हकीकत का सामना क्यों नही करते नेताजी
अशोक श्रीवास्तवः बस्ती जनपद के बनकटी विकास खण्ड के परासी गांव की यह तस्वीर मौजूदा जन प्रतिनिधियों की उदासीनता बयां कर रही है। गांव में जलनिकासी का कोई प्रबंध नही है। जो नालियां बनी हैं उसका पानी भी गांव के तिराहे पर आकर इकट्ठा होता है। हालात ऐसे हैं कि सड़क ही नाली है। पूरे वर्ष भर यहां पानी जमा रहता है। मौजूदा ग्राम प्रधान शिवकुमार पिछला कार्यकाल छोड़कर उसके पहले भी पांच साल तक प्रधान थे। दो कार्यकाल बीत जाने के बावजूद गांव के बीच की इस समस्या का समाधान उनकी प्राथमिकताओं में नही आया।
गांव के ही एक व्यक्ति ने बिना नाम बताये कहा कि नाली बनवायें या न बनवायें, पैसों के दम पर चुनाव जीता जाता है फिर जीत जायेंगे। जो पानी की तरह पैसा खर्च कर चुनाव जीतेगा वह विकास क्या करेगा और जरूरत भी क्या है करने की। अब तो जन प्रतिनिधि यह जान गये हैं कि प्रबुद्ध मतदाताओं को छोड़ दें तो बाकी वोट खरीदे जा सकते हैं। फिलहाल गांव के लोगों को आवागमन में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हल्लौर नगरा तथा बनकटी ब्लाक मुख्यालय जाने के लिये इसी रास्ते का प्रयोग करना पड़ता है। ग्रामीणों ने मीडिया दस्तक के माध्यम से सांसद, विधायक का समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुये नाली बनवाकर जलजमाव की समस्या से निजात दिलाने की मांग किया है।
आपको बता दें यह हालात विगत करीब 15 वर्षों से है और जन प्रतिनिधि विकास के दावे करने लगते हैं तो उनकी जुबान नही थकती। न जाने वे इस हकीकत का सामना क्यों नही करना चाहते। उज्ज्वला, मुद्रा, प्रधानमंत्री आवास सहित कई अन्य योजनाओं का बखान कर जिस विकास की तस्वीर पेश की जा रही है वास्तव में उसके पीछे का सच बहुत ही शर्मसार करने वाला है। उज्ज्वला योजना के तहत जिन घरों में गैस कनेक्शन पहुंचा वहां 60 प्रतिशत लोग दोबारा गैस नही भरवा पाये, सरकार ने रसोई को धुआरहित बनाने के लिये जो उपकरण दिया है वह पूरी तरह काम में तब आयेगा जब गरीबी कम हो और लोग बगैर तकलीफ के गैस रिफिल करवा सकें। यही हाल प्रधानमंत्री आवासों का है।
प्रधानमंत्री आवास पाने के लिये आप पात्र हों या अपात्र कोई मायने नही रखता, उसकी पात्रता 25 हजार रूपये रिश्वत देने पर तय होती है, और गरीब आदमी जो जाड़ा गरमी बरसात तीनो सीजन झोपड़ी में बिता रहा है उसकी औकात कहां कि 25 हजार घूस दे पाये, लेहाजा अधिकांश पात्र हाशिये पर हो गये और अपात्र मजा मार रहे हैं। मुद्रा योजना की बात करें तो इस योजना में बड़ी सहजता से लोन हो जाना चाहिये, किन्तु आम आदमी को लेना हो तो उसका सिर का पसीना पांव पर आ जायेगा, वहीं रसूखदार लोगों की फाइल बैंक मैनेजर उनके घर आकर तैयार कर लेता है। इसमें भी 10 फीसदी बैंक मैनेजर का रेट चल रहा है।
इस प्रकार कुल मिलाकर बात करें तो योजनायें ऐसी लानी होंगी जो आम आदमी को आत्मनिर्भर बना सकें, वह छोटी छोटी सहायता के लिये सरकार या नेताओं के रहम पर न निर्भर हो। लेकिन ऐसा कौन चाहता है ? ऐसा करने पर तो आम आदमी झंझावातों के बोझ से आजाद हो जायेगा और देश के लिये अच्छा बुरा सोचना शुरू कर देगा, तो ये लूट तंत्र कैसे मजबूत हो पायेगा। सहयोग बनकटी संवाददाता-लवकुश यादव