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08 मई 2024
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सरकार को पसंद नही हैं सच बोलने वाले पत्रकार

Posted on: Fri, 13, Oct 2023 12:29 AM (IST)
सरकार को पसंद नही हैं सच बोलने वाले पत्रकार

पत्रकारों को सावधान हो जाना चाहिये। सब बोलने और लिखने वाले तथा सत्ता की आखों में आंखें डालकर सवाल पूछने वालों को मोदी सरकार बर्दाश्त नही कर पा रही है। पत्रकारों पर दबाव बनाया जा रहा है, उन्हे तरह तरह से डराने की कोशिश की जा रही है। एक तरह से इसे अघोषित आपातकाल कहा जाये तो अतिशयोक्ति नही होगा। आप समझ सकते हैं पत्रकारिता पर भारत में किस तरह से सुनियोजित हमले हो रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने 3 अक्टूबर की रात न्यूजक्लिक वेबसाइट के फाउंडर प्रबीर पुरकायस्थ और एक अन्य पत्रकार अमित चक्रवर्ती को अरेस्ट कर लिया। इन पर फॉरेन फंडिंग लेने का आरोप है। सुबह 30 से ज्यादा लोकेशंस पर छापे मारे गए थे। 37 लोगों से पूछताछ की गई।

इससे पहले न्यूजक्लिक से जुड़े पत्रकार अभिसार शर्मा, उर्मिलेश और परंजॉय गुहा ठाकुरता को पुलिस ले गई थी। मुंबई में एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के घर भी मुंबई पुलिस की एक टीम पहुंची थी। दिल्ली पुलिस ने यह कार्रवाई गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत की है। दरअसल 5 अगस्त को न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि न्यूजक्लिक को एक अमेरिकी अरबपति नोवेल रॉय सिंघम ने फाइनेंस किया था। वे चीनी प्रोपेगैंडा को बढ़ावा देने के लिए भारत समेत दुनियाभर में संस्थाओं को फंडिंग करते हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर 17 अगस्त को न्यूजक्लिक के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।

इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 153 (ए) के साथ-साथ यूएपीए की कई धाराएं लगाई गई हैं। न्यूजक्लिक के फाउंडर और एडिटर-इन-चीफ प्रबीर पुरकायस्थ को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ऑफिस लाया गया। सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ न्यूजक्लिक वेबसाइट के लिए आर्टिकल लिखती हैं। हालांकि, पुलिस ने अब तक इस केस से तीस्ता के कनेक्शन के बारे में कुछ नहीं कहा है। तीस्ता को गुजरात दंगों से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई को जमानत दी थी। उन्हें पिछले साल 25 जून को गिरफ्तार किया गया था। जिन पत्रकारों के यहां छापा मारा गया, उनमें प्रमुख रूप से प्रबीर पुरकायस्थ, संजय राजौरा, उर्मिलेश, भाषा सिंह, परंजॉय गुहा ठाकुरता, ऑनिंदो चक्रवर्ती, अभिसार शर्मा और सोहेल हाशमी शामिल हैं।

कहा जा रहा है कि ये सभी न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक से जुड़े हुए हैं। अभिसार शर्मा नोएडा और उर्मिलेश गाजियाबाद में रहते हैं। पत्रकारों ने ट्वीट कर बताया है कि पुलिस ने उनके घरों में रेड डाली है और उनके मोबाइल फोन और लैपटॉप जब्त कर लिए हैं। इसे निजता के अधिकारों का हनन बताया जा रहा है। सवाल ये उठता है कि फारेन फण्डिंग तो पीएम केयर फण्ड में भी हुई है, यहां तक कई राजनीतिक दलों को भी फारेन फण्डिंग होती है। इन्हे सार्वजनिक किया जाना जरूरी हो सकता है लेकिन फण्डिंग गैरकानूनी कैसे हो गया ?

इस बीच एक बात हम साफ तौर पर कहना चाहेंगे कि किसी भी देश में लोकतंत्र को खत्म करने के लिये पहले संवैधानिक संस्थाओं को गुलाम बनाया जाता है, फिर विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ उनकी आवाज दबाने के लिये इन्ही संवैधानिक संस्थाओं को इस्तेमाल किया जाता है, दोहरे मापदंड अपनाये जाते हैं और आखिर में पत्रकारों पर नकेल कसी जाती है। जब तक पत्रकारिता आजाद है तब तक शासक कितना भी ताकतवर हो देश में लोकतंत्र कायम रहेगा। लेकिन पत्रकारों की आजादी छीनने का मतलब देश में लोकंतंत्र आखिरी सांसें ले रहा है।

मणिपुर इसी देश का हिस्सा है और महीनों से जल रहा है। यहां रोजाना हत्यायें हो रही हैं, महिलाओं को नंगा करके घुमाया जा रहा है। प्रधानमंत्री के आखों पर पट्टी है और उनके कानों मं विधवा हो रही महिलाओं और अनाथ हो रहे बच्चों की चीखें नही सुनाई दे रही हैं। मुख्य धारा की मीडिया से ये खबरें नदारद हैं। क्योंकि उन्होने राजा के हाथों अपना जमीर बेंच दिया है। उज्जैन में दुष्कर्म की शिकार 15 साल की अर्द्धविक्षिप्त किशोरी अर्द्धनग्न सड़क पर 8 किमी. पैदल चलती रही, लोगों से मदद की भीख मांगती रही, कोई आगे नही आया। यहां तक कि किसी ने उसे तन ढकने को कपड़ा तक नही दिया।

फिलहाल हम बताना चाहते हैं कि पत्रकारों का काम है सच को उजागर करना, शासन सत्ता का गलत इस्तेमाल कर उन्हे डराया धमकाया जा सकता है, उन्हे जेल भेजा जा सकता है लेकिन सच का रास्ता नही रोका जा सकता है। सच्चाई बाहर आने के लिये वक्त आने पर अपना माध्यम स्वतः चुन लेती है।


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