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07 मई 2024
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एमवी एक्ट का चाबुक

Posted on: Sun, 08, Sep 2019 4:34 PM (IST)
एमवी एक्ट का चाबुक

जनता पर चाबुक चलाने में केन्द्र की मोदी सरकार का कोई जवाब नहीं। कभी नोटबंदी का चाबक तो कभी जीएसटी का। अभी देश इसका साइड इफेक्ट झेल ही रहा था कि इसी बीच एमवी एक्ट का चाबुक। इस बार सरकार ने जनता पर जो चाबुक चलाया है उसके साइड इफेक्ट आने शुरू हो गये हैं। जनता बेहद गुस्से में है। प्रबुद्ध भी भारी भरकम जुर्माने का नकार चुके हैं। सोशल मीडिया में सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। स्वयं भाजपा समर्थक और नेता भी यह स्वीकार करने लगे है कि मोदी सरकार का ये फैसला उसकी लोकप्रियता कम कर देगा। हालांकि लोगों का कहना है कि सड़क दुर्घटनायें रोकने के लिये सख्त कानून होना चाहिये, लेकिन वहीं ये भी सवाल उठ रहे है कि बलात्कार और हत्या मामलों में फांसी की सजा पहले से तय है, क्या इससे घटनायें रूक गयीं हैं। सच्चाई ये है कि जो कानून पहले से था उसी का पालन नही हो रहा था, तो कैसे यह मान लिया जाये कि मौजूदा कानून का पालन प्रशासन करवा पायेगा।

दरअसल जिन चीजों को बदलना चाहिये वे यथावत हैं और जिन्हे बदलने की जरूरत ही नही उसे बदलने की कोशिश की जा रही है। आरटीओ दफ्तर में डीएल बनवाने से लेकर अन्य सारे कामकाज की प्रक्रिया बेहद कठिन है। एक काम के लिये लोगों को बार बार दफ्तर का चक्कर लगाना पड़ता है, रिश्वत अलग से देनी पड़ती है। यह प्रक्रिया सरल की जानी चाहिये। वहां बड़े तेज तर्राक अफसर भी कोई बदलाव नहीं ला पाये। लोगों को यातायात नियमों का पालन करना चाहिये यह अच्छी बात है किन्तु जुर्माने की राशि अपराध या लोगों की क्षमता से कई गुना बड़ा हो तो विचार करना ही चाहिये कि क्या यातायात नियमों के नाम पर मनमाना वसूली करने से लोग जागरूक हो जायेंगे। या सड़क हादसे कम हो जायेंगे। सख्त कानून बनाने और भारी भरकम जुर्माना तय करना से पहले नीति नियामकों ने भारतीय सड़कों के बारे में सोचा था। क्या भारतीय सड़कें मानक के अनुसार हैं।

बाइक सवार या अन्य वाहनों के सामने अचानक जानवर आ जाते हैं, ऐसे में कोई इन दुर्घटनाओं को नही रोक सकता। क्या हाईवे जैसी सड़कें इसीलिये बनी हैं कि उस पर चाहे जब जानवर आ जाये और लोगों की जान आफत में आ जाये। यह कौन सुनिश्चित करेगा कि इस सड़क पर यातायात सुरक्षित है। अक्सर खबरें आती हैं कि बाइक सवार को सांड ने मार दिया उसकी मौत हो गयी। ऐसी मौतों का जिम्मेदार कौन है। क्या सरकार ऐेसे में पीड़ित परिवारों को मुआवजा देती है। तमाम सड़कें ऐसी हैं जहां समझ में नही आता, वाहन संभालें, खुद को या फिर सड़क के गड्ढों को। कई बार इसी चक्कर में सड़क दुर्घटनायें होती हैं, इसका जिम्मेदार कौन है। स्थिति ये है कि हाइवे से जोड़ने वाले अधिकांश सम्पर्क मार्गों की स्थिति दयनीय है। कहीं-कहीं तो सड़कों में गड्ढे नहीं गड्ढे में सड़क है।

टै्रफिक नियम तोड़ने को लेकर भारी जुर्माना लगाने का व्यापक विरोध हो रहा है। सरकार को इन आवाजों को अनसुना करने की जगह पुनः समीक्षा करनी चाहिये कि क्या इतना बड़ा जुर्माना सामान्य भारतीय नागरिक बर्दाश्त कर पायेंगे। इसके पहले कि विरोध की गति तेज हो सरकार जुर्माना राशि पर समीक्षा कर लें अन्यथा सरकार को ही इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। सड़क सुरक्षा के नाम पर नागरिकों की जेब खाली कर देने वाला कानून किसी भी दृष्टि से व्यवहारिक नही है। भारतीय परिस्थितियों और पिरवेश में यह कानून कतई स्वीकार्य नही किया जा सकता। जनता महंगाई से परेशान है। नोटबंदी और जीएसटी के फैसलों ने देश को आर्थिक मंदी में झोंक दिया है। सरकार को खुद समझ में नही आ रहा है कि इन हालातों से देश को कैसे उबारा जाये, ऐसे में जनता पर इतना भारी बोझ लादना सरकार के तानाशाह होने का पुख्ता सबूत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले पांच छः वर्षों में राजनीति में जो बदलाव लाया उसमें लोगों की सही गलत में फर्क करने की क्षमता नष्ट हो चुकी है। अफसर चापलूसी में जुटे हैं और युवा जयश्रीराम के नारों में अपना और देश का भविष्य तलाश रहा है। धर्म के नाम पर देश को गुमराह करने का नतीजा ये है कि भ्रष्टाचार खत्म करने की नीति पर सत्ता में आयी भाजपा खुद इस एजेण्डे को छोड़ चुकी है। प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी को जनता ने दूसरी बार मौका दिया लेकिन भ्रष्टाचार में रत्ती भर कमी नही आई। उल्टे सरकारी महकमों में रिश्वतखोरी बढ़ गयी। जवाबदेही शून्य के बराबर है। मुख्यमंत्री स्वयं जिसकी मॉनीटरिंग कर रहे हैं वे पटल भी ठीक से काम नही कर पा रहे हैं।

सड़क दुर्घटनाओं में हो रही वृद्धि पर अंकुश लगाने के इरादे से एक सितंबर से पूरे देश में यातायात नियमों में बदलाव कर सख्त बना दिया गया है। नए आदेश के अनुसार ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने पर जहां जुर्माना की धनराशि पांच से दस गुना बढ़ा दी गयी है। केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए नए ट्रैफिक नियम को लेकर प्रदेश सरकार की ओर से कोई आदेश जारी न होने के चलते पुलिस के साथ ही अधिकारी भी असमंजस की स्थिति में हैं। नए वाहन एक्ट में नियमों के उल्लंघन करने पर जुर्माने की राशि इतनी ज्यादा रखी गई है कि अगर आप नियम तोड़ते हैं तो जुर्माना के साथ जेल का भी प्रावधान रखा गया है। नाबालिग कार चलाते पकड़े गए तो वाहन मालिक को तीन साल तक जेल की हवा खानी पड़ेगी।

वहीं कार चलाने वाले नाबालिग को 500 रुपये की जगह अब 25 हजार रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। इसी प्रकार से इमरजेंसी वाहन एंबुलेंस व पुलिस को रास्ता नहीं देने पर 10 हजार रुपये जुर्माना वसूला जाएगा। गति सीमा तोड़ने पर 400 रुपये की जगह अब एक हजार और मध्यम श्रेणी के कमर्शियल वाहन के लिए दो हजार रुपये जुर्माना वसूलने का नियम बनाया गया है। तीन माह के लिए लाइसेंस होगा निलंबित अगर बिना हेलमेट पहने बाइक, स्कूटी, बुलेट सहित अन्य दोपहिया वाहन चलाते पकड़े गए तो आपकी वाहन का लाइसेंस तीन महीने के लिए निलंबित किया जा सकता है। नए एक्ट के मुताबिक बिना हेलमेट दोपहिया वाहन चलाते पकड़े जाने पर जुर्माना राशि 100 रुपये से बढ़ाकर एक हजार रुपये कर दिया है। खतरनाक तरीके से वाहन चलाते पकड़े जाने पर एक हजार की जगह पांच हजार जुर्माना भरना पड़ेगा।

वाहन चलाने के दौरान सेल्फी लेने की गलती करना अब महंगा पड़ेगा। दुर्घटना को आमंत्रित करने वाली इस गलती को छुड़ाने के लिए वाहन चालकों से दो हजार जुर्माना वसूलने का प्रावधान किया गया है। वाहन चलाने के दौरान फोन पर बातचीत करते पकड़े जाने पर एक हजार रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा। यदि वाकई एमवी एक्ट में बदलाव के पीछे सड़क हादसों का कम करने का मकसद छिपा है तो सरकार को बिना किसी देरी के ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करना शुरू कर देना चाहिये जो हादसों का कारण बनते हैं। तमाम लोग हैं जो 50 साल से बगैर हेलमेट गाड़ी चला रहे हैं आज तक उनको खरोंच तक नही लगी, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो वर्षों से हेलमेट लगाते हैं रोज किसी न किसी को ठोंकते हैं। कहां गलती हो रही है और कैसे सुधार होगा, इसे समझने की जरूरत है।

जनता सड़क पर जेब्रा क्रासिंग, और बोर्ड लगाने व दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र घोषित करने के लिये महीनों धरना प्रदर्शन करती है और उसकी ये मांग पूरी नही होती, रोजाना हादसे होते हैं, जबकि इसमें किसी खास बजट की जरूरत नही है तो फिर कैसे मान लें कि सरकार हादसों को कम करने को लेकर सरकार गंभीर है। देश में रह रहे लोगों की आय का स्तर, उनकी जीवनशैली को समझे बगैर ऐसा कानून अस्तित्व में लाना सिर्फ जनता और परिस्थितियों का मजाक उड़ाना है। जिस तरह बगैर किसी होकवर्क या तैयारी के नोटबंदी और जीएसटी के फैसले जनता पर थोपे गये ठीक उसी तरह एमवी एक्ट भी जनता पर थोपा गया कानून है जिसका व्यवहारिक पक्ष बेहद कठिन और अस्वीकार्य है। जीएसटी और नोटबंदी का साइड इफेक्ट पूरा देश देख रहा है, इसी तरह नया एमवी एक्ट भी सुखद नही होगा।


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