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बढ़ते अपराधों का कनेक्शन बढ़ती बेरोजगारी से

Posted on: Mon, 21, Oct 2019 10:45 AM (IST)
बढ़ते अपराधों का कनेक्शन बढ़ती बेरोजगारी से

उत्तर प्रदेश में अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। हत्या, बलात्कर, लूट और साइबर क्राइम के आंकड़े बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री से प्रदेश नहीं संभल रहा है। वहीं कई मामलों में पुलिस की नाकामी भी उजागर हुई है। जनता अब मुंह खोल रही है। सभी प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रबंधन को दोयम दर्जे का बता रहे हैं। राजधानी में तो पूरी तरह से अस्थिरता का वातावरण है। कब क्या हो जायेगा कुछ कहा नही जा सकता।

हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी को जिस तरह उनके घर में घुसकर मारा गया उससे कानून व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता। सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति नही सुरक्षित है तो आम आदमी अपनी जान कैसे बचाये। कमलेश तिवारी तो महज एक बानगी है, राजधानी लखनऊ में कत्ल जैसी वारदातें रोज हो रही हैं। बस्ती में छात्र नेता कबीर तिवारी को जिस तरह दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया गया उससे आम आदमी का दहशतजदा होना स्वाभाविक है। इतना ही नही इस दुस्साहसिक वारदात के बाद शहर का जो माहौल था वह और भी भयावह था। बात कबीर तिवारी की हो या कमलेश की, सूई आकर कानून व्यवस्था पर ही अटकती है।

अपराधों के बढ़ने का कारण खराब कानून व्यवस्था और मैनेजमेण्ट ही होता है। अपराधियों में खौफ न हो और आम जनता निडर होकर जीवन न जी पाये तो सवाल कानून व्यवस्था पर ही उठेंगे। काशी विद्यापीठ में छात्रसंघ चुनाव के दौरान असलहे से फायरिंग कर दहशत फैलाई गयी। कई छात्र घायल हुये। कहीं न कहीं ये सारे सवाल पुलिस और कानून व्यवस्था की कमजोरियों से जुड़ते हैं। विगत एक माह के भीतर उत्तर प्रदेश में न जाने कितने कबीर और कमलेश मार दिये गये। ऐसे तमाम घटनाओं के अनावरण पर गौर करें तो एक जो सबसे चौंकाने वाली सामने आ रही है वह यह है कि पकड़े गये अधिकांश अपराधी 40 की उम्र के भीतर के हैं।

यही वह उम्र है जब अस्थिरता और खालीपन व्यक्ति को पागल बना देता है। कहीं न कहीं तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी अपराधों के तेजी से बढ़ने का कारण है। पढ़लिखकर युवाओं को समझ में नही आ रहा है वे क्या करें। थक हारकर वे शार्टकट अपना रहे हैं, खतरनाक रास्तों पर भी चलने को तैयार हैं। कम संसाधनों में जीने की प्रवृत्ति खत्म होती जा रही है, नई पीढ़ी शानदार गाड़ी, खूबसूरत बैग्लो और बैंक खाते में ठीकठाक बैंलेंस को अपनी कामयाबी मान रहे हैं। सरकारी नौकरियां खत्म हो रही हैं। मंदी के दौर में पढ़े लिखे युवाओं को निजी क्षेत्र 8 से 10 हजार रूपये माहवार का ऑफर देता है, युवा जायें तो कहां जायें।

नेता मंच माइक पाते ही कहता है युवा पढ़लिखकर राष्ट्र निर्माण करें। उसे शायद ये नही मालूम कि युवाओं से अवसर छीने जा रहे हैं और राष्ट्रनिर्माण में कोई तनख्वाह नही मिलती, आखिर उनकी जरूरतें कैसे पूरी होंगी। वे पड़ोसी के घर की चकाचौंध देख परेशान होते हैं, सही रास्तों पर चलकर उनकी जरूरतें नही पूरी होतीं तो गलत रास्तों पर संभावनायें ढूढ़ने लगते हैं। वर्तमान समय बहुत चुनौतीपूर्ण है। सरकार को मॉनीटरिंग की कमीक्षा करनी चाहिये। युवाओं के जीवन से अस्थिरता निकालकर उनके हाथों को काम देना होगा और आम आदमी के भीतर से डर निकालकर उन्हे निर्भय होकर जीने का हक देना होगा, तभी सरकार और उसके मैनेजमेण्ट पर सवाल उठने बंद होंगे।


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