सुबह कुटाई, शाम को मिठाई ! का अब इहै पत्रकारिता कहाई ?
अशोक श्रीवास्तव की संपादकीय- पत्रकारिता मुश्किल, जोखिम से भरा कम आय का स्रोत है। लेकिन ग्लैमर, सम्मान, स्वाभिमान और सिर उठाकर चलने का हुनर कोई सिखाता है तो वह पत्रकारिता ही है। पैसों के अलावा ये सारी उपलब्धियां तब हासिल होती हैं जब पत्रकारों का अपना जमीर होता है, जुल्म, अत्याचार, दुराचार के खिलाफ निडर होकर अभियक्ति देने का जज्बा होता है।
कमजोर, निर्दोष लोगों की मदद करने की सोच होती है। इन सबके अभाव में पत्रकारिता का तेवर हर जगह कमजोर हो जाता है, कदम कदम पर जमीर और स्वाभिमान का सौदा होने लगता है। यूपी के उन्नाव जिले में घटी एक ताजा घटना याद दिलाना चाहता हूं। शनिवार को ब्लाक प्रमुख चुनाव का कवरेज कर रहे पत्रकार कृष्णा तिवारी को सैकड़ों लोगों के बीच एक बदतमीज सीडीओ ने दौड़ा दौड़ाकर पीटा। पास में खड़े एक अपराधी किस्म के सफेदपोश ने भी हाथों और लातों से पत्रकार की कुटाई की। इस पूरी घटना को मौके पर मौजूद सीओ देखते रहे।
उन्होने पत्रकार को बचाने या मारने वालों को रोकने का बिलकुल प्रयास नही किया। इस पूरी घटना में सीडीओ और तथाकथित सफेदपोश अव्वल दर्जे के दोषी हैं। लेकिन सीओ का दोष उनसे कम नहीं। पुलिस का मोटो ही है लोगों को सुरक्षा देना और अपराध तथा अपराधियों पर नियंत्रण करना। लेकिन पुलिस का स्वभाव जिस दिन मानवीय और न्यायप्रिय हो जायेगा उस दिन देश की आधी समस्यायें स्वतः समाप्त हो जायेंगी। ऐसा संभव नही हो सकता इसलिये संर्दिभत सीओ जैसे किरदार अक्सर सामने आते रहते हैं। फिलहाल पत्रकार के पीटे जाने का वीडियो वायरल होने के बाद देशभर के पत्रकारों ने हुंकार भरी।
आरपार का ऐलान होने लगा। प्रेस काउंसिल तक एक्शन मोड में आ गया। हर जगह से धरना प्रदर्शन ज्ञापन की धमकियों आने लगीं। मुद्दा नेशनल बन गया था। नेता के साथ ही सीओ सीडीओ के खिलाफ केस दर्ज कर वहां से हटाने की मांग होने लगी। हमने भी उन्नाव डीएम से बात करने का प्रयास किया। यूपी के जिलाधिकारियों की एक खास आदत है, पब्लिक से कनेक्ट रहने के लिये सरकार ने उन्हे जो सीयूजी नम्बर दिया है वह या तो उठता नही और उठता है तो कस्टमर केयर की तरह पहले अर्दली, फिर स्टेनो उठाता है। फिर इशारा होता है कह दिया जाता है, साहब मीटिंग में हैं। मेरे साथ भी ऐसा हुआ। उन्नाव में रविवार दिनभर माहौल गरम रहा।
प्रशासनिक मीटिंग होती रही। सभी डैमेज कंट्रोल में लगे थे, इसी बीच शाम को आरोपी सीडीओ और कथित पत्रकार की उक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमे दोनो उक दूसरे को मिठाई खिला रहे थे और सामने गिफ्ट बॉक्स भी रखा था। यह दृश्य देखकर उन सभी पत्रकारों का खून पानी हो गया जो कृष्णा की आवाज बनकर पूरे सिस्टम को सबक सिखाने की तैयारी कर चुके थे। हर जगह से सवाल पूछे जा रहे हैं कितने में बिका होगा कृष्णा तिवारी ? ऐसा स्वभाव है तो उसने पत्रकारिता क्यों चुना ? क्या पत्रकार ने सीडीओ को मारा होता तो पास खड़ा सीओ तहरीर का इंतजार करता ? या सीडोओ को पत्रकार इसी तरह पीट दें तो सीडीओ कितना रूपया लेकर मिठाई खाने को तैयार होंगे ? ऐसे अनेकों बेतुके और स्वाभाविक प्रश्न गूंज रहे हैं।
फिलहाल इनका जवाब ढूढने से अच्छा है देशभर के पत्रकार एकजुट हों, अपनी ताकत और पत्रकारिता के महत्व को समझें, जमीर हिलता हो तो कोई और रास्ता अख्तियार कर लें, आज भी देश की जनता पत्रकारों पर विश्वास करती है। माइक आईडी, डायरी पेन, बाइक, स्मार्टफोन और सोने की चेन पहनकर जनता को गुमराह न करें। अनेक कार्य हैं जिन्हे करके सम्मानजनक जीवन जीया जा सकता है। जनता से अपील है कि ऐसे पत्रकारों से सावधान रहें। वक्त आये तो सबक सिखायें, ऐसे लोग आपकी आवाज नही बन सकते। ये तो अपनी टीआरपी इसलिये चमका रहे हैं ताकि वक्त पर इनके जमीर की लोग ऊंची कीमत लगायें।