कितने सम्मानित हैं मतदाता ?
आज समूचा देश राष्ट्रीय मतदाता दिवस मना रहा है। निष्पक्ष चुनाव कराकर लोकतांत्रिक सरकार चुनने के लिये साल 1950 में 25 जनवरी को ही ‘भारत निर्चाचन आयोग’ का गठन हुआ था। 25 जनवरी भारत कें हर नागरिक के लिये महत्वपूर्ण है। इस बात का गर्व प्रत्येक नागरिक को है कि उसे अपने पसंद और विचारों की सरकार चुनने का संवैधानिक अधिकार है।
आज के दिन सरकारी गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में निर्भीक होकर शत प्रतिशत मतदान करने की शपथ दिलाई जाती है। देश में करीब 91.05 करोड़ मतदाता है इनमें 47.26 करोड़ पुरूष और 43.78 करोड़ महिला मतदाता हैं। यहां 542 लोकसभा और 4126 विधानसभा सीटों के लिये हर पांच साल पर चुनाव होते हैं। हालांकि चुनाव में आधे मतदाता ही हिस्सा लेते हैं। तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद इसका प्रतिशत आगे नही बढ़ रहा है। देश के हर नागरिक को समझना होगा कि मतदान का प्रतिशत जितना अधिक होगा लोकतत्र उतना ही सशक्त होगा।
लोकनीति सीएसडीएस के रिसर्च फैलो की स्टडी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि साल 2017 से 2020 तक पद पर रहते हुए 168 सांसद, विधायकों ने दल बदल किया है। दल बदल करने वालों में 82 प्रतिशत यानी 138 लोगों ने भाजपा को चुना। भाजपा में जाने वालों में सबसे ज्यादा 79 या 57 प्रतिशत कांग्रेस के रहे। हालांकि, इसमें में पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक, सांसद, वरिष्ठ नेताओं आदि को शामिल नहीं किया है। सख्त कानून भी दल बदलने पर लगाम नही लगा सका। अब आप इससे अंदाजा लगा सकते समझ सकते हैं नेताओं ने मतदाताओं का कितना मान रखा है।
कल तक जो कांग्रेसी थे आज भाजपा में हैं। राजनीति की हवा बदली और कांग्रेस मजबूत हुई तो आज जो भाजपा मे हैं कल कांग्रेस में होंगे। इसमे मतदाता कहां खड़ा है ? मतदाता ऐसे दोराहे पर खड़ा है कि उसे वोट तो करना है। आज वो जिस नेता के साथ खड़ा होता है कल वो नेता दूसरे के साथ जाकर खड़ा हो जाता है। इस गिरावट का नतीजा यह है कि अब न मतदाताओं की कोई विचारधारा रही और न नेताओं की। उनके निजी फायदे का समीकरण जहां सेट हो जाता है वहीं जाकर वे चिपक जाते हैं। शायद यही कारण है कि आधे मतदाता ही चुनावों में हिस्सा ले रहे हैं। राजनीति में आ रही गिरावट को रोकना होगा जिससे मतदाताओं का भी सम्मान बचा रहेगा और राजनीति में भी चरित्र दिखाई देगा साथ ही देश को एक सशक्त लोकतंत्र मिलेगा।