आखिर कितनी आज़ाद है भारतीय मीडिया
अशोक श्रीवास्तवः देश की सैन्य शक्ति, युद्धाभ्यास, सेना के ठिकानों तथा दुश्मन पर की गई सैन्य कार्यवाहियों और रणनीति को मीडिया चैनलों पर बेधड़क दिखाया जा रहा है। मीडिया की ये हरकतें हैरान करने वाली हैं। इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है, मीडिया को लोकतत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है, इसे आजाद रखा गया है, लेकिन इस आजादी की भी अपनी सीमायें हैं। सेना से सम्बन्धित कोई भी जानकारी सार्वजनिक नही की जानी चाहिये, बेशक उसका कोई साइड इफेक्ट न हो।
सेना के फैसलों पर सवाल खड़ा करना, सेना द्वारा की गयी कार्यवाही का किसी दल विशेष द्वारा श्रेय लिया जाना ठीक नही है। सेना के साहस को सलाम करना चाहिये, ऐसा करना चाहिये कि हमारे सैनिकों का मनोबल ऊंचा रहे और कम संसाधानों और मानवशक्ति में भी वे दुश्मन को सबक सिखा सकें। लेकिन सैकड़ों की शहादत को दरकिनार कर सारा श्रेय खुद लेना और सीमा तक पहुंचकर बहुत सारी लानकारियों को सार्वजनिक करने के लिये मीडिया को आजाद रखकर सरकार और उसके जिम्मेदार क्या संदेश देना चाहते हैं समझ से परे है। प्रबुद्धजनों का मानना है कि सैन्य अधिकारी जब तक पत्रकार वार्ता न आयोजित करे तब तक सेना की कोई बात बाहर नही जानी चाहिये। यह सैन्य शास्त्र का खास नियम है और सरकार को इसका पालन करना चाहिये।
मीडिया को भी बेवजह की टीआरपी इकट्ठा करने के लिये इस स्तर पर नही आना चाहिये। देश में बहुत सी समस्यायें हैं, बहुतों की आवाज सक्षम पटल पर नहीं पहुंच पाती, या फिर दबा दी जाती है, ऐसे लोगों की आवाज बनकर उन्हे न्याय दिलाना मीडिया का कर्तव्य होना चाहिये। देश के अंदर ऐसी व्यवस्था है कि मीडिया परीक्षा केन्द्रों, मतदान केन्द्रों, मतगणना केन्द्रों और अदालतों के भीतर की कार्यवाही को नही दिखा सकती तो फिर सेना की तैयारियों और उसकी ताकत को सार्वजनिक करने का अधिकार किसने दे दिया। प्रधानमंत्री और सैन्य अधिकारियों को इस आजादी पर तत्काल रोक लगानी चाहिये। क्या मीडिया की ये आजादी युद्ध जीतने की आवश्यक शर्तो का उल्ल्घंन नही करती ?