• Subscribe Us

logo
07 मई 2024
07 मई 2024

विज्ञापन
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।
समाचार > संपादकीय

अच्छे लोग परेशान क्यों हैं ?

Posted on: Tue, 06, Nov 2018 12:27 PM (IST)
अच्छे लोग परेशान क्यों हैं ?

(अशोक श्रीवास्तव) मौजूदा परिवेश में यह एक बड़ा सवाल है, आखिर अच्छे लोग परेशान क्यों हैं। अपवादों को छोड़कर हर जगह ऐसे लोगों को परेशान देखा जा रहा है। समाज को सही दिशा में ले जाने तथा बेहतर कानून व्यवस्था व चौतरफा तरक्की के दावे करने वालों को शायद ये हकीकत नहीं पता। समाज में जो अच्छे लोग हैं वे हाशिये पर हैं। ये वे लोग हैं जो देश के कानून, संस्कृति और वरिष्ठजनों का सम्मान करते हैं, पारिवारिक दायित्वों के साथ ही सामाजिक दायित्व भी बखूबी निभा रहे हैं। ऐसे लोग खुद्दार भी हैं, स्वामिभानी भी। वे हमेशा मुख्य धारा और भूमिका में रहना चाहते हैं लेकिन शार्टकट अपनाने वालों की नज़र में उनकी कोई अहमियत नहीं है।

वे समाज के निर्माण में अच्छी भूमिका निभा सकते हैं लेकिन समाज तो शार्टकट अपनाने वाले लोगों के साथ है जो हर कीमत चुकाकर खुद को सम्पन्न बनाना चाहते हैं। उन्हे न कानून से कोई लेनादेना और न ही देश की संस्कृति और सभ्यता से लेकिन दिखावेपन का उन्होने ऐसा लिबास पहनकर रखा है कि उनके आगे अच्छे लोग ही बुरे नज़र आते हैं और वे सबसे अच्छे। दरअसल समाज इन्ही रास्तों पर चल पड़ा है। आज किसी की सफलता और लोकप्रियता उसके द्वारा इकट्ठा किये गये भौतिक संसाधनों और बैंक खाते में जमा धन से आंकी जा रही है। जिसके पास जितने अधिक संसाधन और धन वह उतना ही कामयाब।

इस कामयाबी की आड़ में उन्होने कितनों को नुकसान पहुंचाया होगा, कितनी बार कानून तोड़ा होगा, कितनों को धोखा दिया होगा, इसका आंकलन करने को कोई तैयार नही है। सारी दुनियां यही देख रही है कि सामने वाला अपनी जिंदगी में काफी सफल है, गाड़ी बंगला, बैंक खातों में भारी भरकम धनराशि, यदि वह अच्छा न होता तो आखिर इतना कामयाब कैसे होता। 50 लोग हमेशा उसके दरवाजे पर बैठे रहते हैं, उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा ऐसी न होती तो कोई क्यों जाता उसके दरवाजे पर। बस आंकलन कर यही तरीका समाज को गलत रास्ते पर ले जा रहा है। खास चिंता युवाओं की है जो सफलता और लोकप्रियता को आंकने के लिये शायद ऐसा ही चश्मा लगा रखे हैं।

यदि समाज अच्छाई और सफलता को इस चश्मे से देखेगा तो वास्तव में यही वक्त है मूल्यांकन करने का कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं। क्या हम इसी को उचित मानकर अनुसरण शुरू कर दें। इस प्रकार का असमंजस ज्यादातर युवाओं को प्रभावित कर रहा है जो अपनी पढ़ाई खत्म कर ऐसे मंकाम की तलाश कर रहे हैं जहां आर्थिक आजादी भी हो और सामाजिक प्रतिष्ठा भी। डर है कि मौजूदा परिवेश में जिन तरीकों से ये दोनो चीजें हासिल की जा रही हैं युवा उन तरीकों का इस्तेमाल करने लगेंगे तब तो समाज और राष्ट्र निर्माण के सपने धरे रह जायेंगे।

आजादी के सात दशक बाद भी ऐसे हालात नही पैदा हुये कि लोग निडर होकर पुलिस थानों में जा सकें। वहां कब किसकी इज़्जत चली जायेगी और किसकी जेब नोंच ली जायेगी कुछ नही कहा जा सकता। यहां भी तस्वीर उल्टी है। इलाके का गुण्डा, जिसकी असलहों से लैस कई लोग सुरक्षा करते हैं, कई लग्जरी वाहनों के साथ चलता है, धन्नासेठों में भी उसका नाम है, वह थानों पर ऊंची कुर्सी बैठने को पाता है, दरोगा जी उसके साथ रिश्तेदार की तरह पेश आते हैं, वहीं एक अच्छा आदमी हाथ जोड़े खड़ा रहता है फरियाद करता है, दरोगा जी तुरन्त पहचान लेते हैं कि यही वह गलत आदमी है जिसे वे कई दिनों से ढूढ़ रहे हैं, शराफत से मान गया तो ठीक नही तो अपनी भाषा में अपराध कबूल करवाकर उसे जेल भेज देते हैं।

ऐसा इसलिये कि वह जिससे परेशान रहता है अथवा उसे जो प्रायः परेशान करता है उसकी पैरबी उसी के सामने एक रसूखदार कर जाता है। अब जरा सोचिये यहां एक पढ़ा लिखा युवा जो खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में लगा है वह क्या अनुसरण करेगा। सम्मान और रसूख कौन नहीं चाहता, वह तुरन्त समझ जाता है कि अभी जो थाने पर कई वाहनों असलहों और शागिर्दों के साथ आया था, क्या मजेदार जीवन जी रहा है। बस यहीं से वह उसका रोल मॉडल बन जाता है। वह समाज को किसर दिशा में ले जायेगा सोचा जा सकता है।

कुल मिलाकर हम यह कहना चाहते हैं कि जिस समाज में अच्छे लोग तिरस्कृत और हाशिये पर हैं, उसका बेड़ा गर्क होना तय है। समाज और देश की बेहतरी इसी में है कि अच्छे लोगें का सम्मान हर तरीके से सम्मान हो, पुलिस थानों, सरकारी गैर संस्थानों में उन्हे सम्मान दिया जाये, उन्हे प्रोत्साहित किया जाये ताकि वे अपनी प्रतिभा और आदर्शवादी सोच का अधिकाधिक लाभ समाज को दे सकें। हालांकि समाज और राष्ट्र निर्माण के लिये सिर्फ इतना ही पर्याप्त नही होगा, इससे उलट बुरे लोगों को तिरस्कृत करना होगा, उनका महत्व कम करना होगा, उन्हे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपने से परहेज करना होगा। तब जाकर सरदार पटेल, सुबाष, शहीदे आजम, डा. राजेन्द्र प्रसाद, कलाम साहब, अशफाक के सपनों का भारत बनेगा। जब तक हम ये नही करेंगे तब सारे प्रयास बेनतीजा रहेंगे।

दरअसल आज लोग भ्रम में हैं चमचमाते हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और बाथरूम तक पहुंच चुके डिटिजल टेक्नॉलोजी को हम राष्ट्र निर्माण मान बैठे हैं और असल में यही सबसे बड़ी गलती है। बेहतर होगा जो जहां भी और जिन भी परिस्थितियों में है वह अच्छे को अच्छा और बुरे का बुरा कहने का साहस अपने में विकसित कर ले। इसी तर्ज पर वह अच्छे को प्रोत्साहित और बुरे लोगों को हतोत्साहित करने को अपनी दिनचर्या में शामिल कर ले, यहीं से राष्ट्र निर्माण शुरू हो जायेगा। इसके लिये हो सकता है कि कुछ जोखिम भी उठानी पड़े, इससे बेफिक्र रहना होगा बगैर जोखिम के निर्माण न हुआ है और न होगा।


ब्रेकिंग न्यूज
मीडिया दस्तक में आप का स्वागत है।