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कृषि/बागवानी

मालामाल कर देगी भिंडी की अगेती फसल

Posted on: Thu, 27, Jul 2017 9:24 AM (IST)
मालामाल कर देगी भिंडी की अगेती फसल

भिंडी की अगेती फसल लगाकर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं। भिंडी की खेती पूरे देश में की जाती है, किसान फरवरी से मार्च तक अगेती किस्म की भिंडी बो सकते हैं। इसकी तैयारियों के संदर्भ में जानकारी निम्नवत है।

खेत की तैयारी : भिंडी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में हो जाती है। भिंडी की खेती के लिए खेत को दो-तीन बार जुताई कर भुरभुरा कर और पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। उन्नत किस्में : अर्का अभय, अर्का अनामिका, परभनी क्रांति, पूसा-ए, वर्षा उपहार। बीज एवं बीजोपचार : ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 18-20 किग्रा बीज एक हेक्टयर बुवाई के लिए पर्याप्त होता है, ग्रीष्मकालीन भिंडी के बीजों को बुवाई के पहले 12-24 घंटे तक पानी में डुबाकर रखने से अच्छा अंकुरण होता है। बुवाई से पहले भिंडी के बीजों को तीन ग्राम थायरम या कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीजदर से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई : ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई फरवरी-मार्च में की जाती है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। कतार से कतार दूरी 25-30 सेमी और कतार में पौधे की बीच की दूरी 15-20 सेमी रखनी चाहिए। जल प्रबंधन : यदि भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो बुवाई के पहले एक सिंचाई करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में प्रत्येक पांच से सात दिन के अंतराल पर सिंचाई आवश्यक होती है। निराई-गुड़ाई : नियमित नियमित-गुड़ाई कर खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। बोने के 15-20 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करना जरुरी रहता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक का भी प्रयोग किया जा सकता है। तोड़ाई एवं उपज : किस्म की गुणता के अनुसार 45-60 दिनों में फलों की तुड़ाई प्रारंभ की जाती है एवं चार से पांच दिनों के अंतराल पर नियमित तुड़ाई की जानी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी फसल में उत्पादन 60-70 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक होता है।

रोग नियंत्रण : इस में सबसे अधिक येलोवेन मोजेक जिसे पीला रोग भी कहते है, यह रोग वाइरस के द्वारा या विषाणु के द्वारा फैलता है, जिससे की फल पत्तियां और पौधा पीला पड़ जाता है, इसके नियंत्रण के लिए रोग रहित प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए या एक लीटर मेलाथियान को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर के हिसाब से हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिडकाव करते रहना चाहिए, जिससे यह पीला रोग उत्पन्न ही नहीं होता है।


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