सपा में सिर्फ दो दिग्गजों पर हो रही चर्चा
बस्ती (अशोक श्रीवास्तव) विगत पांच सालों में विभिन्न दलों के नेताओं में यह संदेश गया है कि भाजपा का चुनावी प्रबंधन और निर्णय लेने की क्षमता अद्भुत है। अब तो जनता भी कहने लगी है कि भाजपा में चाहे जितनी कमियां हों चुनाव जीतना उसे आता है। इसका श्रेय ईवीएम को नही बल्कि चुनाव प्रबंधन को जाता है। शायद यही कारण है चुनाव पूर्व ही लोग यह कहने लगे है कि भाजपा के चाणक्य जब अपनी मोहरे बिछायेंगे तो राजनीतिक प्रतिद्वन्दी लापता हो जायेंगे। इसका प्रमुख कारण ये है कि अभी जनता में कोई ये जाकर पूछे कि भाजपा से लोकसभा चुनाव में टिकट के दावेदार कौन कौन हैं तो कम जानकार भी दर्जन भर नाम गिना देंगे। जबकि दूसरे दलों में पूरा मैदान साफ है। दो गुटों में बंटी सपा के अधिकांश नेताओं और समर्थकों को ये समझ नही आ रहा है कि उनका हित चाचा के साथ है या भतीजे के साथ।
दावेदारी को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों से पूछा गया तो पता चला कि सपा में सिर्फ दो दिग्गज मैदान में दिखायी दे रहे हैं जो लोकसभा में दावेदारी ठोंक सकते हैं। एक है पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह के अनुज व पूर्व ऊर्जा सलाहकार बृजकिशोर सिंह डिम्पल और दूसरे हैं सदर विधानसभा से चुनाव लड़ चुके महेन्द्र यादव। एक को जनता शिवपाल का निकटस्थ बताती है तो दूसरे को अखिलेश का। दोनो नेता लोकसभा क्षेत्र में संपर्क में जुटे हैं। जनचर्चाओं की मानें तो संपर्क में महेन्द्र यादव दो कदम आगे हैं, सभी के सुख दुख और समारोहों में प्रमुखता से दिखायी देते हैं।
सकारात्मक ऊर्जा से भरे हैं, विधानसभा चुनाव हारने का उन्हे कोई गम नही है बल्कि उसके बाद वे और बड़ा लक्ष्य बनाकर लगातार जनता के संपर्क में हैं। युवाओं में खासे लोकप्रिय बताये जाते हैं। संघर्ष की बात करें तो उन्होने जो भी मुकाम आज तक हासिल किया है सब संघर्षों के दम पर ही है। उनमे यह योग्यता विद्यार्थी जीवन से ही है। विधानसभा चुनाव में 50,103 वोट पाकर वे दूसरे स्थान पर थे। वहीं जनचर्चाओं में रहता है कि पूर्व कैबिनेट मंत्री राजकिशोर सिंह ही बृजकिशोर सिह की असली ताकत हैं। उनके साथ पूर्व कैबिनेट मंत्री का नाम जुड़ने से प्रोफाइल खास हो जाती है लेकिन वोट भी ट्रांसफर हो इसकी गारण्टी नही ली जा सकती। जरूरी नही कि जो कैबिनेट मंत्री को पसंद करता हो वह बृजकिशोर सिंह को भी पसंद करेगा और जो उन्हे पसंद करता हो वह कैबिनेट मंत्री को भी पसंद करेगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में 3,24,118 वोट पाकर वे दूसरे नम्बर पर थे।
वोटों की ये संख्या साधारण नही है, जीत के करीब है, खास तौर से उस वक्त जब देशभर में मोदी लहर चल रही थी। खास बात ये है कि यहां सपा समर्थकों में भारी उहापोह देखा जा रहा है। जनता मे इन दोनो नेताओं की लोकसभा चुनाव में दावेदारी को लेकर जो चर्चा है वह यह है कि महेन्द्र नाथ यादव को जनता अखिलेश यादव के गुट में रखकर देखती है और बृजकिशोर सिंह डिम्पल को शिवपाल के गुट में। हालांकि किसी की ओर से अभी ऐसी कोई घोषणा नही की गयी है लेकिन जनचर्चाओं की अनदेखी नही की जा सकती। कहीं ऐसा न हो कि एक को अखिलेश की पार्टी से टिकट मिल जाये और दूसरे को शिवपाल यादव की। ऐसा हुआ तो दोनो दिग्गज आमने सामने होंगे नतीजा जो भी हो।
पूरे प्रदेश में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया के अध्यक्ष शिवपाल यादव जिस तरह लॉबींग कर रहे हैं उससे यह लगता है कि दोनो दलों के उम्मीदवारों का कई जगहों पर आमना सामना हो सकता है। फिलहाल इस नई पार्टी की जिले की कमान रामकेवल यादव के हाथों में है। जबकि सपा के जिलाध्यक्ष अब भी राजकूपर यादव हैं जहां से कार्यकर्ता तेजी से पलायन कर रहे हैं और पीएसपी लोहिया का दामन थाम रहे हैं। अब तक दर्जनों निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने अपना रास्ता बदला है। पूछा गया तो पता चला कि वे राजकपूर की कार्यशैली से संतुष्ट नही है इसलिये रामकेवल यादव के साथ जा रहे हैं। अभी लोकसभा चुनाव में काफी वक्त है, मीडिया दस्तक ने जनचर्चाओं को सार्वजनिक किया है, हालांकि आने वाले दिनों मे निःसंदेह स्थितियां तेजी से बदलती नजर आयेंगी।