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शिक्षक दिवस पर विशेषः वो क्या पढ़ा रहे हैं और हम क्या पढ़ रहे हैं ?

Posted on: Sat, 05, Sep 2020 4:01 PM (IST)
शिक्षक दिवस पर विशेषः वो क्या पढ़ा रहे हैं और हम क्या पढ़ रहे हैं ?

अशोक श्रीवास्तव- शिक्षक तनख्वाह के लिये पढ़ा रहा है और विद्यार्थी नौकरी पाने के लिये पढ़ रहा है। इसी सीमित सोच के कारण गांधी, सुबास, आजाद और विवेकानंद के सपनों का भारत नही बन रहा है। सब लोग मान चुके हैं सम्पूर्ण भारतवर्ष में ये विभूतियां केवल एक अदद थीं, उसके बाद न हुईं और न आगे होंगी। सभी स्वार्थ में पढ़ रहे हैं और सभी स्वार्थ में पढ़ा रहे हैं।

राष्ट्र निर्माण का कच्चा माल कहां से आयेगा किसी को नही मालूम। न जाने कैसे पढ़ा रहे हैं कि सामाजिक बुराइयां कम नही हो रही हैं, नौकरी में आने के बाद लोग बगैर रिश्वत और भ्रष्टाचार का सहारा लिये अपनी गृहस्थी नही चला पा रहे हैं, और ना जाने लोग कैसे पढ़ रहे हैं कि उनका जमीर कदम कदम पर अपनी कीमत लगा रहे हैं। कोई पढ़ लिखकर कामयाब हो जाता है तो लोग गुरू का गुणगान करते हैं, वे यह नही सोच पाते कि सामने वाला न पढ़ना चाहा होता तो गुरू चाह कर भी उसे ज्ञान नही दे पाता। यहां हम यह बताना चाहते हैं कि गुरू की महिमा अनंत है लेकिन शिष्य की लगन भी उससे कम नही।

कोई इसलिये महान नही हुआ कि उसे किसी विषय की ज्यादा जानकारी थी, बल्कि इसलिये वह महान बना कि उसकी पढ़ाये गयी बातों पर अमल करने वाले लोग थे, जिनके कर्मों ने उन्हे महान बना दिया। संक्षेप में कहा जाये तो यह कहना उचित होगा कि गुरू शिष्य एक दूसरे के पूरक हैं। गुरू का दिया ज्ञान यदि क्लर्क की नौकरी पाने के लिये है यह समझ लेना चाहिये कि ज्यादा दिनों तक न शिष्य का ज्ञान रहेगा और न गुरू की महिमा। गुरू हमेशा शिष्य से गौरवान्वित हुआ है और होता रहेगा। दो दशकों में बहुत कुछ बदला है, मूल्यों में गिरावट आई है।

शिष्य ने दोयम दर्जे का आचरण किया है तो गुरू का चरित्र भी बेदाग नही रहा। इन दोनो के सामंजस्य से समाज बन रहा है। जैसा दर्पण वैसी शक्लें दिख रही हैं। आज भी कुछ शिक्षक ऐसे हैं जिनकी परछाई मात्र शिष्य के भीतर का अंधेरा दूर कर जाती है, शिष्य भी ऐसे है जो गुरू की आभा मंडल में आने के बाद एक अदृश्य कनेक्शन से उसका सारा स्नेह खींच लेते है। आज शिक्षक दिवस है। बच्चों की उम्र सीखने की तो होती है, लेकिन बहकने की भी होती है। ऐसे में स्नेह के साथ शिक्षक को सख्त व्यवहार भी अपनाना होगा।

बिलकुल नारियल की तरह। जो ऊपर से बहुत सख्त होता है लेकिन अंदर बेहद मुलायम और मीठा। आज के दिन शिक्षकों को संकल्प लेना होगा कि वे ही समाज के असली शिल्पी हैं। स्वार्थपरक शिक्षा से ऊपर उठकर वे विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान दें कि वह एक अच्छा नागरिक बनना अपना पहली योग्यता समझे और पढ़कर राष्ट्र निर्माण में बढ़चढ़कर हिस्सा ले। यह कभी नही भूलना चाहिये कि संगमरमर जैसी सड़कें, चमचमाते हवाईअ्ड्डे, हवरईजहाज जैसी रेलें नागरिकों की सुख सुविधा के लिये, इससे समाज नही बनता। समाज ऊची सोच, चरित्र, इमानदारी, परस्पर सहयोग, आपसी मोहब्बत, भाईचारा और आत्मनिर्भरता से बनता है।


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