और किसान फायदे में आने लगे तब जाकर रकबा बढ़ना शुरू हुआ। इस मौके पर अगुआई कर रहे सोशल अल्फा टीम से ओंकार पाण्डेय व रूबी ने बताया कि कालानमक धान धान की जैविक खेती के लिए केवल बस्ती जिले का चयन किया गया है।

जिसका रिस्पॉन्स काफी सफल रहा है। उन्होंने बताया कि कालानमक धान पर बनाई जा रही डाक्यूमेंट्री सरकार के साथ साथ विभिन्न प्लेटफॉर्म पर दिखाई जाएगी। जिससे इसे पूरे प्रदेश में लागू किये जाने में आसानी होगी। बोम लाइफ के अमलान दत्ता ने बताया कि कालानमक धान के रोपाई से लेकर कीट बीमारियों के नियंत्रण के लिए जैविक उत्पादों को तैयार किया गया है जिसका प्रयोग कालानमक धान की फसल में किया गया जो काफी प्रभावी रहा है। इस मौके पर बीएमजीएफ की तरफ से सुरुपा चक्रवती व अर्जुन ने भी तकनीकी सहायता इकाई द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। डाक्यूमेंट्री के शूटिंग के लिए स्थानीय लेवल पर सिद्धार्थ एफपीसी की तरफ से संजय श्रीवास्तव, राम मूर्ति मिश्र, बृहस्पति कुमार पांडेय, शिवराम गुप्ता, मौजूद रहे।


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