मां से किया वादा भूल गये प्रधानमंत्री
अशोक श्रीवास्तवः क्या कोई बेटा अपनी मां का कलेजा छलनी कर सकता है, उसे दिलाशा देकर उसका भरोसा तोड़ सकता है, क्या मां बेटे का रिश्ता सिर्फ उसकी छाती से दूध निकालने और उसकी उंगलियां पकड़कर बड़ा होने के लिये होता है। सभी सवाल अन्तर्मन को छू जाते हैं, और भारत जैसे परिवेश में जहां तक हम जानते और समझते हैं सभी के जवाब नकारात्मक होंगे। यही तो भारतवर्ष है, जहां रिश्तों की डोर इतनी मजबूत होती है कि लोग भरोसा जीतने और वादा पूरा करने के लिये न जाने कौन कौन सी कुरबानी कर जाते हैं।
ये संस्कार ही भारत को विश्व के सभी देशों से अलग करते हैं। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और बनारस के सांसद नरेन्द्र मोदी ने इन संस्कारों से उलट कार्य किया। देश के सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने का सपना लेकर वे बनारस आये तो उन्होने कहा मै यहां आया नही हूं, हमें तो गंगा मइया ने बुलाया है। ऐसा कहकर उन्होने न केवल वाहवाही लूटी बल्कि जनता को भावनात्मक तरीके से बरगलाया भी। हालांकि इसका उन्हे लाभ मिला, गंगा मइया के आर्शीवाद से वे विशाल भारत के प्रधानमंत्री बने लेकिन उनसे किया वादा नहीं निभाया।
कहा था गंगा प्रदूषण मुक्त होकर अविरल बहती रहे इसके लिये कोई कसर नही छोड़ेंगे। वर्तमान में गंगा घाटों की दशा गाजीपुर से बनारस और अन्य शहरों में देखने लायक है। इन चार सालों में अगर कुछ हुआ है तो वह है जनता को भावनात्मक तरीके से बरगलाना। अलग से मंत्रालय बनाकर नमामि गंगे परियोजना लाकर उन्होने देशवासियों का ध्यान खींचा लेकिन इसका प्रदर्शन इतना घटिया होगा इसकी किसी को उम्मीद न थी।
चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, ‘मां गंगा की सेवा करना मेरे भाग्य में है।’ गंगा नदी का न सिर्फ़ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है बल्कि देश की 40 प्रतिशत आबादी गंगा नदी पर निर्भर है। 2014 में न्यूयॉर्क में मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, “अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हो गए तो यह देश की 40 फीसदी आबादी के लिए एक बड़ी मदद साबित होगी। अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”। इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए ‘नमामि गंगे’ नामक एक मिशन का शुभारंभ किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई के लिए बजट को चार गुना करते हुए पर 2019-2020 तक नदी की सफाई पर 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना को मंजूरी दी। लेकिन नतीजे संतोषजनक नहीं हैं।
घाटों पर पसरी गंदगी, सूखती और अपने हाल पर आसूं बहाती गंगा मानो प्रधानमंत्री को वादा याद दिला रही हों, लेकिन गंगा के प्रति उनका प्रेम और सम्मान तो सिर्फ दिखावा था वरना मां से किया वादा तो कोई नालायक बेटा भी नही भूलता, और वे तो संस्कारों की बदौलत ही इस मुकाम तक पहुचे हैं। कम से कम उनसे तो ऐसी उम्मीद नही की जा सकती।