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हेलमेट की अनिवार्यता

Posted on: Fri, 21, Jun 2019 10:48 AM (IST)
हेलमेट की अनिवार्यता

हेलमेट नहीं जिम्मेदार ड्राइविंग से सुरक्षा होती है। हेलमेट लगाने पर सिर्फ सामने ही दिखाई देता है, जबकि जिम्मेदार ड्राइवर की कई आखें होती हैं। हेलमेट लगाने के बाद आगे की सिर्फ दो आखें काम करती हैं। यहां की सड़कें, यातायात नियमों के प्रति बेपरवाही, ओवर स्पीड, ओवीलोडिंग और जिम्मेदारों के द्वारा लगातार इसकी अनदेखी सड़क हादसों की खास वजह है।

इन पर बहंस नही होती। लोगों को जागरूक करने के नाम पर अफसर स्कूली बच्चों के साथ फोटो खिंचवा लेते है और सरकारी बजट कागजों में खारिज कर खुद डकार लेते हैं। इसीलिये नतीजा सिफर है और दुर्घटनायें कम नही हो रही हैं। साहब यातायात जागरूकता रैली को हरी झण्डी दिखा रहे होते हैं और वहीं बगल से फर्राटे मारता बाइक सवार चला जाता है। स्टंट आये दिन सड़कों पर देखने को मिलते हैं। शराब पीकर गाड़ी चलाना आम बात हो गयी है। बाइकों से लेकर ट्रकों तक बेखौफ ओवरलोडिंग की जा रही है। इन सबको दरकिनार कर कहा जा रहा है हेलमेट लगा लीजिये जीवन सुरक्षित। अभी दो हफ्ता पहले फुटहिया चौराहे पर बुलेट सवार एक नौजवान की सड़क हादसे में मौत हो गयी। उसने हेलमेट लगाया था। हेलमेट उसकी जान नहीं बचा सका।

हेलमेट की अनिवार्यता पर कुछ लोगों से बात की गयी। जो निष्कर्ष निकलकर सामने आया उसके अनुसार हेलमेट से पहले यह गारण्टी ली जानी चाहिये कि फुल स्पीड में एनएच पर दौड़ रही गाड़ियों के आगे अचानक जानवर नही आयेगा, इल्लीगल कट बंद कराये जायेंगे, लोग रांग साइड नही आयेंगे, नशे में कतई गाड़ी नही चलाने दी जायेगी। जरूरत के स्थानों पर संकेतक, लाइटें और सड़क पर पेण्टिंग कराई जायेगी। ओवर स्पीड और ओवरलोडिंग में बिलकुल चालान नही होता, कभी कभार होता है तो बाइक का या टैम्पो का। ओवरलोडेड ट्रकें तो साहब की आमदनी का जरिया हैं। 3000 रूपया प्रति ट्रक सुविधा शुल्क तय है। करीब 3000 ट्रकें नियमित जनपद में चलती हैं। हराम की कमाने वाले अफसरों ने बाकायदा नेटवर्क बना रखा है।

कुल मिलाकर 90 लाख रूपये का कलेक्शन आता है। इसमे महकमे के बॉस से लेकर मंत्रालय तक का हिस्सा है। ये आमदनी केवल ट्रकों से है। डग्गामार बसों, टैॅम्पू से मिलने वाली हराम की कमाई भी जोड़ ली जाये तो इतना पैसा आ जायेगा कि इस पैसे से हर महीने एक गांव बस जायेगा। हमारा ध्यान हेलमेट पर है इसलिये हम विषयांतर नही होना चाहते। इतनी भारी भरकम वसूली के बाद भाड़ में जायें सड़क सुरक्षा और यातायात कानून। असल में जहां फोकस होनी चाहिये वहां नही हो रही है। गारण्टी ली जा रही है कि हेलमेट लगा लेने से जीवन सुरक्षित, फिर चाहे कार से भिड़ जाओ या ट्रक से। एक अनुभवी चालक ने बताया कि जब हम हेलमेट लगा लेते हैं तो आसपास की आवाज नही सुनाई देती। यहां तक कि साइड मांग रहा वाहन भी नही दिखता। दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है।

दुर्घटना होने पर हेलमेट लगाये चालक का दिमाग कुछ मिनट के लिये खराब हो जाता है, भले ही वह सुरक्षित हो, लेकिन उठने में उसे वक्त लग जाता है, इसी बीच कोई बड़ी गाड़ी आ गयी तो काम तमाम हो जायेगा। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि दुर्घटनाग्रस्त होने पर कुछ देर आखों के सामने अंधेरा हो जाता है हेलमेट भी सही स्थिति में नही रह जाता, अर्थात आखें ढक जाती है, चालक उठकर जान बचाने के लिये भागना चाहे तो कत्तई नही हो सकता, उसे कोई दूसरा ही आकर बंचा सकता है। दुर्घटनाओं को रोकना या कम करना है तो लोगों में ट्राफिक सेंस पैदा करना होगा, यातायात निमयों का सख्ती से पालन कराना होगा, गलत ढंग से गाड़ी चलाने वालों को सबक सिखाना होगा।

यदि आप 50 की स्पीड में बाइक लेकर जा रहे हों और आपके सामने पांच कदमों की दूरी पर कोई अचानक बाइक मोड़ दे तो हेलमेट क्या करेगा। लड़ना तो तय है। ऐसे ही जगहों पर ट्राफिक सेंस काम करता है। समझने की जरूरत है, बस दो सेकेण्ड में बाइक वहां से गुजर जायेगी, इसके बाद ही अपनी बाइक मोड़ें तो क्या बुरा हो जायेगा। तीन अलग अलग बाइको पर सवार होकर सड़क पर अगल बगल बात करते हुये चले जा रहे हैं, कहीं तो भिडेंगे ही, नही भिड़ेंगे तो ट्राफिक डिस्टर्ब करेंगे, इसमें हेलमेट क्या करेगा। एक बार एक नौजवान की बाइक के सामने एक बच्चा आ गया। चाहकर भी वह हादसा टाल नही पाया और बच्चा चोटिल हो गया।

नौजवान ने हेलमेट लगाया था। घटना चूंकि सड़क पर आबादी के बीच हुई इसलिये लोग लाठी डंडा लेकर आ गये। किसी ने ये नही सोचा गलती किसकी है। पहले नौजवान का स्वागत किया, फिर बच्चे को और उसे दोनो को अस्पताल ले गये। नौजवान ने मुझसे पूरे हादसे की जानकारी दी। मैने कहा तुम तो हेलमेट लगाये थे कैसे चोट लगी। उसने बोला हमे बिलकुल चोट नही लगी, हमें गांव वालों ने मारकर चोटिल किया। हादसे के बाद मेरा हेलमेट अल्टर हो गया। मसलन आंख के ऊपर आ गया। कुछ दिख नही रहा था। जब तक मै कुछ समझता, हेलमेट सीधा कर उसे सिंर के ऊपर से निकालता तब तक लठैत पहुंच चुके थे। भइया हेलमेट ने गडबड़ कर दिया। हमने पूछा वो कैसे। उसने कहा हेलमेट न होता तो हालात समझने में देर नही लगती और मैं मौके से भाग लिया होता।

मान लिया किसी को शहर में 15-20 लोगों से मिलना है। वह उतनी जगहों पर रूकेगा और हाथ में हेलमेट लेकर जायेगा, जो काफी असुविधाजनक लगता है। अपने साथ साथ हेलमेट के भी रखने की जगह खोजनी पड़ती है। बाइक में लटकाकर जाये तो पता चलेगा उसे महीने में कई हेलमेट खरीदने होंगे। आपको किसी अधिकारी से मिलने जाना है, हाथ मे हेलमेट ले जाकर उसके मेज पर तो रख नही देंगे। ऐसा लगता है कि शहरी सीमा में जहां लोगों को रोजाना छोटे छोटे काम निपटाने हैं और कई जगहों पर रूकना है वहां हेलमेट सुविधाजनक होने के बजाय सिरदर्द हो जाता है।

हां हेलमेट लगाने के फायदे हैं उसे इग्नोर नही किया जा सकता। हेलमेट लगाने से आपके बाल खराब नही होंगे। 100-50 किमी गाड़ी चलाने के बाद भी जब आप रूकेंगे तो आपके चेहरे पर तनाव और थकान नही होगा। लेकिन यह तय है कि आपके पास ट्राफिक सेंस नही है, दूसरे को साइड देने का धैर्य नही है, दूसरों की सुविधाओं का ध्यान नही है तो हेलमेट क्या आपको पूरा पूरा स्टील से कवर कर दिया जाये फिर भी नहीं बचाया जा सकता।


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