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07 मई 2024
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परिवहन विभागः हर महीने होती है करोड़ों की वसूली

Posted on: Wed, 26, Jun 2019 7:30 PM (IST)
परिवहन विभागः हर महीने होती है करोड़ों की वसूली

बस्तीः परिवहन विभाग के भ्रष्टाचार पर किसी की नजर नहीं है। यहां ड्राइविंग लाइसेंस, वाहनों के रजिस्ट्रेशन, ट्रांसफर, परमिट, फिटनेस से लेकर टैक्सेशन तक कदम कदम पर आवेदकों को ठगा जाता है। इसके लिये आला हाकिमों की सरपरस्ती में वर्षों से सक्रिय नेटवर्क का जवाब नही है। वसूली का एक एक रूपया हाकिम तक बड़ी इमानदारी से पहुंच जाता है। कई बार यहां की रिश्वतखोरी चर्चा में आई, बात दूर तक गयी, नतीजा ढाके के तीन पात। इसके अलावा महकमे को विभिन्न मदों में शासन से मिलने वाले बजट का भी बंदरबांट कर लिया जाता है।

कोई भी काम हो यहां सरकारी फीस से कई गुना रिश्वत ली जाती है। ड्राइविंग लाइसेंस के लिये ली जाने वाली ऑनलाइन परीक्षा के नाम पर बगैर सुविधा शुल्क दिये तो कोई पास ही नही हो सकता। सुविधा शुल्क पाने के बाद बड़ी सरलता से लोग परीक्षा पास कर लेते हैं। कहने को यहां आरटीओ प्रवर्तन, प्रशासन से लेकर आरआई तक आधा दर्जन अफसरों की तैनाती है लेकिन बड़े हाकिम का इशारा न हो तो पत्ता भी नही हिलता। पूरे मंडल में उनका सिक्का चलता है, मजाल क्या है कोई वसूली की रकम अकेले डकार जाये। उसे बड़े हाकिम को हिस्सा देना पड़ता है। ये तो दफ्तर के हालात हैं।

विभागीय सूत्र बताते हैं कि ये सारा भ्रष्टाचार आरटीओ आरके विश्वकर्मा की वजह से हैं। धनार्जन उनकी पहली प्राथमिकता है। मीठा मीठा बोलकर सभी को अपने पक्ष में किये रहते हैं, यही कारण है कि उनका कोई प्रबल विरोध नही किया, यही नही शासन प्रशासन में भी उनकी जबरदस्त पकड़ है जिसकी वजह से उनकी कमियों को नज़ाअंदाज किया जाता है। तीप साल से ज्यादा उनकी तैनाती के हो गये, बावजूद एक ही स्थान पर चौकड़ी मारकर बैठे हैं। इससे उनकी शासन स्तर पर पकड़ का अंदाजा लगाया जा सकता है।

साहब रोड पर निकलते हैं तो मानो नोट छापने की मशीन उनके साथ साथ चलती है। ओवरलोडेड ट्रकों व अन्य वाहनों से भारी भरकम वसूली होती है। इसमें दलाल से लेकर महकमे के अधिकारी तक लिप्त हैं। प्रति ट्रक 3000 रूपये वसूलने की परंपरा है। जनपद से करीब तीन हजार बालू की ओवरलोडेड ट्रकें गुजरती हैं। कुल मिलाकर 90 लाख रूपये हुये। यही हाल मंडल के दो अन्य जिलों का भी है, वहां भी 3000-3500 ट्रकें बेरोकटोक चलती हैं। दस्तूर पूरे मंउल में लागू है। इस प्रकार केवल ओवलोडेड बालू की ट्रकों से करीब 3 करोड़ रूपये की आय होती है। इसके अलावा डग्गामार बसों से मिलने वाली रिश्वत अलग है जो इससे कहीं ज्यादा है।

हराम की ये दौलत अफसरों को कामचोर और मक्कार बना चुकी है। न इनके भीतर मानवता रही और न ही ऊपरी आदेशों की अहमियत। बस एक ही नीति पर इनकी बुनियाद से छत तक है वह है पैसा फेको तमाशा देखो। आलम ये है कि घूसखोरी की परंपरा का पालन करने को हर कोई तैयार हो जाता है। विरोध तो जनता भूल चुकी है। एक ट्रक मालिक ने बताया कि विरोध करने या सुविधा शुल्क न देने पर ट्रक को किसी न किसी बहाने थाने में खड़ा कर दिया जाता है। दो तीन दिनों में हुआ मालिक का नुकसान उसकी सारी अकड़ ढीली कर देता है। अंत में उसे भी हाकिम के बनाये वसूलों को मान लेना पड़ता है।

महकमे के अफसरों से लेकर डीएम, सांसद, विधायक, मंत्री तक का इस वसूली में हिस्सा है। इसका सनसनीखेज खुलासा तब हुआ जब संतकबीरगनर के गागरगाड़ निवासी मस्तराम उर्फ पंकज ने अपर जिलाधिकारी सिद्धार्थनगर को शिकायती पत्र देकर बताया कि एआरटीओ प्रवर्तन पीके सरोज 3000 रूपया लेकर ओवरलोडेड ट्रकों को चलवा रहे हैं, जबकि खनन निरीक्षक 2500 रूपया लेते हैं। पीके सरोज और मस्तराम के बीच हुई वार्ता का आडियो वायरल हो चुका है। आरोपों की एडीएम कोर्ट में 17 जून को सुनवाई हुई। शिकायतकर्ता ने आरोपों के संदर्भ में शपथ देकर अपना बयान दिया और आडियो भी उपलब्ध करवाया।

मामले को सज्ञान लेकर आरटीओ अनिल कुमार श्रीवास्तव ने पीके सरोज को पत्र लिखकर कार्यवाही की बात कही है। हालांकि सबका मौसियाउत भाई का रिश्ता है, इस पत्र का कितना असर होगा, यह वक्त बतायेगा। वायरल आडियो में सरोज ने कहा है कि उन्होने साढ़े छः लाख रूपया अभी कल डीएम कुणाल सिल्कू को दिया है, इसकी भरपाई कैसे होगी। दरअसल मस्तराम की करीब 25 ट्रके चलती हैं, वह सुविधा शुल्क कम करने की पीके सरोज से सिफारिश कर रहा था। इस बीच सरोज ने सारी पोल पट्टी खोलकर रख दिया। कहा सुविधा शुल्क कम नही हो सकता।

इसमें मंत्री, एडीएम और यहां तक कि सीजेएम भी कुछ नही उखाड़ सकते। सरोज की दबंगई का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर ये आरोप सच हैं तो पीके सरोज सरकारी नौकरी के कितने योग्य हैं समझा जा सकता है। ताजा मामले में शिकायतकर्ता को न्याय मिलेगा या पूर्व में लगे तमाम आरोपों की तरह यह भी ठंडे बस्ते में चला जायेगा। फिलहाल इससे पहले तमाम अफसरों ने परिवहन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की नाकाम कोशिश की थी, नतीजा सिफर रहा है।


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