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05 मई 2024
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प्रतिबंध और मनमानी

Posted on: Sun, 13, Oct 2019 5:21 PM (IST)
प्रतिबंध और मनमानी

अशोक श्रीवास्तवः सरकार और कोर्ट प्रतिबंध लगाती रहे और जनता मनमानी कर दोनो को चुनौतियां देती रहे तो आप क्या कहेंगे। इसमें सरकार को अक्षम मानेंगे या फिर उन्हे जिनके ऊपर प्रतिबन्धों का पालन कराने की जिम्मेदारी है, अथवा कार्यशैली और निर्णय लेने के तरीकों पर। हम ध्यान दिलाना चाहते हैं शराब, पॉलीथीन और डीजे पर लगाये गये प्रतिबन्ध पर। बिहार राज्य में शराब के कारोबार पर प्रतिबंन्ध है, खरीद बिक्री, निर्माण सबकुछ प्रतिबंध के दायरे में है लेकिन शराब धड़ल्ले से मिल रही है, कारोबारी पहले से ज्यादा मजबूत हो चुके हैं, यहां तक कि देश के बड़े से बड़े शराब के कारोबारी बिहार को सबसे ज्यादा मुफीद मान रहे हैं ऐसा इसलिये कि वहां नशे के सामनों की मुंहमांगी कीमत मिल रही है।

देश के कोने कोने से शराब बिहार पहुंच रही है, पुलिस के अधिकांश खुलासों में यह बात सामने आती है कि पकड़ी गयी शराब की खेप बिहार ले जायी जा रही थी। पूरा तंत्र इसमें संलिप्त है। अब सोचिये इस प्रतिबन्ध के क्या मायने हैं। शराब पर प्रतिबन्ध लगाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री और वहां का तंत्र आखिर क्या कर रहा है जो कई साल बाद भी इसे लागू नही करवा पाया। शराब बंदी लागू कर चर्चा में आने वाले मुख्यमंत्री नितीश कुमार की इच्छाशक्ति महज कागजों में सिकुडकर रह गयी है कि या वह इसे धरातल पर भी उतारने चाहते हैं। फिलहाल नतीजे बताते हैं कि प्रतिबंध सिर्फ चर्चा में आने का एक माध्यम था, दूर दूर तक इच्छाशक्ति नजर नही आती। दृढ़ इच्छाशक्ति नतीजे लेकर आती है, इच्छाशक्ति कमजोर है तो फैसलों का बेनतीजा होना आश्वर्यजनक नही है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नीतीश कुमार से कम नही हैं। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद ही फिलहाल उन्होने पॉलीथीन की खरीद बिक्री को प्रदेश में पूर्णतया प्रतिबन्धित कर दिया है। स्थानीय स्तर पर नगरपालिकाओं और प्रशासन की ओर से तमाम चेकिंग अभियान चलाये गये, तमाम छोटे और कुछ बड़े व्यापारियों पर प्रवर्तन की कार्यवाही हुई, जुर्माना लगाया गया और वसूल किया गया, लेकिन पॉलीथीन बनाने वाले कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। अब इस फैसले को आप किस नजर से देखेंगे, इच्छाशक्ति पर सवाल उठायेंगे या प्रतिबन्ध लागू करने के तौर तरीकों पर, अथवा स्थानीय प्रशासन पर। कारखानों में पॉलीथीन बनते रहेगी तो उद्योगपति उसे खायेगा नही, कहीं न कहीं सप्लाई करेगा, और व्यापारी कीमत लगाकर खरीदेगा तो कहीं न कहीं बेंचेगा।

दोषी कौन है बनाने वाला या उपयोग करने वाला, अथवा बेंचने वाला। हमारी समझ से न बेंचने वाला दोषी है न बनाने वाला। प्रतिबन्ध के बाद धड़ल्ले से चल रहे पॉलीथीन निर्माण इकाइयो की अनदेखी करने वाला समूचा तंत्र इसका दोषी है। यदि प्रतिबन्ध के पीछे सुधार और परिवर्तन की मंशा छिपी है तो कारखानों को तुरन्त बंद कर देना चाहिये वरना प्रतिबन्ध तो बेअसर होगा ही कार्यशैली, सोच और इच्छाशक्ति पर सवाल उठेंगे। नतीजा सभी के सामने है, डंडा मारकर किसी कानून का पालन नही कराया जा सकता। ऐसा परिवेश बनाना पड़ता है कि लोगों में कानून का खौफ हो और प्रतिबन्धों में मानवीय पक्ष भी दिखे। पॉलीथीन पर लगाये गये प्रतिबन्ध का जो हस्र है वही डीजे पर लगाये गये प्रतिबन्ध का है। सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनो हाशिये पर है। डीजे धड़ल्ले से बज रहा है।

एक साथ हम तीन प्रतिबन्धों का हस्र देख रहे हैं। तीनो सरकार, कोर्ट और समूचे तंत्र को सबक सिखाने के लिये काफी हैं। कमजोरी कहां पर है, क्या सभी दिखावा कर रहे हैं, आदेश से लेकर प्रवर्तन तक सबकुछ नाटक तो नहीं। मंशा साफ है तो लागू करने के तौर तरीके बदलने होंगे। हाल यही रहा तो मनमानी बढ़ेगी, आज ये है कल कुछ और होगा, लेकिन आदेशों प्रतिबन्धों का लागू न हो पाना हमेशा दुर्भाग्यपूर्ण होगा। बेहतर होगा, समय रहते सरकार अपने फैसलों और लागू करने के तौर तरीकों की समीक्षा करे और उपभोग पर प्रतिबन्ध प्रभावी करना है तो निर्माण रोकने की प्रवृत्ति पर काम करे वरना अनेक फैसले बेनतीजा हैं जनता सबका हस्र देख रही है और प्रबुद्ध रोज समीक्षा कर रहे हैं। बात यहीं नही रूकेगी फैसलों के बेनतीजा होने के साइड इफेक्ट भी आयेंगे, इसके लिये कुछ इंतजार करना होगा।


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