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सिर्फ मथुरा में ही शराब बंदी क्यों ?

Posted on: Fri, 08, Jun 2018 8:53 PM (IST)
सिर्फ मथुरा में ही शराब बंदी क्यों ?

अशोक श्रीवास्तवः शराब इंसान को हैवान बना देती है। बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं को अंजाम देने से पहले अपराधी नशे में धुत होता है। कहते हैं शराब का नशा जब हलक से नीचे उतरता है तो लोगों की सही गलत में फर्क करने की क्षमता क्षीण हो जाती है और वह दरिंदगी पर उतर आता है। 75 फीसदी से ज्यादा सड़क हादसे नशे में वाहन चलाने के कारण होते हैं। यह भी माना जाता है कि शराब पर पूर्णरूप से प्रतिबंध लगा दिया जाये तो बलात्कार जैसी घटनायें 80 फीसदी कम हो जायेंगी, बाकी मुकदमों के समयबद्ध निस्तारण और कड़े कानून बनाकर नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में आश्चर्यजनक कमी आयेगी। एक अच्छे शासक का यह कर्तव्य होता है कि वह देश में असमय होने वाली मौतों को कम करने के सभी संभव उपाय करे। नरेन्द्र मोदी जैसे संस्कारवान प्रधानमंत्री और एक योगी को उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में पाकर यह उम्मीद जगी थी कि शराबबंदी लागू होगी लेकिन मोदी सरकार के चार साल बीतने के बावजूद इस दिशा में सोच तक नहीं बन पायी और लागू करने की बात तो बहुत दूर है। योगी सरकार ने शराबबंदी लागू की तो केवल मथुरा में। इसके पीछे उनके क्या तर्क है वही जानें, लेकिन किसी एक शहर में शराब पर प्रतिबंध लगाने वाली बात जनता के समझ में नही आ रही है।

यदि मथुरा को कृष्ण की नगरी समझकर ऐसा फैसला लिया गया तो काशी, हरिद्वार, अयोध्या क्यों नहीं। क्या इन शहरों का धार्मिक महत्व मथुरा से कम है। अगर शराब बंदी लागू करने का उद्देश्य अपराधों को नियंत्रित करना है तो क्या मथुरा में सिर्फ इसकी जरूरत है ? अन्य शहरों में अपराध और अपराधी नहीं हैं ? अनेक आपराधिक मामलों की समीक्षा कर ली जाये, तो अपवादों को छोड़ सभी मामलों में नशे में धुत अपराधी ही घटनाओं को अंजाम देते हैं, जब यह बात सर्वमान्य है तो शराब पर प्रतिबंध लगाने में क्या हर्ज है ? बिहार में शराब बंदी लागू हुई, क्या बिगड़ गया, जो राजस्व घाटा हुआ उसे सरकार धीरे धीरे मेन्टेन कर रही है, हालांकि वहां शराब की तस्करी भी हो रही है, लेकिन यह कानूनी तौर पर अवैध होने के कारण इस पर धीरे धीरे रोक लग जायेगा। यही हाल गुजरात का है। एक बार कड़ा फैसला लेकर दोनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने यह फैसला कर लिया, इसके बावजूद राज्य में सबकुछ पूर्व की भांति सामान्य है।

आंकड़ों की बात करें शराब हर साल करीब 33 लाख लोगों की जान लेती है। एड्स, टीबी और हिंसा के शिकार व्यक्तियों को मिलाकर देखा जाए, तो भी शराब की चपेट में आकर जान खोने वाले लोग कहीं ज्यादा हैं। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो हर 20 मौतों में एक मौत शराब से होती है। शराब से होने वाली मौतों में नशे में गाड़ी चलाने से होने वाली मौतें भी शामिल हैं. संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल रहे शेखर सक्सेना कहते हैं कि आंकड़ों को देखा जाए तो हर 10 सेकेंड पर एक व्यक्ति अल्कोहल की वजह से मरता है।

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि शराब अब उन देशों में मशहूर हो रही है जहां पारंपिक तौर पर शराब को बुरा माना जाता था. ऐसे देशों में भारत और चीन शामिल हैं। इन देशों में शराब के प्रति नजरिया सकारात्मक नही था। लेकिन अब लोगों के पास ज्यादा पैसा होने से वह शराब खरीदने लगे हैं और उनके नजरिये में भी बदलाव आया है। लेकिन इन हैरान करने वाले आंकड़ों के बावजूद दुनिया में ऐसे भी देश हैं जहां लोगों ने कभी शराब नहीं पी है. इनमें कुछ इस्लामी देश के लोग हैं जहां शराब पीना वर्जित है. कम आमदनी वाले देशों में भी शराब कम पी जाती है।

पूरे देश में शराब बंदी लागू करना देश को दूसरी आजादी दिलाने से कम नही हैं। ऐसा हुआ तो देश उस महत्वपूर्ण तारीख को आजादी के जश्न जैसा मनायेगा। करोड़ों परिवार बरबाद होने और असमय मौत के मुंह में समाने से बंच जायेगी और यह फैसला भारत स्वच्छता अभियान, उज्ज्चला, सामूहिक विवाह जैसी अनेक महत्वाकांक्षी पर सबसे भारी पड़ेगा। बस एक बार साहस जुटाकर पूरे आत्मविश्वास के साथ इसे लागू करना होगा। फिर यहीं से भारत का असली निर्माण और विकास शुरू हो जायेगा। देश में नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े फैसले लिये जा सकते हैं तो शराबबंदी क्यों नही ?


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