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टैक्स पर टैक्स, टैक्स पर टैक्स, आखिर कितना टैक्स ?

Posted on: Sun, 03, Jun 2018 10:27 PM (IST)
टैक्स पर टैक्स, टैक्स पर टैक्स, आखिर कितना टैक्स ?

अशोक श्रीवास्तवः किसी भी देश की सम्पूर्ण व्यवस्था उसके नागरिकों द्वारा भुगतान किये गये टैक्स से ही संचालित होती है। आम तौर पर यह माना जाता है कि टैक्स का बोझ जनता पर कम होना चाहिये, या यूं कहें जिसे जनता आसानी से दे सके। इसे वसूलनी की प्रक्रिया भी उतनी ही सरल होनी चाहिये। कदम कदम पर भ्रष्टाचार के कारण अपने देश में जितना टैक्स का भुगतान किया जाता है उससे ज्यादा विशेषज्ञों और विभागीय अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। फिलहाल जनता नाउम्मीद हो चुकी है।

यह धारणा बन चुकी है कि भ्रष्टाचार से अब देश को कोई बंचा नही सकता। टैक्स की बात की है तो हम एक उदाहरण के जरिये आपको वास्तविक तस्वीर दिखाने का प्रयास करेंगे। एक कार गुजरात या किसी अन्य प्रान्त में बनकर बिक्री के लिये यूपी आती है। फैक्ट्री से निकलते समय उसकी कीमत 10 लाख होती है, इस पर 28 फीसदी टैक्स जोड़कर 12 लाख 80 हजार की बिलिंग होती है। यूपी में इसे कोई ग्राहक खरीद लेता है तो उसे पूरे एमाउण्ट पर 14 फीसदी और देना पड़ता है, कार की कीमत पहुंच जाती है 14 लाख 59 हजार 200 रूपये।

उसे खरीदकर ग्राहक रजिस्ट्रेशन के लिये आरटीओ दफ्तर पहुंचता है। यहां भी उससे सम्पूर्ण धनराशि पर 10 प्रतिशत रोड टैक्स और करीब एक हजार रजिस्ट्रेशन फीस देना होता है। 5 प्रतिशत बीमे का खर्च जोड़ लें तो 50 हजार यह भी हुआ। कुल मिलाकर हुये 16 लाख छप्पनः हजार एक सौ बीस रूपया। टैक्स पर टैक्स, टैक्स पर टैक्स और उसके बाद जटिल प्रक्रिया। कहा जाता है नीति नियामक सही न हों तो देश का बेड़ा गर्क हो जाये। एक कार खरीदने में ग्राहक को 60 प्रतिशत टैक्स देना पड़ा। सम्पूर्ण धनराशि रोड टैक्स सहित भुगतान करने के बावजूद अभी ग्राहक को सड़क पर चलने का हक नही है। वह अपनी कार गांव में चला सकता है। जैसे ही सड़क पर आयेगा उसे टोल टैक्स के नाम पर रोका जायेगा। यह उसे ताउम्र देना है, जब तक कार रहेगी तब तक।

नीति नियामकों की मति मारी गयी है या यही सच्चा लोकतंत्र है जहां जनता से पूरी निर्दयतापूर्वक टैक्स वसूल किया जाता है, समझ से परे है। देखा जाये तो ग्राहक को कार की 15 साल की लाइफ में एक बड़ी धनराशि टोल टैक्स के रूप में देनी पड़ती है। सही मायने में इसे गुण्डा टैक्स का नाम दिया जाना चाहिये। या फिर इतने सारे टैक्स का भुगतान करने के बाद रोड पर चलने की आजादी मिलनी चाहिये। अरबों रूपया रोजाना वसूलने के बाद भी देश में सड़कों की जो स्थिति है सभी जानते हैं। हाईवे छोड़कर 80 फीसदी सड़कों पर चलने लायक नही है। भ्रष्ट तंत्र और बेहमान पहरेदार मिलकर जनता की चमड़ी से पैसे वसूल रहे हैं। पूरे देश में लागू कर प्रणाली और निर्धारण की समीक्षा होनी चाहिये। बेतहर होता यदि इसे सरल बनाकर टैक्स का ऐसा निर्धारण किया जाता कि जनता बिना किसी परेशानी के भुगतान कर दे और इस पर वह खुद गर्व का अनुभव करे।


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