यूपी के हालात पर मौन क्यों हैं माननीय ?
अशोक श्रीवास्तव- यूपी में हत्याओं और बलात्कार का दौर जारी है। ताबड़तोड़ हत्यायें हो रही है। सुरक्षा के नाम पर नागरिक भयभीत हैं, पुलिस और पत्रकारों की हत्या ने कानून की हनक और इकबाल को बेहद कमजोर किया है। प्रचण्ड बहुमत की सरकार बनाकर जनता को असली पछतावा हो रहा है। हत्याओं का ये आलम है कि पूरा पूरा परिवार एक झटके से खत्म कर दिया जा रहा है।
लखनऊ, प्रयागराज, आगरा, वाराणसी जैसे शहरों में रोज मर्डर हो रहे हैं। सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिये खुद अपनी पीठ थपथपा रही है। मुख्यमंत्री के प्रति असंतोष उभरकर सामने आ चुके हैं। हैरत की बात ये है कि ये सरकार रामराज्य के सपने दिखाकर सत्ता में आई थी। रामराज्य की तस्वीरें इतनी भयावह होंगी किसी ने कल्पना भी नही की होगी। जिस प्रदेश को एक मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री मिलकर चला रहे हों वहां जनता इतनी लाचार, बेबस और भयभीत होगी, भरोसा नही होता। लेकिन हालात खुद गवाह हैं। राज्यपाल और राष्ट्रपति की भी देश प्रदेश के हालातों को संभालने में भी कोई भूमिका होती है समझ से परे है।
आखिर इतने बड़े पदों पर बैठे लोगों की चुप्पी कब टूटती है। क्या वे देश के हालात नही देख रहे हैं या उनकी संवैधानिक शक्ति कम है ? या फिर अभी हालात ऐसे नही हैं कि वे कुछ बोलें ? फिलहाल जनता में डर व्याप्त हो चुके हैं। पुलिस पत्रकार शंकाग्रस्त है। ऐसे में आप जान सकते हैं कोई 100 परसेन्ट परफॉर्म नही कर सकता। देश में कोरोना के चलते बिगड़े हालातों को 5 किलो गेहूं और बैंक खातों में 1 हजार रूपये धनराशि भेजकर संभालने की कोशिश हो रही है।
इन सब हालातों के बीच देशभर में भाजपा के दफ्तर चमचमा रहे हैं। सरकारी योजनाओं को निचले स्तर पर पहुंचाने में जिम्मेदार पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रहे हैं। नतीजा ये है कि किसी को दो पीएम आवास मिल रहा है तो कोई वर्षों से झोपड़ी में रह रहा है। गरीबों के राशन का 25 फीसदी सिस्टम की पेट में चला जा रहा है। प्रधान और कोटेदार दो साल में अमीरों की लिस्ट में आ जा रहे हैं।
शिकायतों पर जांच का हवाला देकर जनता को टरकाया जाता है। दोष सिद्ध होने पर भी भ्रष्टाचारी अफसरों की गोंद में बैठा रहता है। बगैर रिश्वत लिये पुलिस डीएल गायब होन की सूचना भी नही दर्ज करती। लम्बी और जटिल न्यायिक प्रक्रिया पर किसी की जुबान नही चलती। सरकार नेता और अफसरों की क्या भूमिका है ? क्या वे इन हालातों से परिचित नही हैं या फिर सुधार नही चाहते ? फिलहाल जनता को भ्रम की स्थिति से बाहर निकालना होगा, वरना जन विश्वास खोने का नतीजा सभी जानते हैं।