लगता है धरती पर भगवान आये हैं, हर गली, चौराहों पर स्वागत को उमड़ रहे लोग
बस्ती, 12 अक्टूबर। ऐसा लगता है बस्ती जिले में कुछ दिनों के लिये धरती पर भगवान उतर आये हैं। कोई गली मोहल्ला, शहर, कस्बा ऐसा नही है जहां उनके स्वागत को जनता आतुर न दिखी हो। हम बात कर रहे हैं आधुनिक भगवान की जो केवल एक ही दल में पाये जाते हैं। जब से उन्हे पद और पॉवर मिला है, कोई चौराहा नहीं बंच रहा है जहां उनका ऐतिहासिक स्वागत न हुआ हो।
भगवान उतर आयें धरती पर शायद उनका इतना स्वागत नही होगा, क्योंकि उनके सामने तो लोग अपनी विपत्ति लेकर पहुंच जायेंगे। भला फूल माला लेकर कौन पहुंचेगा। लेकिन ये भगवान ऐसे हैं जिनके पास पद और प्रतिष्ठा दोनो की ताकत है और ये फूल मालाओं तथा जिंदाबाद के नारों से प्रसन्न होते हैं। उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में जहां आधुनिक भगवानों के नामों की घोषणा हुई है कमोवेश यही स्थिति है। जहां तक बस्ती जिले की बात है यह इस मामले में कुछ ज्यादा ही समृद्ध है।
काश! ये आधुनिक भगवान जगह जगह पहुंचकर फूल माला महनने और आरती उतरवाने की जगह कागज कलम लेकर जनता का दर्द सुनते और नोट करते और ऊपर बैठे हुये भगवान से जनता का दर्द करने की दरखास्त करते तो माहौल कुछ और ही होता और जनता को भी अच्छे दिनों का अहसास होता। शहर से लेकर देहात तक बंदरों और छुट्टा जानवरों ने नागरिकों का जीना हराम कर दिया है, सड़के गड्ढा बन चुकी हैं, ग्रामीणों क्षेत्र में बिजली कटौती को लेकर हाहाकार मचा है। रोड लाइटे खराब हैं, नालियों की सफाई नही हो रही है, ज्यादातर सरकारी कर्मचारी और अफसर घूसखोरी को लीगल मानने लगे हैं।
वाटर कूलर से एक बूंद पानी नही नसीब हो रहा है, ट्राफिक सिग्नल महीनों से खराब पड़े हैं। इन सब की अनदेखी कर स्वागत का रिकार्ड बनाया जा रहा है। ऐसा लग रहा है जैसे जनता की समस्यायें निस्तारित कर राजा गली मोहल्लों में उत्सव मनाने निकला हो। खैर वहां तो उत्सवों की भी स्वस्थ परंपरा है। कभी लोहा इकट्ठा किया जाता है, कभी मिट्टी तो कभी मुद्रा। इन सबकी बुनियाद में सिर्फ सत्ता और कुछ नहीं। जनता के सरोकारों पर बहंस की परंपरा अब टूट रही है। जिसका जितना ऐतिहासिक स्वागत होगा उसे उतना ही लोकप्रिय और ताकतवर समझा जायेंगा। काश! इनका जमीर जागता और ये चौपाल लगाकर केवल जन समस्यायें इकट्ठा करते तो भी अपना दर्द सुनाकर जनता की कुछ पीड़़ा कम हो जाती।