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..और जब जलती सिगरेट अरविन्द ने जेब में डाल ली

Posted on: Fri, 15, Jun 2018 7:33 AM (IST)
..और जब जलती सिगरेट अरविन्द ने जेब में डाल ली

अशोक श्रीवास्तवः अदम्य साहस, पत्रकारिता के गुणों से सम्पन्न और बेहद जिद्दी अपने एक अभिन्न साथी अरविन्द श्रीवास्तव (अन्नू) को हमने 14 जून 2016 को खो दिया था। हमें शाम को पता चला कि अरविन्द अब इस दुनिया में नहीं रहे। हमारी ऑफिस लागों से भरी थी, तुरन्त रोने लगा। बाद में खबर सुनकर पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार जयंत मिश्रा ने हमे ढाढस बंधाया। अरविन्द बिलकुल कच्ची गृहस्थी छोड़कर गये। दो बेटियों की शादी और घर परिवार चलाने की जिम्मेदारी उनके इकलौते बेटे पर आ गयी जो खुद अभी अपरिपक्व था। जिस वक्त उनका मृत शरीर उनके घर लाया गया वह दृष्य कभी दिमाग से उतरता ही नहीं, विलाप करती उनकी बेटियां, सीने पर पत्थर रखकर कर्मकाण्ड करता उनका बेटा अंकुर, पत्नी सभी का चेहरा भूलता नहीं।

अरविन्द के जाने का अभी वक्त नहीं था। उनकी उम्र ही क्या थी। कहते थे कि हमसे भी एकाध साल छोटे हैं। इसीलिये हमेशा बड़े भाई का सम्मान देते चले आये। खराब कामों को हमसे छिपाते भी थे। उनका मेरा साथ 1995-96 से था। हालांकि उस वक्त वे पत्रकारिता में नही थे। कुछ दिनों बाद जनमोर्चा में आये। उव वक्त धर्मशाला रोड पर मोनालिसा ब्यूटी पॉलर के बगल में उनकी अंकुर कॉर्नर के नाम सें स्टेशनरी और चंपक, नंदन, सरस सलिल जैसी किताबों की दुकान थी। मुझे अच्छी तरह याद है, उनकी दुकान के सामने से बभनगांवा मोहल्ले में एक रास्ता जाता है। मैं उसी रास्ते से आ रहा था, अन्नू भइया ने हमें देख लिया था, संयोग था वे उस वक्त सिगरेट पी रहे थे और हमे इसकी जानकारी नही थी कि वे धूम्रपान करते हैं। मेरे ऊपर उनकी निगाह तब पड़ी जब मैं उनके निकट आ गया।

उन्होने जलती हुई सिगरेट मुट्ठी में मीजकर पैण्ट की दाहिनी जेब में डाल ली। हमने इस हरकत को देखा। इसके बाद हम लोग चाय वैगरह पीये बैठकर एक दूसरे का कुशलक्षेम पूछे। वे मुझे 01 मई 1999 से पत्रकारिता क्षेत्र में ले आये। हालांकि 1995-96 में बड़े भाई प्रदीप पाण्डेय ने मेरे भीतर पत्रकारिता का कीड़ा सक्रिय कर दिया था। 1999 से स्वतंत्र चेतना से दोबारा शुरूआत हुई। उस वक्त हम बनकटी रहते थे और बुद्धा विद्या मन्दिर में पढ़ाते थे। मुझे बनकटी प्रतिनिधि बनाया गया। मैने बखूबी अपनी जिम्मेदारी को 2010 तक निभाया।

उसके बाद विभिन्न माध्यमों में काम करते हुये तीन वर्ष से मीडिया दस्तक को समाज के लिये अधिक से अधिक उपयोग बनाने का काम कर रहा हूं। आज सच लिखने की जिद, साफ सुथरा बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात करने की आदत और निर्भाक प्रवृत्ति यदि मेरे भीतर है तो निश्चित रूप से इसके जिम्मेदार अरविन्द (अन्नू) हैं। वे होते तो मीडिया दस्तक की कामयाबी देख निश्चित ही प्रसन्न होते। मुझसे जीवन के आखिरी वक्त तक अपनी कुछ आदतें छिपाते रहे। उनकी दूसरी पुण्य तिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि, और भगवान से प्रार्थना कि उनके परिवार को इता सक्षम बनायें कि वे खुद फैसले लें और जीवन के झंझावात का साहस के साथ सामना करते रहें।


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