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07 मई 2024
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कितने आजाद हैं हम ?

Posted on: Fri, 09, Aug 2019 10:51 PM (IST)
कितने आजाद हैं हम ?

आजादी के 70 साल गुजर गये लोगों को मायने समझ में नही आये। लोग आजादी के अलग अलग अर्थ निकालते हैं। 15 अगस्त को एक बार फिर हम स्वतंत्रता दिवस की अगली वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। ऐसे अवसरों पर हमें यह सोचने और समझने का जरूर प्रयास करना चाहिये कि ये आजादी हमें कैसे मिली है, यह आगे कैसे कायम रहेगी, और हम कितने आजाद हैं। हमे अब किस प्रकार की आजादी की जरूरत है।

जब तक हम ये नही समझ पायेंगे तब तक आजादी को कायम रखने की गारण्टी नही ली जा सकती। आम तौर से लोग आजादी के गलत अर्थ निकालते हैं और मुश्किलों से मिली आजादी का भरपूर दुरूपयोग करते हैं। यही कारण है कि देश में 70 सालों से लागू अपना संविधान और देश की अपनी सरकारें हमें गरीबी, लाचारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार से आजादी नही दिला पायीं। कई बार ऐसा लगता है कि आजाद रहते हुये भी हम गुलाम हैं। 70 साल सें जो देश आजाद हो वहां कार्यपालिका से लेकर न्यायपालिका तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हो वहां हम वास्तविक आजादी की कल्पना कैसे करें।

हमने यहां से अगं्रेजों का भगा दिया क्या यही आजादी है, अंग्रेज थे तब भी हमारा शोषण होता था, देश के बेटियों की अस्मत लूटी जाती थी, हम असुरक्षित तब भी थे आज भी हैं, न्याय तब भी नही मिल पाता था, आज भी बहुत कम मामलों में न्याय मिलता है। न्यायिक प्रक्रिया को इतना कठिन बना दिया गया है कि दो मुकदमों में एक आदमी की पूरी जिंदगी कट जायेगी, उसे न्याय शायद ही मिल पाये। एक बार फिर इस देश को आजादी की दूसरी लड़ाई लड़नी होगी, वह लड़ाई 70 साल पुराने सड़े गले सिस्टम से होगी, गरीबी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा और महिलाओं पर हो रहे अत्याचार से होगी। कठिन और लम्बी अवधि तक चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया से होगी।

हमे इसके लिये तैयार रहना होगा। इसके लिये जो जहां और जिन भी परिस्थितियों में है वही से उसे जंग की शुरूआत करनी होगी। जो बुरा है उसे हतोत्साहित करना होगा, जो अच्छा है उसे सम्मानित और स्थापित करना होगा, पीड़ितों को समयबद्ध न्याय देना होगा। न्यूनतम आय और सुरक्षा की गारंटी लेनी होगी। स्वास्थ्य, शिक्षा, और चिकित्सा कर पारदर्शी व्यवस्था लागू करनी होगी। तब जाकर हमे वास्तविक आजादी मिलेगी। देश में लघु एवं कुटी उद्योग खत्म होते जा रहे हैं, लोगों के हाथों में काम नही है। पढे लिखे बेरोजगार अपने संविधान और अपनी व्यवस्था पर करारा तमाचा हैं।

कहते हैं जीवन की अस्थिरता और नाकामी व्यक्ति को पागल बना देती है, उसकी बुद्धि और सोचने समझने की क्षमता छीन लेती है, आज देश में युवाओं की यही स्थिति है। ज्यादातर युवाओं के पास अच्छे बुरे और न्याय अन्याय में फर्क करने की क्षमता नही रह गयी है। वे बेकार है इसलिये उनकी क्षमता आधा हो गयी है, देश का यह बहुत बड़ा दुर्भाग्य है, जिन युवाओं के कंधों पर सवार होकर वर्तमान भविष्य के सपने देखता है वे क्षमताहीन हो गये हैं। कहीं न कहीं अपराधों में तेजी से हो रही वृद्धि भी इसी का कारण है। जहां बेकारी और बेरोजगारी है उन परिवारों की स्थिति देख लीजिये, पिछली पीढ़ी से वर्तमान पीढ़ी काफी पीछे है। स्थिति यही रही तो हम 20 साल बाद के भारत की कल्पना आसानी से कर सकते हैं।

इससे भी खराब स्थिति किसानों की है। मेहनतकश वे आज भी उतने हैं जितना पहले थे, लेकिन आज उन्हे उतना प्रतिफल नही मिलता जितना पहले मिलता था, वे खेतों में फसलें डालते हैं लेकिन इस बात की गारण्टी नही कि उन्हे प्रतिफल भी मिलेगा, उसे चाहे प्रकृति निगल जायेगी या दुश्मन कटवा ले जायेगा। आजादी के 70 सालों मे सरकारें अनाजों का भण्डारण नही सुनिश्चित कर पायीं। देश में खाद्यान्न की कमी नही है लेकिन उत्पादन का 25 फीसदी सड जाता है। भण्डारण की व्यवस्था न होने के कारण सड़कों पर फेंक दिया जाता है। मेहनत, लागत सब किसान का होता है लेकिन उसका दाम सरकार तय करती है। किसान द्वारा किया गया उत्पादन पहला ऐसा उदाहरण है जहां लागत से लेकर मेहनत तक सब किसान को होता है और दाम सरकार तय करती है।

इन 70 सालों में सिंचाई की व्यवस्था नही हो पायी। 90 फीसदी नलकूप खराब हैं। इनकी मरम्मत के नाम पर हर साल महकमे के जिम्मेदार करोड़ों डकार जाते हैं समस्या यथावत रहती है। पेय जल की स्थिति भी कम भयावह नही है। गांव से लेकर शहर तक पेय तल की गंभीर समस्या है। प्रदेश के सभी ग्राम पंचायतों में ग्रामीणों को शुद्ध पेय जल मुहैया कराने के लिये अरबों रूपया खर्च कर वाटर हेड टैंक बनाये गये हैं, इनसे एक बूंद पानी ग्रामीणों को नही मिल रहा है। पानी की टंकियां सिर्फ पता बताने के काम आ रही हैं। अरबों रूपया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, कोई जांच नही हुई। इण्डिया मार्का नल 90 फीसदी खराब पड़े हैं। ग्रामीण बताते हैं यह जब खराब हो जाता है तो फिर नही बनता।

यह सच है तो मरम्मत के नाम पर शासन से स्वीकृत हो रही धनराशि कहां जा रही है। ऐसे अनगनित सवाल हैं जिनकी जवाबदेही बनती है जो कहीं न कहीं जनता के अधिकारों और नैकरशाही के कर्तव्यों से जुड़ी है। फिलहाल इन तमाम दुश्वारियों के बाद भी हमारा भारत महान है। हमे यह सोचना चाहिये के पैदा होने से लेकर मरने तक यह देश हमे बहुत कुछ देता है। हम इसका ऋण नही उतार सकते। हां, हर देशवासी का एक कर्तव्य है उसे पूरा करके हम आजादी को सदियों तक कायम रखने का माहौल जरूर बना सकते हैं। इसके लिये आप अपनी आखें बंद कर एकाग्र होकर सोचिये, आखिर कैसा होना चाहिये अपना भारत, आपका अन्तर्मन खुद इस सवाल का जवाब देगा। जाहिर है कोई अपने लिये खराब घर नही बनाना चाहेगा। आखिर कैसा होना चाहिये अपना भारत ?

इस सवाल का जो जवाब मिलेगा उसी से वास्तविक आजादी मिलेगी और एक नये भरत का निर्माण शुरू हो जायेगा जिसकी कल्पना राजेन्द्र बाबू ने की थी, सुबाष ने की थी, जिसके सपने आजाद, बिस्मिल और विवेकानंद ने देखे थे। तो तय करिये आज से अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही, एक अच्छा नागरिक बनना देश के निर्माण में सबसे बड़ा योगदान है तो देर किस बात की, आप भा भारत माता की जय बोलिये और एक अच्छे नागरिक की सारी विशेषतायें अपने भीतर एक एक कर इकट्ठा कर लीजिये। यकीन मानिये गांधी, सुबाष, राजेन्द्र बाबू, आजाद, बिस्मिल, विवेकानंद जैसे देशभक्तों की आत्माओं को सच्ची शांति मिलेगी। हमारी ओर से देशवासियों को अनंत शुभकमनायें। याद रखिये हमारी समझ से आजादी पाना आसान था लेकिन उसे बचाये रखना आसन नही है। आजादी पाने से ज्यादा योगदान इसे बचाये रखने में देना होगा।


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