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सेण्ट बेसिल स्कूल से फीस माफ कराने के लिये धरना देने वाले अभिभावक निशाने पर

Posted on: Wed, 25, Nov 2020 6:11 PM (IST)
सेण्ट बेसिल स्कूल से फीस माफ कराने के लिये धरना देने वाले अभिभावक निशाने पर

बस्ती, उ.प्र. (अशोक श्रीवास्तव) उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनने के लिये हर संभव कदम उठा रही है। जिलों में बैठे प्रशासनिक अधिकारी भी सरकार की इस मंशा को साकार करने में जुटे हैं। यही कारण है कि सरकार के विरोध में धरना प्रदर्शन कर अपना हक मांगने वालों के साथ अपराधियों जैसा सलूक किया जा रहा है। बस्ती जनपद में भी एक ऐसा मामला चर्चा में है जिसमे एक प्रशासनिक अधिकारी की कार्यशैली सवालों से घिरती नजर आ रही है।

दरअसल दो दिन पहले सेण्ट बेसिल स्कूल के अभिभावकों ने स्कूल गेट पर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। मामला यहां तक इसलिये पहुंचा क्योंकि स्कूल में कोई परीक्षा आयोजित होने वाली थी और फादर का कहना था कि जिनकी पूरी फीस जमा नही होगी उन्हे परीक्षा किट नही दिये जायेंगे। कोरोना काल में आर्थिक संकट का सामना कर रहे अभिभावक इस बात पर अड़े थे कि स्कूल में तीन चार महीने तक पढ़ाई नही हुई। कक्षायें नही चलीं। ऐसे में आधे सत्र की फीस वे जमा करने को तैयार हैं, और आधे सत्र की फीस स्कूल प्रबंधन माफ कर दे। लेकिन स्कूलों की ये मानसिकता हो इसका सवाल बहुत कम पैदा होता है। मौके पर प्रशासनिक अधिकारी पहुंचे और अभिभावकों से धरना समाप्त करने के लिये उन पर दबाव बनाने लगे।

आखिर में सहमति बनी कि सभी बच्चों को परीक्षा किट दी जायेगी और अभिभावकों की मागों पर विचार करने के लिये स्कूल मैनेजमेन्ट से वार्ता की जायेगी। इसके लिये 15 दिन का वक्त निर्धारित किया गया। बात यहां खत्म हो जानी चाहिये थी। फादर परीक्षा में व्यस्त हो जाते और अभिभावक 15 दिन के आश्वासन पर घर चले जाते। लेकिन ऐसा होता तो स्थानीय प्रशासन उन्हे अपराधी कैसे बना पाता। इसलिये इस कथानक में अभी एक और कड़ी जुड़नी बाकी थी। दो दिन बीतने के बाद एक बड़े प्रशासनिक अधिकारी के इशारे पर सेण्ट बेसिल स्कूल पर फीस माफ कराने के लिये धरने पर बैठे अभिभावकों की जांच शुरू करा दी गयी। इसके लिये सतेन्द्र द्विवेदी नाम के एक लेखपाल को जिम्मेदारी दी गयी। अब वह लेखपाल धरने में शामिल अभिभावकों की आय, उनके आय के स्रोत और व्यवसाय सहित तमाम जानकारियां जुटा रहा है।

कुल मिलाकर धरने में शामिल लोगों को प्रशासनिक चाबुक से डराने की कोशिश की जा रही है। सरकार की मंशा पर हो सकते हे ये अफसर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हों लेकिन एक बात बिलकुल तय है कि ऐसी मानसिकता रखने वाले अधिकारियों की इमानदार और जागरूक जनता रत्ती भर इज्जत नही करती। विरोध लोकतंत्र की आत्मा है। लेकिन कई बार सत्ता और पॉवर का नशा इस हद तक जा पहुंचता है कि इसके आगे लोकतंत्र और इसकी भावना नगण्य हो जाती है। जब अफसर सही गनत में फर्क न कर पाये तो आम नागरिक कितना बेहतर योगदान दे सकता है इसे आसानी से समझा जा सकता है। बेहतर होगा विरोध को जीवित रखा जाये, और ऐसे कदम न उठाये जायें कि सत्ता बदलने या पॉवर छिनने या खत्म होने पर अफसर जनता के बीच जाने में शर्म महसूस करें।


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