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पूरे बागीचे में आग लगी थी और एक पेड़ जल रहा था..

Posted on: Wed, 01, Apr 2020 8:42 PM (IST)
पूरे बागीचे में आग लगी थी और एक पेड़ जल रहा था..

अशोक श्रीवास्तवः पूरे बागीचे में आग लगी थी और एक पेड़ जल रहा था। ये लाइनें करीब तीन दशक पहले हमने एक जलसे में सुनी थीं। हालांकि हमारी बौद्धिक क्षमता इसका अर्थ निकाल पाने की नही थे, शायद इसीलिये मै जलसे को बीच में ही छोड़कर चला आया था। आज ये लाइने इसलिये याद आ गयी क्योंकि बस्ती जिला प्रशासन का हाल भी इन दिनों ऐसा ही कुछ है। दरअसल कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुये जहां मीडिया, प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस, डाक्टर, सामाजिक संस्थाओं की भूमिका पहले से कई गुना ज्यादा अहम हो गयी हैं वहीं जिले का खुफिया तंत्र बेहद कमजोर हो गया है।

जबसे कोरोना का खौफ पसरा है तबसे सूचनाओं के आदान प्रदान में मीडिया को बेहतर सहयोग नही मिल पा रहा है। सवालों के जवाब देने के लिये जो मोबाइल नम्बर प्रचारित किये जाते हैं जरूरत पड़ने पर उठते ही नहीं। अधिकांश अधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि डीएम साहब ने कुछ बोलने से मना किया है। स्वास्थ्य महकमे के जिम्मेदारों की जवाबदेही जितनी ज्यादा है उतना ही वे मीडिया को गुमराह करने में माहिर हैं। ऐसा भी देखा गया है कि वे रहते हैं डीएम आवास पर और बताते हैं जिला अस्पताल में हैं। पत्रकार को सिर्फ सूचना लेनी रहती है, वे चाहें तो जानकारी फोन पर ही दे सकते हैं।

लेकिन ऐसा करने की बजाय पे पल्ला झाड़ना या झूठ बोलकर गुमराह करना उचित समझते हैं। खैर जिस तरह पत्रकारों ने अधिकारियों को कैटेगरी में बांट दिया है उसी तरह स्थानीय प्रशासन ने भी पत्रकारों को कैटेगरी में बांटना शुरू कर दिया है। इसका ताजा नज़ीर उस वक्त देखने को मिला जब जिलाधिकारी की प्रेस कान्फ्रेंस में कुछ गिने चुने पत्रकार ही बुलाये गये। संख्या करीब 6-7 थी। वर्तमान जिलाधिकारी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले पत्रकारों की कैटेगरी क्यों बनानी पड़ी समझ से परे हैं।

क्या प्रशासन सभी को सूचनायें नही देना चाहता या फिर जिन्हे प्रेस कान्फ्रेंस में बलाया गया था उन्ही बस्ती के पत्रकारिता की धुरी समझता है। इसको लेकर दिन भर पत्रकारों में चर्चा होती रही। हालांकि बताया जा रहा है कि इतनी कम संख्या में भी किसी पत्रकार ने सवालों का ऐसा तड़का लगाया कि चेहरे की भांव भंगिमा कुछ देर के लिये बदल गयी। बेहतर होगा प्रशासन अपना खुफिया तंत्र मजबूत करे, मीडिया से समन्वय बना रहे और बहानेबाज अफसरों को कम से कम जवाबदेही से दूर रखे अथवा उनकी कार्य संस्कृति की ठीक ढंग से समीक्षा करे।


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