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14 मई 2024
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कृषि/बागवानी

आज्ञाराम वर्मा बने किसानों के लिए मिसाल

Posted on: Fri, 11, Sep 2015 12:47 PM (IST)
आज्ञाराम वर्मा बने किसानों के लिए मिसाल

(बृहस्पति पाण्डेय) अनाज फल-फूल सब्जियां व अन्य कृषि उत्पाद मनुष्य एवं पषु पक्षियों का पेट भरने का काम करता है मनुष्य जितने भी काम करता है वह मात्र अच्छा व भरपेट भोजन के लिए, लेकिन अनाज को अन्य वस्तुओं की तरह फैक्ट्रियांे में नही पैदा किया जा सकता है बल्कि अनाज पैदा करने के लिए अच्छे बीज, खाद, पानी व कृषि उपकरणों की आवष्यकता होती है लेकिन पिछले दषकों में खाद्यान्न की मांग ने हुई बेतहाषा वृद्धि ने कृषि में आधुनिक तकनीकी के प्रयोग की मांग को बढा दिया है जिसके फलस्वरूप देष के कृषि वैज्ञानिक अच्छे बीजों, व कृषि तकनीकी की खोज में लगे हुए है। कृषि की यही समस्याये बारहवी तक की पढाई कर स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाले यूपी (बस्ती) के कप्तानगंज निवासी खरका देउरी के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले आज्ञाराम वर्मा को बार-बार परेषान करती थी। वह स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करते हुए भी कभी स्वास्थ्य विभाग का न हो पाये। उनका मन सदैव खेती किसानी में ही लगा रहता था। आज्ञाराम वर्मा सोचते कि काष वह किसानों के लिए खुद उच्च उत्पादकता वाले बीज तैयार कर पाते। अपने इसी सोच के चलते सन् 1992 में 26 वर्ष की उम्र में आज्ञाराम वर्मा ने स्वास्थ्य विभाग की सरकारी नौकरी छोड कर खेती की दषा सुधारने का संकल्प लेकर अपने गांव वापस आ गये। नौकरी छोडने पर इनके पिता भगौती प्रसाद वर्मा ने इन्हें खूब डांटा फटकारा लेकिन आज्ञाराम ने अपने पिता को यह विष्वास दिलाया कि वह खेती से ही इतना उत्पादन करेगें कि घर में किसी चीज की कमी नही रहेगी। यहीं से आज्ञाराम वर्मा ने अपनी सोच पर रंग चढाना शुरू किया। उन्होंने सबसे पहले उत्तर प्रदेष की सबसे नकदी फसल मानी जाने वाली गन्ना की एक ऐसी प्रजाति विकसित करने का मन बनाया जिसमें चीनी का परता अन्य प्रजातियों की अपेक्षा ज्यादा हो। क्योंकि चीनी मिलों की अक्सर षिकायत रहती थी कि किसानों द्वारा बोई जाने वाली गन्ने में चीनी का परता कम है। जिससे किसानों को गन्ने का रेट भी कम मिलता है।

गन्ने की नई प्रजाति तैयार कर दिखायी राह

आज्ञाराम वर्मा को गन्ने की नई प्रजाति विकसित करने के लिए आवष्यकता थी तकनीकी ज्ञान की, इसके लिए सन् 2005 में गोरखपुर के सेवरही में स्थित गन्ना अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों से मिलकर गन्ने की नई वैरायटी तैयार करने की विधि जाना। इसके बाद वह 2006 में गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ भी गये। वहां से गन्ने की नई वैरायटी तैयार करने की जरूरी जानकारी प्राप्त की। फिर आज्ञाराम वर्मा गन्ने की नई प्रजाति तैयार करने में लग गये उन्होंने सबसे पहले यह तय किया कि वह गन्ने की ऐसी प्रजाति विकसित करेगे जो देष के हर कोने में व हर तरह की मिट्टी व जलवायु में आसानी से उगाया जा सके। साथ ही उसमें रोग व कीटों का प्रकोप भी न हो इसके अलावा चीनी का परता बोई जाने वाली प्रजातियों से ज्यादा हो। आज्ञाराम वर्मा ने इन सभी चीजों का ध्यान रखकर गन्ने की कोषा-95255, कोषा-1424, 8102, 01434, 91269 और 92423 की बुआई एक साथ लाईन में की। बुआई के 6 माह बाद प्रजातियों में फूल लाने के लिए फूलों तेजक के रूप में बमफ्लोर नाम की दवा का इस्तेमाल किया। इसके बाद सन् 2007 में 4 प्रजातियों 95255, 8102, 01434, और 92423 में फूल आया।

फिर इन्होंने वैज्ञानिकों के बताये अनुसार इन सभी प्रजातियों के पराग कण को गन्ने की 92423 की प्रजाति से परागित कराया। जिसके दो माह बाद गन्ने के फूलों से बीज तैयार हुआ। जिसको इकट्ठा कर आज्ञाराम वर्मा ने जून माह में नर्सरी में डाला जिससे मात्र 8 पौधे ही उगे। उन्होंने गन्ने की चार प्रजातियों के मेल से तैयार इस नई प्रजाति को नर्सरी में उगाने के बाद किसी तरह का रसायनिक खाद या कीटनाषक का प्रयोग गन्ने की इस नई प्रजाति मे नही किया इसके बावजूद इसमे किसी तरह कीट या बीमारी का प्रकोप नही दिखायी पडा। आज्ञाराम वर्मा को इसके बाद लगा कि उनका प्रयोग सुल हो गया है। उन्होने 8 पौधो के फिर से अपने खेत में रोपा। इस बार उन्हें 50 पौधे मिले।

उन्होंने अब स्वयं द्वारा तैयार की गयी गन्ने की इस नई प्रजाति में यह पता लगा दिया था कि इस पर किसी तरह की कीट या बीमारी का प्रकोप नही होगा। अब बारी थी, गन्ने में चीनी के परते के जांच की। इसके लिए उन्होंने चीनी परता की जांच के लिए गन्ना अनुसंधान स़़़़़़़़़़स्थान लखनऊ के कृषि वैज्ञानिक डा0 आर0पी0 सिंह को बुलाया। कृषि वैज्ञानिक डा0 आर0पी0 सिंह ने बलरामपुर चीनी मिल के विषेषज्ञों के साथ मिलकर आज्ञाराम वर्मा के गन्ने की नई वैरायटी की जांच खेतो में आकर की। फिर उक्त गन्ने का सैम्पल बलरामपुर चीनी मिल में भेजा गया। जहां लैब टेस्ट में उस गन्ने की प्रजाति में प्रचलित प्रजातियों से दुगुनी चीनी का परता पाया गया। लैब टेस्ट में आज्ञाराम वर्मा के गन्ने की इस नई प्रजाति को विभागीय अधिकारियों ने बुआई के लिए सर्वश्रेष्ठ श्रेणी में रखते हुए इसको हरी झण्डी दे दी। आज्ञाराम वर्मा ने गन्ने की इस नई प्रजाति का नाम अपने जिले व ब्लाक का नाम जोडते हुए कैप्टन बस्ती रखा है जो अब किसानो के लिये उपलब्ध है।

गेंहू की नई प्रजाति भी किया तैयार

आज्ञाराम वर्मा ने गन्ने की नई प्रजाति विकसित करने के साथ ही गेहू की भी एक नई प्रजाति विकसित की है। जिस पर कोई भी बीमारी या कीट नही लगता साथ ही इसकी उत्पादकता प्रचलित प्रजातियों से ज्यादा है। आज्ञाराम वर्मा ने गेहूं की इस नई प्रजाति को विकसित करने के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र बंजरिया के प्रभारी वैज्ञानिक डा0 एस0एन0 सिंह, डा0 जे0पी0 यादव, डा0 एस0एन0 लाल, डा0 राघवेन्द्र सिंह से संयुक्त रूप से मुलाकात की। जहां इन वैज्ञानिको ने गेहूं के बीज तैयार करने की परागण व सेलेक्षन विधि बतायी। आज्ञाराम वर्मा ने सन् 2008 के नवम्बर माह में गेहूं की नई प्रजाति तैयार करने पर काम शुरू किया।

उन्होने नई प्रजाति तैयार करने के लिए गेहूं की दो प्रजातियों 343 व 502 को एक साथ बोया जिसमें बाली आने के बाद दोनो के परागकण को आपस में परागित कराकर अधिक पोशण देने के लिए जैविक पोशक तत्वों को परागित पौधो पर डाला। एक दिन उन्हें गेहूं की बालियों पे एक बाली जिसमें ज्यादा न्यूट्रेषन दिया गया था, देखा जो अन्य गेहूं की बालियों से लगभग 2 गुनी ज्यादा लम्बी थी। उन्होंने उस बाली के दानों को पकने तक मच्छरदानी से ढककर रखा। जब बाली पकी तो उसमें से गेहूं के 80 दाने निकले। अगले सीजन में उन 80 दानों की बुआई से 2 किलों गेहूं का बीज मिला। सन् 2010 में आज्ञाराम ने गेहूं की उस नई प्रजाति का इतना बीज पैदा कर लिया। जिससे 2 हे0 की बुआई उन्होंने स्वयं की, और एक एकड अन्य किसान के खेत में भी बोया।

सन् 2011 में आज्ञाराम वर्मा ने कृषि विभाग की टीम को बुलाकर इस नई प्रजाति के संस्तुति का प्रयास किया। कृषि विभाग की टीम में बस्ती मण्डल के संयुक्त कृषि निदेषक अषोक कुमार व उपकृषि निदेषक डी0के0 गुप्ता कृषि वैज्ञानिक डा0 एस0एन0 सिंह, डा0 जे0पी0 यादव, डा0 एस0एन0 लाल, डा0 राघवेन्द्र सिंह ने गेहूं की इस प्रजाति का खेतों में आकर जांच किया। जिसमें इन अधिकारियों ने इस नई वैरायटी को किट व रोग से मुक्त घोषित किया। साथ ही उपज के आंकलन के लिए अधिकारियों ने 1 हे0 की की क्राप कटिंग करायी। जिसमें इस गेहूं का उत्पादन 64 रखते हुए उन्हें नवाचारी किसान सम्मान देकर सम्मानित किया और बीज विस्तार योजना के तहत आज्ञाराम की गेहूं के इस नई प्रजाति को पूर्वी उत्तर प्रदेष के जिलो में वितरित भी कराया है।

खेती की लागत में लायी कमी

आज्ञाराम वर्मा ने गन्ने व गेहूं की नई प्रजातियों को विकसित कर किसानों को सौंपने के साथ ही खेती की लागत में उपयुक्त तकनीकी का प्रयोग कर 70 प्रतिषत तक की कमी लायी है। जिससे उन्हें खेती से भरपूर मुनाफा मिलता है। आज्ञाराम वर्मा ने बताया कि फसलों का समय से पानी मिलना बहुत जरूरी होता है लेकिन बिजली की कटौती व डीजल की बढती कीमतों से कृषि लागत में बेतहाषा वृद्धि हुई है। उन्होंने सिंचाई को सस्ता बनाने के लिए कृषि विभाग से सम्पर्क साधा तो पता चला कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना व नेडा द्वारा संयुक्त रूप से 274991 रूपये की लगात वाला सोलर पम्प 75 प्रतिषत अनुदान पर उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके लिए उन्होंने कृषि विभाग में 68748 रूपया जमा कर अपने खेतों में सोलर पम्प लगाया। आज्ञाराम वर्मा ने पहली बार किसी अतिरिक्त लागत के सोलर पम्प से 8 घंटे में शून्य लागत पर डेढ हे0 ख्ेात की सिंचाई की। अब तो आज्ञाराम को लगने लगा था कि इस सोलर पम्प से बिना बिजली व डीजल का पैसा खर्च किये सिंचाई की जा सकती है। इसके अलावा डीजल पम्प की तरह इस पर रख रखाव की भी काई लागत नही आती है। आज्ञाराम वर्मा से सीख लेकर आस-पास के सैकडों किसान अब अपने खेतों में सोलर पम्प लगवाकर ख्ेात की सिंचाई कर रहे है। यही नही आज्ञाराम वर्मा ने एक सोलर पम्प के एक जगह स्थायी रूप से रखने के कारण दूर दराज के खेतों में पानी पहुंचने का समाधान भी खोज निकाला। उन्होंने एक और सोलर पम्प कृषि विभाग से अनुदान पर लेकर उसे ट्राली पर स्वचालित बना कर दूर दराज के किसानों के खेतों को भी समय से व न्यूनतम मूल्य पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी है।

इसके अलावा खेतों की जुताई लागत में कमी लाने से सीड ड्रिल द्वारा गेहूं की लाईन से बुआई करते है। इससे उन्हें ख्ेातों की अतिरिक्त जुताई करनी पडती है। वह धान, आलू, मटर, गन्ना, अरहर, इत्यादि की बुआई भी मषीनों से ही करते है। जिससे श्रम समय व लागत में बेतहाषा कमी लाने में सफल हो पाये है। आज्ञाराम वर्मा अपने खेतों में खासकर अरहर, मटर, चना, केला, इत्यादि में कीटों व बीमारियों के प्रकोप होने पर स्वयं द्वारा तैयार जैव कीटनाषी का प्रयोग कर उस पर काबू पाते है।

साथ ही रसायनिक खादों पर आने वाले व्यय में कमी लाने के लिए उन्होंने, गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेय कम्पोस्ट, एजोला फर्न, वर्मी वास, सहित अन्य जैविक खादों का प्रयोग करते है। जो आसानी से घर पर ही तैयार हो जाती है। जिसके चलते उन्हें कई बार धान गेहूं व दलहनी फसलों में अधिक उत्पादन के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है।

बागवानी में भी अव्वल

आज्ञाराम वर्मा ने न्यूनतम लागत के आधार पर ही जैविक विधि से केला, सब्जी, आम की खेती कर भरपूर उपज प्राप्त की है। जिसके लिए भी आज्ञाराम वर्मा को जिला उद्यान एवं खाद्य एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।

किसानों के लिए बने प्रेरणा स्रोत

आज्ञाराम वर्मा ने जिस तरह गन्ने व गेहूं की नई प्रजातियों को विकसित किया है। उसमें कृषि वैज्ञानिकों को वर्षो लग जाते है। आज्ञाराम वर्मा ने कृषि में तकनीकी प्रयोग कर यह साबित कर दिया है कि किसान चाहे तो वह स्वयं अपनी खेती की दषा व दिषा सुधार सकता है। बस इसके लिए सच्ची लगन व सकारात्मक सोच होना चाहिए। आज्ञाराम ने ख्ेाती की लागत में कमी लाकर किसानों को एक दिषा दी है की सही तरीकों को अपनाकर किस तरह लागत में कमी लायी जाय। आज जिले के हजारों किसान आज्ञाराम से प्रेरणा लेकर उनके नक्से कदम पर चल रहे है। यही नही खेती किसानी की तमाम बारीकियां बडे बुजुर्ग किसान तो आज्ञाराम से ही सीखते है। आज्ञाराम वर्मा को कृषि विभाग द्वारा किसान मेलों गोष्ठियों व प्रषिक्षण कार्यक्रमों में बुलाकर उनके अनुभवों से रूबरू कराया जाता है। आज्ञाराम वर्मा को विष्वस्तरीय मेलो में भी आमंत्रित किया जाता है। उन्होंने गुजरात, मध्य प्रदेष, महाराष्ट्र पन्तनगर, बिहार, आदि जगहों पर जाकर किसानों को ख्ेाती किसानी के गुर बताये है।

नवाचारी किसान के तौर पर पुरस्कृत

आज्ञाराम वर्मा को उनकी खोज व नवाचार के चलते ब्लाक, तहसील जिला व मण्डल लैबल पर पुरस्कार मिले ही है साथ ही गुजरात सरकार, उत्तराखण्ड सरकार, नागपुर, पन्तनगर, आदि जगहों पर भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है। उन्हंे इनकी बीज के लिए नवाचारी किसान वैज्ञानिक सम्मान से कृषि विज्ञान केन्द्र बंजरिया द्वारा सम्मानित किया गया है।


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