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इनके आंसू कौन पोछेगा साहब!

Posted on: Thu, 13, Sep 2018 11:01 PM (IST)
इनके आंसू कौन पोछेगा साहब!

अशोक श्रीवास्तवः बूंद बूंद से घड़ा भरता है। कई लोग मिलकर कुछ लोगों की भूख मिटा सकते हैं अथवा उन्हे मुसीबत से उबार सकते हैं। समाज का ढाचा भी इसी बुनियाद पर खड़ा है। जिलाधिकारी डा. राजशेखर की पहल निश्चित रूप से अनके परिवारों की भूख मिटायेगी, उनके आंसू पोछेगी। डा. शेखर के निर्देश पर सभी महकमों के अधिकारियों कर्मचारियों ने केरल बाढ़ पीड़ितों के लिये धनराशि जुटाना शुरू किया। जिलाधिकारी ने खुद नही सोचा हागा कि इजनी बड़ी धनराशि इकट्ठा हो जायेगी। आज एकत्र की गयी धनराशि का चेक केरल के मुख्यमंत्री के नाम भेजा गया है। जिलाधिकारी डा. राजशेखर ने विकास भवन में मीडिया को बताया कि 20 लाख 83 हजार 111 रूपये का चेक बाढ़ पीडितो के सहायतार्थ केरल के मुख्यमंत्री के नाम भेजा गया है। उन्होने बताया कि केरल प्रदेश में भीषण बाढ़ एवं चक्रवात के परिणामस्वरूप् धन-जन की भारी हानि हुयी है। जिले के सरकारी विभागो के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने खुले दिल से बाढ पीडितो के सहायतार्थ धन संग्रह किया। उक्त धनराशि को केरल के सीएम के नाम बाढ पीडितो के सहातार्थ भेजा गया है। निःसंदेह जिलाधिकारी की अनूठी पहल सराहनीय है। लेकिन हर कार्य की क्रिया प्रतिक्रिया होती है।

इस वक्त जो प्रतिक्रिया हो रही है वह यह है कि जनपद में भी बाढ़ आयी है। हरैया इलाके में बंधा कट गया है। सरकारी इमदाद पर्याप्त नही है। हर साल की तरह इस बार भी कई दर्जन आशियाने उजड़ गये, शिव मन्दिर देखते देखते घाघरा नदी की धारा में समा गया, मन्दिर के पुनः निर्माण के लिये कोई आगे नही आया। जरूरी मदद न मिल पाने के कारण क्षेत्रीय जनमानस में गजब का गुस्सा है, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आगमन पर भी दिखा। देखा जाये तो पांच सालों में जितना धन आपदा राहत के नाम पर खर्च किया गया है उतना खर्च कर अत्याधुनिक सुविधाओं वाले नये गांव बसाये जा सकते हैं लेकिन ऐसा करने पर 10 किलो राशन देकर फोटो खिंचवाने का मौका हाथ से निकल जायेगा। खुद को गरीबों का रहनुमा कैसे बतायेंगे। किसके आंसू पोछने जायेंगे जब कोई रोने वाला नही होगा। शायद यही राजनीति है। यही कारण है कि समस्याओं के स्थायी हल नही ढूढ़े जाते।

सामाजिक कार्यकर्ता चन्द्रमणि पाण्डेय ने केरल को 20 लाख रूपये की मदद भेजने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि जिले में जो तबाही आई है, इसके लिये कोई आगे नही आया। बीस लाख दूर पांच लाख की मदद बाढ़ पीड़ितों को हो जाये तो वह मदद दिखायी देगी। अब तक दर्जनों आशियाने उजड़ चुके हैं, बाढ़ पीड़ित दूसरे गांव में जाकर शरणार्थी बने हैं, प्रशासन की ओर से आश्रय स्थल नही बनाये गये। हरैया क्षेत्र के कुछ गावों के नसीब में बसना और उजड़ना है, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय सारी योजनायें यहां आकर दम तोड़ देती हैं। ऐसे अनेक परिवार में जो बाढ़ आने पर बेघर हो जाते हैं, बाढ समाप्त होने पर वे फिर अस्थायी घर बना लेते हैं, शासन उन्हे उजड़ा हुआ नही मानती है।

इसलिये उन्हे बसाने का भी बंदोबस्त नही किया जाता। यदि उनके आंसू पोछने हैं तो कहीं उनके नाम जमीनें आवंटित कर उनके सिर पर स्थायी छत दिया जा सकता है। लेकिन ऐसा होने पर प्रतिवर्ष बाढ़ के नाम पर आई सहायता का बंदरबांट कैसे होगा। चन्द्रमणि ने यह भी कहा 10-15 किलो राशन देकर पीड़ित परिवारों के लिये कितने दिन के भोजन का बंदोबस्त किया जाता है। बाढ़ आने पर पीड़ितों के लिये कम से कम 3 महीने के भोजन का प्रबंध करना चाहिये। उन्होने कहा आपदा रात सिर्फ दिखावा है, सरकार खुद समस्याओं का स्थायी हल नही ढूढ़ना चाहती है।

जरा सोचिये आपके घर में आग लगी हो, आप मुसीबत में हों और फायर ब्रिगेड पड़ोसी के यहां पानी बरसाये तो कैसा महसूस करेंगे। ठीक वही इस समय हरैया इलाके के बाढ़ पीड़ित महसूस कर रहे हैं, जिनके पास खाने को पर्याप्त भोजन और रहने को स्थायी छत नही है। वे आठ महीने घासफूस से बने मकानों में रहते हैं और चार महीने खानाबदोश। बाढ़ आती है तो पहले उनका आशियाना छिनता है फिर रोटी। यही नसीब लेकर वे पैदा हुये हैं। ऐसे लोगों को स्थायी आवास मुहैया रिने के लिये सरकार के पास कोई योजना नही है, सरकार के पास जनता की गाढ़ी कमाई आपदा राहत के नाम पर कर साल लुटाने की नायाब योजना है, इससे कुछ अफसर और कर्मचारी इस कदर मालामाल हो जाते हैं कि पूरे साल का खर्च व्यवस्थित हो जाता है। बाकी बंधे को कटान से बचाने के लिये लगे बोल्डर को नदी की तेज धारा बहा ले जायेगी और अगले साल की बाढ़ इनके लिये फिर ढेर सारी संभावनायें लेकर आयेगी।


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