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राजनीतिक संकट से कैसे उबरेंगे सपा के दिग्गज

Posted on: Fri, 22, Feb 2019 10:54 AM (IST)
राजनीतिक संकट से कैसे उबरेंगे सपा के दिग्गज

अशोक श्रीवास्तवः सपा बसपा के बीच सीटों का बंटवारा होने के बाद तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है। खबरों के मुताबिक 38 सीटों पर बसपा और 37 सीटों पर सपा अपनी ताकत आजमायेगी। मुलायम सिंह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने का आर्शीवाद देकर पहले ही सपा कार्यकर्ताओं का भ्रम तोड़ चुके हैं। दूसरी ओर राजनीतिक तजुर्बेकार बताते हैं कि बसपा सुप्रीमों के जो करीब गया उसे वनवास झेलना पड़ा। इशारा भाजपा की ओर है जब मायावती और कल्याण सिंह की साझा सरकार बनी थी।

तय था कि ढाई ढाई साल दोनो मुख्यमंत्री रहेंगे। मायावती ने अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन कल्याण सिंह को नसीब नही हुआ। नतीजा ये हुआ कि भाजपा को वनवास झेलना पड़ा। 2014 में नरेन्द्र मोदी का जादू चला और 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। इस बार भी बुआ भतीजे के गंठबंधन का फायदा बुआ को ही होगा और सपा सिकुड़ती नजर आयेगी। इस वक्त बुआ का जादू भतीजे पर सिर चढ़कर बोल रहा है। इसी का फायदा उठाकर बुआ भी सपा को बटोरने में कोई कसर नही छोड़ेंगी।

बस्ती के संदर्भ में हम बात करें तो गठबंधन के फैसले के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह के सामने राजनीतिक संकट आ गया है। दो धड़ों में बंटी सपा में वे ऐसे गुट में हैं जहां उनका महत्व लगातार कम किया जा रहा है। विद्यार्थी जीवन से शुरू हुई राजनीति ने उन्हे अच्छा खासा अनुभव दिया है, फैसले लेने में भी वे माहिर हैं। लेकिन सपा मुखिया अखिजेश यादव ने जब पार्टी में उनका महत्व कम करना शुरू किया तो वे फैसले नही ले पाये। उनके सामने तीन रास्ते थे, अखिलेश के साथ बने रहते, शिवपाल यादव की नई पार्टी में चले जाते या फिर कांग्रेस या भाजपा में अपनी जमीन तैयार करते। अखिलेश के नेतृत्व वाली सपा में उन्हे पुराना सम्मान मिलना नही था, शिवपाल की नई पार्टी उन्हे स्थापित नही कर पाती ऐसे में तीसरा विकल्प ही उनके सामने बंचा था। किन्तु वे फैसला नही ले पाये और आज राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं।

बस्ती मंडल की तीनो सीटें बसपा के खाते में जाने के बाद चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है कि राजकिशोर सिंह का अगला पड़ाव कांग्रेस होगा। हालांकि जिला कांग्रेस कमेटी में अधिकांश नेता उनकी ज्वाइनिंग का विरोध कर सकते हैं लेकिन आखिर में नेतृत्व का फैसला मानना पड़ेगा। फिलहाल आगामी लोकसभा चुनाव उनका राजनैतिक भविष्य तय करेगा, यदि इसमें वे खुद को दोबारा स्थापित करने में असफल होते हैं तो पूरी तरह हाशिये पर जा सकते हैं। दूसरी ओर यदि कांग्रेस उन्हे स्वीकार करती है और वे लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो एक बार फिर परिस्थितियां उनके पक्ष में हो सकती हैं। मंडल की तीनों सीटें तब तक बसपा के खाते में नही गई थी, हर जगह यही चर्चा हो रही थी कि इस बार राजकिशोर सिंह विरोधियों के छक्के छुड़ा देंगे। लेकिन सीटों के बंटवारे ने मंशा पर पानी फेर दिया। लेकिन ये कयास उनके व्यक्तित्व के आधार पर लगाये जा रहे थे न कि पार्टी के आधार पर।

मसलन वे कांग्रेस के टिकट पर मैदान में आये तो परिस्थितियां उनके लिये अनुकूल हो सकती हैं। यहां उन्हे व्यक्तिगत और कांग्रेस के वोट तो मिलेंगे ही, सपा के भी ज्यादातर वोट बसपा में नही जायेंगे, वे कां्रगेस में जाना बेहतर समझेंगे। दूसरी ओर बसपा यदि पूर्व कैबिनेट मंत्री रामप्रसाद चौधरी को चुनाव लड़ाती है तो उन्हे काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। कारण ये है कि एक दशक पहले वे कुर्मी बिरादरी के सफल नेता के रूप में देखा जाता था, इस बिरादरी का वोट भी बंट चुका है। लम्बे अरसे से उनकी निष्क्रियता का उनको नुकसान होगा। उन्होने किसी समस्या या जनता की जरूरतों को लेकर संघर्ष नही किया और न ही घटनाओं दुर्घटनाओं पर उनकी मानवीय संवेदना सामने आई। प्रबुद्ध मतदाताओं को रिझाना उनके लिये मुश्किल होगा।

पिछले चुनाव में उन्हे 2,83,747 वोट मिले थे, भाजपा के हरीश द्विवेदी 3,57,680 वोट पाकर चुनाव जीते थे, चर्चा में है इस बार भाजपा के वोट कम होंगे, ये कमी भाजपा प्रत्याशी को लड़ाई से बाहर कर देगी या फिर जीत दिलायेगी ये वक्त तय करेगा। राजकिशोर सिंह के अनुज बृजकिशोर सिंह डिम्पल 3,24,118 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। जबकि भाजपा लहर थी। चर्चाओं मे है कि इस बार कांग्रेस की स्थिति पहले से काफी बेहतर होगी। फिलहाल कांग्रेस के पास ऐसे चेहरों की कमी है जो करिश्मा दिखा सकें। पूर्व के चुनाव में अंबिका सिंह को 27,673 वोट मिले थे। जानकार बता रहे हैं कि यदि दमदारी से चुनाव लड़ना होगा तो कांग्रेस करिश्माई चेहरे पर भरोसा करेगी। कांग्रेस का नाम आते ही एक चर्चा तुरन्त शुरू हो जाती है लोग कहते हैं कांग्रेस प्रत्शाशियों को पहले ही नतीजे का ज्ञान हो जाता है और वे पार्टी नेतृत्व से मिलने वाली भारी भरकम धनराशि से भी काफी हद तब बंचा लेते हैं।

यहां स्थितियां साफ हैं, भाजपा से बेहतर चुनावी रणनीति किसी के पास नही है। सामने यदि बसपा से रामप्रसाद चौधरी चुनाव मैदान में होते हैं तो उनके बारे में लोग कहते हैं वे 24 घण्टे के भीतर चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में करने में माहिर हैं, लेकिन पिछले चुनाव में उनकी ये रणनीति उन्हे तीसरे स्थान पर ले गई। साथ ही मुकाबले में सामने कौन है बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है। एक ओर कांग्रेस से राजकिशोर सिंह और भाजपा से मौजूदा सांसद हरीश द्विवेदी उनके मुकाबले में होते हैं तो हालातों को अपने पक्ष में करना बेहद कठिन होगा। दूसरी ओर राजकिशोर की भी आदत हारने की नही है। मैदान में उतरने के बाद यदि 100 फीसदी कोई सिर्फ जीतने के बारे में सोचता है तो वह राजकिशोर ही हैं। वे भी नतीजों का रूख मोड़ने में किसी से कम नही हैं। फिलहाल कयासबाजी यहीं रोकनी होगी क्योंकि बहुत कुछ राजकिशोर सिंह के अगले पड़ाव पर तय होगा, तब तक हमें इंतजार करना होगा।


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