कृषि कानून की समीक्षा करे सरकार, बेमतलब नही है किसानों का आन्दोलन
कृषि कानून के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान पूरी तरह से तैयार होकर अहंकारी सरकार को सबक सिखाने निकले हैं। अभी तक कि रिपोर्ट है कि बैरिकेड्स, पानी की बौछार, कंटीले तार, आंसू गैस के गोले और रास्तों पर मिट्टी तथा पाइप डालकर किसानों का रास्ता रोकने की हर कोशिश नाकाम हुई है। सच्चाई का जब घमंड से सामना होता है तो ऐसी तस्वीरें उभरकर आती हैं। फिलहाल दिल्ली बॉर्डर पर हालात अच्छे नही हैं।
एक किसान की मौत भी हो चुकी है। न तो प्रदर्शनकारी किसान मानने वाले हैं और न ही सरकार झुकने को तैयार है। दोनो की यही स्थिति रही तो किसानों का प्रदर्शन ऐतिहासिक होने में देर न लगेगी। खबर आ रही है कि आन्दोलन की पृष्ठभूमि यूपी में भी तैयार हो रही है। सरकार को चाहिये देश के अन्नदाता किसानों से वार्ता कर सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करे वरना कहीं देर न हो जाये और आन्दोलन इस हद तक गुजर जाये जहां वार्ता की गुंजाइश और विकल्प के रास्ते बंद हो जाये।
यह नही भूलना चाहिये, प्रदर्शनकारी इसी देश के हैं और आन्दोलन उनका लोकतांत्रिक अधिकार है। उन्हे रोकने के लिये जिस प्रकार अवरोधक इस्तेमाल किये गये हैं जैसे लगता है इन रास्तों से होकर कोई आतंकी संगठन राजधानी में प्रवेश करने वाला हो। एक बार फिर से कृषि कानून की समीक्षा करने की जरूरत है। जिस कानून का इतना विरोध हो और सरकार जनता को विश्वास में लेने में विफल हो ऐसे कानून की जरूरत ही क्या है ? अशोक श्रीवास्तव की संपादकीय