गरीब बना देते हैं जमीन जायजाद के मुकदमें
अशोक श्रीवास्तवः ज़मीन जायजाद के मुकदमें आदमी को गरीब बना देते हैं और अगर ये किसी गरीब के हिस्से में आ जायें तो वह खत्म ही हो जायेगा। ऐसा ही एक मामला आया है जनपद के हरैया तहसील के लालपुर माचा गांव का। यहां का एक बुजुर्ग शिवप्रसाद कचहरी की तारीख से वापस लौटकर चाय की दुकान में अपना दर्द बयां कर रहा था।
इसी बीच मीडिया के साथी वहां पहुंच गये। यही एक वर्ग समाज का ऐसा है जो बगैर किसी स्वार्थ के मदद को तैयार रहता है। बुजुर्ग के चेहरे पर लटकती झुर्रियां, फटे पुराने कपड़े उसकी बेचारगी बयां करने को काफी थे। उसका कहना था कि 28 साल से जमीन जायजाद के मुकदमें में उलझकर अब जीवन के अंतिम चरण में पहुंचा है। जायजाद अपनी है इसलिये संतोष नही होता। यह पूछने पर कि उन्हे 28 सालों में न्याय क्यों नहीं मिला, बुजुर्ग को जवाब देने में वक्त नही लगा, कहा कमजोर और मोहताज हूं शायद इसीलिये न्याय नहीं मिला।
ये है असली भारत की तस्वीर जहां हर व्यक्ति को न्याय दिलाने के लिये आंखों पर काली पट्टी बांधे और तराजू लिये कोर्ट कचहरी में खड़ी न्याय की देवी भी कमजोर और मजबूत को सहज ही पहचान ले रही हैं। बुजुर्ग का ये भी कहना था कि अब उसकी फाइल हरैया सीओ (चकबंदी अधिकारी) के यहां पहुंची है। जहां फैसले के लिये पांच हजार रूपये रिश्वत की मांग की जा रही है। बुजुर्ग के साथ उसका बेटा भी था। उसने भी इस बात की पुष्टि की। मीडिया टीम बुजुर्ग को साथ लेकर चकबंदी अधिकारी के कार्यालय में पहुंच गयी। भरे पंच में चकबंदी अधिकारी से इस बावत सवाल पूछे गये कि आप इस मामले में फैसला देने के लिये बुजुर्ग आदमी से घूस मांग रहे हैं।
उन्होने इन आरोपों को खारिज करते हुये उसकी हर संभव मदद का भरोसा दिलाया। हालांकि अधिकारी के सामने पहुंचकर गरीब आदमी के मुंह से रिश्वत वाली बात बाहर नहीं निकल पायी। सोचनीय ये है कि ऐसे न जाने कितने लाचार, बेबस गरीब कानून की चक्की में पिस रहे हैं। अनके मुकदमें 40-42 सालों से चल रहे हैं। सम्बन्धित मामले की हम बात करें तो इन 28 सालों में जमीन की कीमत कोर्ट कचहरी में चली गयी, अब लड़ाई सम्मान की बंची है, जीत गये तो सम्मान वापस आ जायेगा और अगली पीढ़ी इस जमीन का लाभ उठायेगी।
कुल 5 बीघे जमीन का विवाद है जिसमें एक पक्ष का ढाई बीघा होगा। 28 सालों का खर्च निकाल लिया जाये तो जमीन की कीमत से ज्यादा होगा। क्या यही न्याय है, क्या भारतीय परिवेश में यह कानून गरीब को राहत दे सकता है जहां 40-50 सालों में न्याय मिलते हों, क्या यही न्याय है जहां आंख पर पट्टी बांधे हाथ में तराजू लिये खड़ी न्याय की देवी रिश्वतखोर अफसरों को नहीं देख पा रही है ? ऐसे बहुत से सवाल है जिनके जवाब नही मिलेंगे, और ढूढ़ने निकलेंगे तो जिंदगी खुद एक सवाल बन जायेगी।