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06 मई 2024
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समाजसेवी माने गुण्डा

Posted on: Thu, 20, Sep 2018 8:32 PM (IST)
समाजसेवी माने गुण्डा

अशोक श्रीवास्तवः गुण्डों को गुण्डा कहने की हिम्मत बहुत कम लोगों में है। प्रशासन के भी हाथ पांव फूलने लगते हैं। लेकिन समाज के सम्भ्रान्त लोगों को या ऐसे लोग जो दूसरों के लिये अपना बहुत कुछ त्याग सकते हैं उन्हे लुक्खा, गुण्डा चाहे जो कह लीजिये और इससे भी मन न भरे तो ठग भी कह सकते हैं। आधुनिक समाज की डिक्शनरी से निकले ये वे शब्द हैं जिनका प्रयोग हर बेइमान, भ्रष्ट और चरित्रहीन उस व्यक्ति के लिये करता है जो स्वाभिमान के साथ सिर उठाकर जीता है और अपना कीमती वक्त सामाजिक सरोकारों को समर्पित कर देता है। ये वे लोग होते हैं जो अपने साथ साथ समाज, देश और अभाव में जीवन रहे लोगों के फिक्रमंद होते हैं। ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी बस्ती कोतवाली थाना क्षेत्र के सुनील कुमार भट्ट के खिलाफ स्थानीय प्रशासन ने गुण्डा एक्ट लगाया है। ये वही सुनील भट्ट हैं जिनके लगाये सैकड़ों पौधे लोगों को छाया दे रहे हैं, शादी समारोहों में जाकर नये जोड़ों को निःशुल्क पौधा भेंट कर उनसे हाथ जोड़कर कहते हैं वर वधू दोनो एक एक पौधा अपनी ससुराल में लगायें और उसकी देखभाल करें। जितना ही ये पौधे हरे भरे होंगे उनका वैवाहिक जीवन उतना ही सुखमय होगा। पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में अपनी मागों को लेकर दिल्ली के जंतर मंतर पर कई दिन तक उपवास कर चुके हैं।

सड़क किनारे प्रसव पीड़ा से कराह रही एक अर्द्धविक्षिप्त महिला को ले जाकर अस्पताल में एडमिट करवाते हैं, अनुमान लगाया गया कि वह दुराचार की शिकार थी। हराम की दौलत कमाते कमाते जिनका जमीर मर चुका है ऐसे कुछ लोग उस महिला को रातोरात अस्पताल से डिस्चार्ज करवा देते हैं शायद इसलिये कि वह एक अक्षम महिला थी और रिश्वत देकर उन्हे खुश नही कर सकती थी। सुनील ने स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाया आखिरकार षडयंत्रकारियों ने महिला को दूसरे दिन लाकर एडमिट कराया। महिला ने एक बेटे को जन्म दिया। अर्द्धविक्षिप्त होने के कारण उसे बनारस के शेल्टर हाउस में भेज दिया गया, बेटे को अलग शेल्टर हाउस में। दुधमुहे बच्चे को मां के साथ रखने, मां का आधार कार्ड सर्च करवाकर उसकी पहचान करने तथा उसके साथ हुई अनहोनी की जांच कराने के लिये आज भी संघर्ष कर रहे हैं।

देवरिया के शेल्टर हाउस से गायब बस्ती के गौर विकास खण्ड की लड़की के बारे में जब सुनील भट्ट ने पता करना शुरू किया तो इसके तार स्थानीय प्राबेशन विभाग के एक अधिकारी से जुड़ने शुरू हो गये। सुनील एक एक कड़ी जोड़ने में जुट गये। खोजी स्वभाव होने के कारण सुनील भट्ट उस लड़की के पिता, परिवार से मिले, देवरिया गये, सम्बन्धित विभाग और अफसरों से लिखा पढ़ी की। पूरे मामले से ध्यान हटाने तथा अपने कृत्यों पर परदा डालने के इरादे से विभाग के दबंग अफसर सुनील के पीछे पड़ गये, बताया जा रहा है कि सुनील के ऊपर गुण्डा एक्ट का मुकदमा उन्ही की साजिश का नतीजा हैं।

स्थानीय प्रशासन ने तो सुनील को गुण्डा करार दिया है लेकिन हम किस मुंह से उन्हे गुण्डा कहें। देखरेख के अभाव में टेढे हो चुके पौधे को सहारा देकर उसे खड़ा करते उन्हे हमने देखा है, रास्ते में पड़े ईंट पत्थर वे साइकिल से उतरकर इसलिये हटा देते हैं कि कोई दोपहिया वाहन अचानक इस पर चढ़ेगा तो चालक संतुलन खो देगा और हादसा हो जायेगा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो सुनील भट्ट को एक बेहद संवेदनशील, सामाजिक सिद्ध कर सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोगों के प्रार्थना पत्र पर जो शायद खुद ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं पुलिस ने उन पर गुण्डा एक्ट का मुकदमा ठोंक दिया।

पता करने का प्रयास नही किया गया कि सुनील गुण्डा है या समाजसेवी। फिलहाल पुलिस उन्हे गुण्डा मान रही है, उनका फोटो हम इस आशय ये प्रकाशित कर रहे हैं कि समाज भी उन्हे पहचान ले कि उन्होने अभी तक कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया है और उनसे समाज को कितना खतरा है। मामले में सुनील को न्याय नही मिला तो गुण्डों और समाजसेवी में फर्क करना मुश्किल हो जायेगा।


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