महंगाई, बेरोजगारी और जनता की लाचारी
बात बहुत पुरानी नही है इसलिये लोगों को याद होगी। साल 2014 में देश में एक नारा गूंजा था, बहुत हो चुकी महंगाई की मार अबकी बार मो.....सरकार। भक्त इस नारे पर गजब का नृत्य करते थे। यह नारा सुनकर देश की जनता को समझ आ गया था कि इनसे बड़ा तारनहार कोई दूसरा नही हो सकता। ऐसा बहुमत दे दिया कि विपक्ष ही साफ हो गया। इन नारों का हस्र क्या हुआ सबके सामने है।
महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। आम आदमी जहां बुनियादी जरूरतें भी नही पूरी कर पा रहा है वहीं पढ लिखकर युवा दर दर भटक रहे हैं उन्हे रोजगार नही मिल रहा है। आर्थिक मंदी की हालत ये है कि एमबीए और बीटेक डिग्री धारक सात आठ हजार रूपये महीने की नौकरी कर रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि जबरदस्त महंगाई और 45 साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंची बेरोजगारी के बाद भी साहब के समर्थक कम नही हुये हैं। ऐसा लगता है कि देशवासियों खास तौर से 25 से 40 साल के उम्र के लोगों पर ऐसा जादू चला कि वे साहब की आलोचना या उनके द्वारा किये गये कार्यों की समीक्षा करने को भी तैयार नही हैं। मध्यम वर्ग के हाथों से रोजगार छीना जा रहा है।
छोटा और मध्यम व्यापारी मंदी की मार नही झेल पा रहा है, या तो वह खत्म हो रहा है या फिर कर्ज के बोझ से दबा जा रहा है। जुबान सबकी बंद है। विपक्ष जिंदा लाश बनकर रह गया है। कभी कभार विरोध की गूंज सुनाई भी दे रही है तो जनता उसे हवा नही दे रही है। देश की आजादी के बाद पहली बार ऐसा देखा जा रहा है जब सरकार के कई फैसलों ने देश का काफी नुकसान किया हो, बेरोजगारी और आर्थिक मंदी इस कदर हो और जनता चुप मारकर सब सहती और झेलती रहे। दरअसल साहब ने 2014 में जब कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था तो लोग समझ नही पाये थे। यह सच है कि उनकी बातें लोगों को काफी देर में समझ आती हैं, दूरदर्शी जो ठहरे। लोगों को यह समझने में 6 साल का वक्त लग गया कि उन्होने कांग्रेस मुक्त नही विपक्ष मुक्त का नरा दिया था, और काफी हद तक इसमें वे कामयाब भी रहे।
फिलहाल महंगाई से जनता त्रस्त है। 50 रूपये किलो से कम कोई सब्जी बाजार में नही है। चार लोगों के परिवार में रोजाना एक किलो सब्जी लगती है। प्याज की कीमतें आसमान छू रही है। जमाखोरों पर नकेल कसने के लिये आदेश जारी किये गये, लेकिन कीमत एक रूपया भी कम नही हुई। सेब और प्याज एक रेट बिक रहा है। कल जो वस्तु एक रुपए में खरीदी गई थी, आज उसी का दाम डेढ़ और दो रुपए। महंगाई सुरसा के आंत की तरह लगातार बढ़ रही है। सब्जियों की महंगाई पर बेहूदा तर्क दिये जा रहे हैं कि ये किसान के घर पैदा होती हैं, उसको चार पैसा ज्यादा मिल जायेगा तो आपका क्या बिगड़ जायेगा। उसी किसान का सुगर मिलों पर अरबों रूपया गन्ना मूल्य बकाया है, समर्थक एक शब्द नही बोलते। गन्ना मूल्य तय करना होता है तब लगता है सरकार 500 से ज्यादा की गिनती ही नही जानती है।
कोई एक वस्तु सवा रुपए में बेच रहा होता है तो दूसरा डेढ़-पौने दो में। आम उपभोक्ता किसी को न तो कुछ कह सकता है और न किसी का कुछ बिगाड़ सकता है। उसे केवल अपना माथा पीटकर ही रह जाना पड़ता है। बढ़ रही महंगाई को रोक पाने में सरकार भी नाकाम है। उत्पादक इसके दोषी हैं या फिर विक्रेता? वास्तव में इन दोनों में से कोई दोषी नहीं। दोषी हैं इनके बीच कार्यरत दलाल और तथाकथित आढ़ती और कमीशन एजेंट। यही वे लोग हैं जो आज बाजार में अप्रत्यक्ष रूप से छाये हैं और उपभोक्ताओं का खून चूस रहे हैं। पूरे बाजार का कुल नियंत्रण इन्हीं लोगों के हाथ में हैं। यही लोग फलों, सब्जियों, आम उपभोक्ता वस्तुओं के प्रतिदिन दाम घोषित कर उन्हें बड़ी सख्ती से लागू करते-करवाते हैं। फलतः बेचारे आम उपभोक्ता को कराहकर कहने को विवश होना पड़ता है-हाय महंगाई।
रिश्वत भ्रष्टाचार की बड़ी बहन है। महंगाई बढ़ने पर उसकी भी हैसियत बढ़ जाती है। घूसखोर अफसर और कर्मचारी महंगाई बढ़ने पर रिश्वत बढ़ाकर इसकी क्षतिपूर्ति कर लेते है।ं कोई सब्जी व्यापारी प्याज लादकर विकप पर ला रहा है, रास्ते में किसी अधिकारी या आरटीओ का शिकार हो गया, उसे पांच हजार रूपया रिश्वत देनी पड़ गयी तो व्यापारी कहता है भवानी घर से आंख नही देंगी, किसी की फोड़ेंगी तो किसी को देगीं। मसलन अपने नुकसान की सारी भरपाई वह ग्राहक से कर लेता है। अब बताओ महंगाई कैसे घटे। जब राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं, तो एक साल या सौ दिन में महंगाई दूर करने के दावे किये जाते हैं। लेकिन जब कुर्सी चिपककर बैठने के लिए मिल जाती है तो साफ कह दिया जाता है कि ऐसा कर पाना कतई संभव नहीं है। देश के हालात अच्छे नही है, पिछली सरकार ने खजाना खाली कर दिया है आदि आदि बेहूदे तर्क दिये जाते हैं। इसी तरह से बहुत हो चुकी महंगाई की मार अबकी बार मो.....सरकार। नारा देकर जनता को बेवकूफ बनाया गया।
कुल मिलाकर दो बड़ी समस्याओं बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दों पर सरकार का फेल होना देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। दोनो को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी सरकार की है। बेहूदे तर्क देकर जिम्मेदारी से भाग नही जा सकता है। जल्द ही दोनो बड़ी समस्याओं पर सरकार को अपना रूख और नीतियां साफ करनी होगीं। इससे जनता को उबारने की कोई योजना है भी कि सारी योजनायें गो गंगा गायत्री तक ही सीमित रहेंगी। आम जनता की इससे कौन सी मुश्किल कम होगी। इतिहास गवाह है जब जब बेरोजगारी और महंगाई बेहिसाब बढ़ी है जनता ने विपक्ष की जिम्मेदारी ली है और अंहकारी सरकारों को उसकी औकात बताया है। एक बार फिर ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं। बेहतर होगा सरकार इन दोनो विषयों पर गंभीर हो और इसका हल निकाले जिससे देश की युवा ऊर्जा गलत दिशा में न प्रवाहित होने पाये और आम आदमी कम से कम अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर लें।