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03 मई 2024
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पवित्र मखौड़ा धाम में ‘छलकता हमरो जवनिया ये राजा’ जैसे गीतों से क्या संदेश देना चाहते हैं आयोजक ?

Posted on: Sun, 02, Apr 2023 11:16 PM (IST)
पवित्र मखौड़ा धाम में ‘छलकता हमरो जवनिया ये राजा’ जैसे गीतों से क्या संदेश देना चाहते हैं आयोजक ?

बस्तीः तीन दिवसीय मखौड़ा धाम महोत्सव 30 मार्च को समाप्त हो गया, इसी के साथ तरह तरह की चर्चायें भी शुरू हो गईं। मौजूदा सत्ताधारी दल आपदा में अवसर और दुश्वारियों के बीच उत्सवों के आयोजन में अभ्यस्त है। मखौड़ा वो पवित्र भूमि है जहां चक्रवर्ती राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करके राम सहित चार पुत्र प्राप्त किये थे। इनमें राम का जीवन वृत्त ऐसा रहा कि वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये।

हम ये कहें कि मखौड़ा है तब अयोध्या है, अनुचित नही होगा। इस पवित्र भूमि पर महोत्सव का आयोजन होता है और मंच पर अश्लील गाने गाकर नर्तकी दर्शकों को भद्दे इशारे करती है तो चर्चा होनी स्वभाविक है। गाना वो भी जो शादियों में मारपीट तक की नौबत ला देता है, ‘छलकता हमरो जवानिया ये राजा, जैसे की बालटी के पानिया हो कुच्छु बोली‘ आजा आजा वो हैंडसम राजा, खुलल दरवाजा दिल में समा जा’। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि भोजपुरी फिल्मों की एक्ट्रेस काजल राघवानी को देखने के लिये इलाके की भीड़ उमड़ पड़ी थी।

भारी भरकम परिचय के बाद जैसे ही वह मंच पर आई, दर्शकों का जोश देखने लायक था। वे बांस बल्लियों और कुर्सियों के ऊपर चढ़ गये, चारों ओर से शोर गूंजने लगा, लोग भीड़ से अश्लील इशारे करने लगे। कई बार ऐसा लगा जैसे महोत्सव की व्यवस्था कुछ ही मिनट में ऐसी तैसी हो जायेगी। बात सेलिब्रीटी से जुड़ी थी, स्थानीय नेताओं को अपना सम्मान भी बचाना था। स्वयं विधायक मंच पर आये, माइक संभाला और कुछ निवेदन तथा कुछ धमकी के अंदाज में दर्शकों सतर्क किया। ऐसा उन्हे तीन बार करना पड़ा। लेकिन कोई असर नही हुआ।

अंत में जब उन्होने कार्यक्रम को समाप्त करने की चेतावनी दी तो दर्शकों ने सोचा यदि कार्यक्रम रोक दिया गया तो आनंद अधूरा रह जायेगा। शायद यह सोचकर कुछ शांत हुये और गाना पूरा हुआ। सूत्रों के मुताबिक इसी बीच सैकड़ों कुर्सियां दश्रकों के बेकाबू जोश का शिकार हो गईं। खबर ये भी है कि कार्यक्रम समाप्त होने के बाद पुलिस ने अपने अंदाज में अराजक तत्वों का स्वागत भी किया है। फिलहाल मखौड़ा जैसी पवित्र भूमि पर अश्लीलता बहुत कम लोग बर्दाश्त कर पा रहे हैं। कुछ दबी जुबान से तो कुछ मुखर होकर इसकी आलोचना कर रहे हैं।

बस्ती में भी फरवरी माह में 3 दिवसीय महोत्सव का आयोजन किया गया था। दूसरे दिन भोजपुरी गायक और एक्टर रितेश पाण्डेय का प्रोग्राम था। उसके मंच पर आते ही दर्शक उसका सबसे हिट गाना रूपियवा के पहिले हमार रहलू’ सुनने के लिये उतावले हो रहे थे। लोग सीटियां मार रहे थे, शोर मचा रहे थे, हर किसी की जुबान पर रितेश पाण्डेय का यही गाना था। पंडाल में डीएम प्रियंका अगली पंक्ति में ही बैठी थी। साथ में अन्य अधिकारी थे, रितेश पाण्डेय इशारों में ही इस गीत को गाने की इजाजत मांगते रहे लेकिन डीएम ने ने इजाजत नहीं दी। हालांकि उसने कई गाने सुनाये लेकिन मर्यादा भंग नही हुई।

हरैया के मखौड़ा महोत्सव में ऐसी स्थिति नही थी। हालात ऐसे थे कि उसी स्तर की अश्लीलता कुछ देर और रहती तो मर्यादा क्या बहुत कुछ भंग होने की आशंका थी। दर्शकों और प्रबुद्ध जनो का कहना था कि काजल राघवानी की जगह किसी भजन गायक को बुलाये होते तो पवित्र मखौड़ा धाम की गरिमा तार तार न होती और दर्शक कार्यक्रम की गंभीरता समझ पाते। काश! इस पवित्र भूमि पर भगवान राम से जुड़े प्रसंगों का जीवंत अभिनय होता, भजन सम्राटों की महफिल सजती, लोक गायन को सम्मान मिलता और भारतीय संस्कृति तथा सनातन परंपरा को मजबूती मिलती। इतना ही नही पूरी दुनियां इस धरती के संस्कारों को नकल करना चाहती है। सवाल ये है कि आयोजक ऐसे माहौल से सबक लेंगे या फिर दर्शकों की लुक्खई आगे भी देखने को मिलेगी।


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