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बदल गये हैं प्रतिबंधों के मायने, 5 रूपये का कमला 15 रूपये में, चांदी काट रहे धंधेबाज

Posted on: Thu, 07, May 2020 6:47 PM (IST)
बदल गये हैं प्रतिबंधों के मायने, 5 रूपये का कमला 15 रूपये में, चांदी काट रहे धंधेबाज

बस्तीः लॉकडाउन पीरियड में गुटखा और पान मसाले की बिक्री पर प्रतिबंध था। लेकिन इसी पीरियड में गुटखा, पान मसाला सबसे ज्यादा बिका है। वह भी चार गुना दामों पर। हैरान करने वाली बात ये है कि अधिक दाम पर सब्जी बेंचने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और गुटखा पान मसाला बेंचने वालों पर जिम्मेदारों की नज़र ही नही गयी, अथवा देखकर आंख बंद कर लिया। यही कारण था कि धंधेबाज डंप माल को खपाने में कामयाब रहे। मसाले के शौकीन तो किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार हैं लेकिन कालाबाजारियों को जिम्मेदार अभयदान क्यों देते रहे, पब्लिक सब जानती है।

पांच रूपये में मिलने वाला कमला पसंद सीधे 15-20 रूपये में बिका, 39 पाउच वाला पहले 170 रूपये में बिकने वाला पैकेट लॉकडाउन में 350 से 400 रूपये में बिक रहा है। इसी तरह 3 रूपये वाला कमला पसंद 10 रूपये में बिक रहा है। कमला का सारा पैसा कमल के पास रहा है सभी को पता है। लेकिन भारी भरकम प्रोफाइल पर हाथ डालने की हिम्मत प्रशासन नही कर पाया। ऐसे में फुटकर विक्रेता की मजबूरी बन गयी है कि वह लागत के हिसाब से ग्राहक से पैसे वसूल करे। इसी तरह 1 रूपये वाला डाक्टर 3 रूपये में। कैप्सटन सिगरेट फुटकर 12 रूपये में बिक रहा है। पहले यह 6 रूपये में मिलता था।

यदि कोई डिब्बा खरीदता है उसे 110 रूपये देने पड़ रहे हैं, इसमें 10 सिगरेट होते हैं। पहले यह 52 रूपये में मिलता था। विल्स को 15 रूपये में फुटकर बेंचा जा रहा है, पहले 10 रूपये में मिलता था। पैकेट में 10 होते हैं जो पहले 90 रूपये में मिलता था, अब 150 में मिलता है। एक सिगरेट गोल्ड फ्लैग 20 रूपये में बेंचा जा रहा है, पहले यह 10 रूपये में मिलता था। इसी तरह सबसे ज्यादा प्रयोग में आने वाली एक पैकेट चैनी जो 10 रूपये में बेंची जाती थी, लॉकडाउन में 25 रूपये में धडल्ले से बेंची जा रही है। तम्बाकू खाने वाला हर कोई चैनी का दिवाना है। यही स्थिति दूसरे ब्राण्डों के पान मसाला, सिगरेट और गुटखों की है।

प्रतिबंधों को बताकर लगातार इसकी बिक्री होती रही और जिम्मेदार सोते रहे। दरअसल यहां प्रतिबंधों के मायने बदल गये हैं। जब भी कोई वस्तु प्रतिबन्धित होती है तो व्यापारी खुश होते हैं, क्योंकि प्रतिबंध के बाद ही सामानों में असली बचत होती है, उससे पहले तो काम चलाऊ इनकम रहती है। इस खेल में रिटेलर से लेकर स्टाकिस्ट और निर्माता तक सभी की भूमिका होती है। प्रतिबंध के बाद निर्माता को कच्चा माल महंगा मिलता है इसलिये वे दाम बढ़ाकर स्टाकिस्ट को देते हैं। स्टाकिस्ट और फुटकर विक्रेता को महंगा खरीदना पड़ता है इसलिये महंगा बेंचना उनकी मजबूरी है।

बिहार में शराब प्रतिबन्धित है लेकिन दोगुने दामों पर हर किसी को उपलब्ध हो जाती है। उत्तर प्रदेश में पॉलीथीन प्रतिबन्धित है लेकिन धड़ल्ले से खरीदी और बेंची जा रही है। शर्त बस इतनी है पहले से ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर थूकना मना है लेकिन लोग जहां मन मे आया थूक देते हैं। ऐसे अनेकानेक उदाहरण है जब प्रतिबंधों का मजाक उड़ाते अक्सर लोगों को देखा जाता है। जनता अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह है मॉनीटरिंग भी इससे कम लापरवाह नही है। तभी तो प्रतिबंधों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं और निगेहबानी करने वाले अंजान बने हैं।


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