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05 मई 2024
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दर्द से कराह रही हैं सड़कें

Posted on: Mon, 30, Mar 2020 4:51 PM (IST)
दर्द से कराह रही हैं सड़कें

अशोक श्रीवास्तवः राष्ट्रीय राजमार्ग दर्द से कराह रहा है। यह दर्द उन लोगों का है जो लॉकडाउन से पहले इसी सड़क पर टैक्स देकर सीना तानकर चलते थे। लेकिन आज की तस्वीरों विचलित करने वाली हैं। महिला, पुरूष बच्चे सभी की एक ही जिद है घर पहुंचने की। हैरान करने वाली बात ये है कि बाहर काम करने वाले मजदूर तबके ने दूरी कर परवाह नही की। औरतों ने कमर में बच्चे को उठाया और पुरूषों ने गृहस्थी की गठरी, अपने गन्तव्य को निकल पड़े। चार पांच साल के बच्चों को पैदल चलते देखा गया। 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री ये भूल गये कि इसके साइड इफेक्ट क्या होंगे। रोजी रोटी के लिये अपना गांव शहर छोड़ कर दूर देश में रहने वालों का पलायन शुरू हो गया। कम्पनियों में ताला बंद हो गया, हर तरह के व्यापारियों के शटर डाउन हो गये और आपदा की स्थिति में मजदूर अपने पेट पर रस्स्ी बांधकर भूखे पेट पैदल अपने गांव की ओर चल दिया। नेशनल हाइवे पर लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी। परिवहन सेवायें बंद होने से कोई पैदल, कोई टैम्पू से तो अनेकों ट्रकों के ऊपर सवार हो गये। डीसीएम में सवारियों को भूसे की तरह भराया गया। सबका मकसद घर पहुंचना था।

एक ऐसी तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है जिसे देखकर आखें नम हो जायेंगी। दिल्ली में रहने वाले दो युवकं ठेला चलाते थे। बिहार राज्य के दरभंगा के मूल निवासी मनोहर कुमार राय और मुकेश कुमार ने ठेले का ही अपना और परिवार का पेट पालने का जरिया बनाया है। 25 मार्च को पूरा देश लॉकडाउन होने के कारण उनका जीवन की रफ्तार एकाएक थम गयी। वह रोज कमाते और खाते थे। बंद होने के बाद उनकी जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए राशन। लेकिन अपने अपने जीवन को लेकर वे फिक्रमंद जरूर थे। इसलिए 26 को ठेला लेकर दरभंगा के लिए दोनों निकल पड़े। रविवार को बस्ती पहुंचने पर मनोहर कुमार ने बताया कि दिल्ली में काम बंद हो जाने के बाद कुछ खाने के लिए बचा था।

दिल्ली सरकार की सुविधा लेने के लिए वहां का आधार कार्ड मांगा जा रहा था। दिल्ली के बाहर के लोगों को कोई सुविधा नहीं दी जा रही है। हम लोग 24 घंटे ठेला चलाकर यहां पहुंचे। यूपी में आने के बाद लोगों की ओर से खाने पीने को मिल रहा है। कई हजार लोग यूपी बार्डर पर फंसे हुए हैं। भूखे मरने के बजाय अपने परिवार के बीच मरना अच्छा है। इन लोगों का कहना है कि जिस तरह की स्थिति है, लगता है कि तीन चार महीने बाद ही कोई काम दिल्ली में मिलेगा। वहां रखकर भूख से मरना नहीं चाहते हैं। पत्रकार रोककर उनसे जानकारी प्राप्त करना चाहा, उन्होने कहा अब न रोकिये रोकिए अभी पांच सौ किमी और ठेला चलाना है। यूपी की योगी सरकार के प्रयास सराहनीय हैं, बेहतर होता यदि इसी तरह देश के अन्य राज्य भी अपने नागरिकों को लेकर इतने संवेदनशील होते।


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