राम को पूजना है तो पहले अहंकार को खत्म करो- अशोक श्रीवास्तव
रावण के 10 शीश 10 प्रकार के अहंकार के प्रतीक थे। मर्यादा पुरूषोत्तम ने रावण का बध कर 10 प्रकार के पापों का अंत किया था। ये 10 पाप हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी। इसके बाद मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम लक्ष्मण, सीता तथा अपनी सेना के साथ वापस अयोध्या लौटे थे। इस खुशी में अयोध्या नगरवासियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी।
लोगों ने घी के दिये जलाकर पूरी अयोध्या को रोशनी से जगमगा दिया था। तभी से दशहरे का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। लोग अपने घरों की विधिवत साफ सफाई करके हर्ष और उल्लास के साथ यह पर्व मनाते हैं। रावण के पुतले जलाये जाते हैं और बुराइयों को खत्म कर अच्छाइयों को अपनाने का संकल्प लिया जाता है। दशहरा को ही विजयादशमी कहते हैं। इस पर्व को मनाने की सार्थकता तब होगी जब हममें से हर व्यक्ति आज के दिन अपने भीतर की बुराइयों को खत्म करके सदमार्ग पर चलने का संकल्प ले।
हालांकि यह बहुत कठिन कार्य है, क्योंकि व्यक्ति को खुद के भीतर की बुराइयां नही दिखती हैं, और जो अपनी बुराइयों को देख पाता है उसे उन बुराइयों को खत्म करने में वक्त भी नही लगता। हर कोई व्यक्ति, किसी के पास कम हो या ज्यादा अहंकार में जी रहा है। अहंकार के कारण वह खुद अपना मूल्यांकन करने की क्षमता खो देता है और उसे दूसरों की बुराइयां फटाक से दिख जाती हैं। जबकि खुद को सर्वश्रेष्ठ मान बैठता है।
यही कारण है कि हमारे पूर्वजों और आराध्यों के आदर्श चरित्र होने के बावजूद हम उन्हे अपना नही पाते। नतीजा ये है कि आज हर व्यक्ति के भीतर रावण जिंदा है। हम राम की पूजा अर्चना करते हैं, अनके आदर्शों पर गर्व करते हैं किन्तु अपने भीतर का रावण नही मार पाते। जबकि बुराइयों को खत्म कर उन पर विजय प्राप्त करना ही भगवान राम की असली पूजा है। आज दशहरा है आइये संकल्प लें कि अपने भीतर की बुराइयों को खत्म कर देंगे और कोशिश करेंगे कि कि हमसे काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी जैसे पाप न हों।