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प्रमुख सचिव माने कुछ नहीं

Posted on: Thu, 14, Jun 2018 3:17 PM (IST)
प्रमुख सचिव माने कुछ नहीं

अशोक श्रीवास्तवः ‘‘अब तक हम जानत रहेन दरोगा, सेक्रेटरी, बीडीओ और डीएम साहब सबका सब भ्रष्टाचार मां लिप्त हन, लेकिन हमरे गांव में प्रमुख सचिव रेणुका कुमार क चौपाल लाग तो हमरे सब जानि गयेन कि प्रमुख सचिवों यही सब मां मिली हीं। वोनहूं माने कुछ नहीं‘‘। यह कहना है उस गांव के लोगों का जहां प्रमुख सचिव की चौपाल 13 जून को लगी थी। दरअसल गांव में समस्याओं में अंबार है, जिसको बीडीओ, सीडीओ, डीएम और यहां तक कि प्रमुख सचिव स्वयं जानती हैं। चाहे वह समस्या नाली, खड़न्जे, विद्युतीकरण या शौचालय की हो अथवा प्रधान द्वारा सरकारी धन के दुरूपयोग की या फिर अपात्रों को प्रधानमंत्री आवास दिये जाने की।

किसी भी समस्या पर प्रमुख सचिव ने बात नही की। जैसे ही ग्रामीण इन समस्याओं की ओर उनका ध्यान खींचना चाहते थे, सीडीओ एक दूसरी बात में प्रमुख सचिव को उलझा देते थे। यह नौटंकी करीब डेढ़ घण्टे तक चली। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरीं ग्राम प्रधान नयनलता, उनके समर्थक और भ्रष्टाचार के ही आरोपों में संस्पेण्ड हो चुके सेक्रेटरी रणविजय सिंह हंस रहे थे, कारण कि उनके चहेते अफसर प्रमुख सचिव का प्रमुख विन्दुओं से ध्यान हटाने में सफल हो रहे थे। आपको बता दें ग्राम पंचायत में की गयी तमाम अनियमितताओं और भ्रष्टाचार, तथा दोषियों को बंचाने में बीडीओ से लेकर डीएम तक की भूमिका का तिनका तिनका प्रमुख सचिव को मालूम है।

क्योंकि गांव का युवक और सामाजिक कार्यकर्ता गंगाराम यादव उन्हे पत्राचार के जरिये सब कुछ बता चुका है, इतना ही नही वह प्रमुख सचिव के बुलावे पर उनसे मिलने लखनऊ भी गया था। प्रधान, सेक्रेटरी, बीडीओ, सीडीओ, डीएम की दोषपूर्ण भूमिका के साक्ष्य भी सौंपे थे। उन्होने गंगाराम से बेहिल गांव आने का वादा किया था। बात करीब छः महीने पुरानी है। अब गंगाराम मुम्बई चला गया। वहां अपना निजी व्यापार कर वह परिवार चलाता है। तबसे तीन बार प्रमुख सचिव के आने का प्रोग्राम बना और रद हो गया। हर बार टेण्ट स्टेज सजाया गया, सरकारी धन बरबाद हुआ। जब उनके आने की सूचना आती गांव में अफसरों की आवाजाही बढ़ जाती थी। अंततः वे 13 जून को आयीं। लेकिन ग्रामीण जो प्रमुख सचिव को हौव्वा समझते थे, उनकी धारणा बदल गयी, लोगों ने कहा प्रमुख सचिव माने कुछ नहीं। निश्चित रूप से इस बात में ग्रामीणों का दर्द छिपा है, गांव के भ्रष्टाचार को सार्वजनिक करने वाले गंगाराम की पत्नी मेनका अपनी ननद कुसुम और अन्य महिलाओं को लेकर प्रमुख सचिव को ज्ञापन देने पहुंची।

प्रमुख सचिव ने उसकी समस्याओं को दरकिनार करते हुये कहा तुम्हारे पति को गांव भर की समस्या से क्या मतलब, तुम नेतागीरी करती हो, नेता बनना चाहती हो, बच्चों को पढ़ाने लिखाने का काम छोड़कर तुम चली हो गांव की समस्या हल करने। याद रखना बार बार शिकायत की तो नेतागीरी निकलवा देंगे और जेल में नजर आओगी। प्रमुख सचिव ने ये बात किसी अपराधी से नही बल्कि फरियादी से कही। सच्चाई सामने लाने और गांव के हित के लिये संघर्ष करने पर उत्साह बढ़ाने की बजाय प्रमुख सचिव ने उसकी हिम्मत तोड़ दिया। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश में भ्रष्टाचार कैसे पनप रहा है और कौन इसकी जड़ों में पानी डाल रहा है। अच्छे लोग जिन्हे वाकई समाज की बेहतरी और भ्रष्टाचार को लेकर चिंता है उन्हे किस प्रकार दबाया जा रहा है।

बेहिल गांव वालों ने पहली बार यह नजारा देखा। प्रमुख सचिव को भगवान मानने वाले ग्रामीणों का भरोसा इस कदर टूटा है कि शायद ही फिर कभी विश्वास कर पायें। रामराज्य का सपना दिखाकर सत्ता में आने वालों का ये हस्र है तो दूसरों की क्या भूमिका होगी। गंगाराम यादव पिछले दो साल से गांव में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरूद्ध संघर्ष कर रहा है। कई बार अनशन और आत्मदाह का प्रयास कर चुका है। लेकिन वह निराश नही हुआ। उसे निराशा हाथ लगी प्रमुख सचिव के आने पर। ऐसे न जाने कितने गंगाराम रोजाना मरते और जिंदा होते हैं।

लेकिन आम जनता को राहत मिलती नही दिख रही है। प्रमुख सचिव स्तर तक के लोग इस प्रकार समस्याओं की अनदेखी करें तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि देशभर में फरियादी किस तरह टूट रहें होंगे। फिलहाल ये वही सरकार है जिसके कार्यकाल में मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव पर रिश्वत मांगने के आरोप लगे और मामले में कुछ भी नही हुआ। अब जनता के सामने सिर्फ दो विकल्प बचे हैं एक यह कि वह भी सरकार की तरह झूठ को सच कीना सीख ले, या फिर अपनी जीभ को अंदर रखे, क्योंकि यहां लोकतंत्र तो लूटतंत्र में तब्दील हो चुका है।


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